पाकिस्तान : पोलियो की दवा पिलाने के लिए फतवों का सहारा!
इस्लामाबाद, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम पूरी दुनिया में कामयाब रहा है लेकिन पाकिस्तान में कुछ और वजहों के साथ-साथ दकियानूसी सोच ने इस कार्यक्रम को विफल कर दिया है। अब स्थिति यह है कि पोलियो की दवा के पक्ष में जारी फतवों की पुष्टि कराई जा रही है ताकि लोग अपने बच्चों को इसकी दवा पिलाने के लिए आगे आएं।
पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में पाकिस्तान और अफगानिस्तान, दो ही ऐसे देश हैं जहां आज भी पोलियो की बीमारी मौजूद है। रिपोर्ट में बताया गया है कि हाल में नाइजीरिया इस सूची से बाहर हो गया और अब वहां पोलियो का मामला नहीं पाया जाता।
पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की धार्मिक मामलों की सर्वोच्च संस्था इस्लामी विचारधारा परिषद (सीआईआई) ने पोलियो की दवा पिलाने के पक्ष में समय-समय पर विभिन्न उलेमा द्वारा जारी सौ से अधिक फतवों की पुष्टि की है। सीआईआई को उम्मीद है कि इससे देश में पोलियो दवा के खिलाफ धर्म आधारित प्रतिरोध में कमी आएगी।
परिषद के सर्वोच्च निकाय ने सर्वसम्मति से इन फतवों की पुष्टि की है और लोगों से कहा है कि इस बीमारी की दवा को पिलाए जाने में कुछ भी गैर धार्मिक नहीं है।
पाकिस्तान में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार बाबर बिन अता ने बताया कि यह पहली बार है जब सरकार ने पोलियो वायरस के उन्मूलन के लिए सीआईआई की मदद मांगी है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान में 2014 के बाद से धार्मिक आधार पर पोलियो की दवा का विरोध शुरू हुआ। हालांकि, इससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के लिए उलेमा ही नहीं बल्कि मिस्र के विख्यात अल अजहर विश्वविद्यालय से भी फतवा आया कि पोलियो वैक्सीन इस्लाम के खिलाफ नहीं है लेकिन इसे लेकर लोगों के एक हिस्से में संदेह बना रहा।
संदेह की वजह यह भी थी कि लोगों की तरफ से बार-बार पूछा जाता था कि सीआईआई का इन फतवों के बारे में क्या कहना है? क्या सीआईआई इनकी पुष्टि करती है? बाबर बिन अता ने कहा कि इन हालात में हमने सीआईआई से संपर्क किया। उन्होंने कहा कि यह ताज्जुब की बात है कि इससे पहले किसी ने इस बारे में सीआईआई से आज तक संपर्क नहीं किया।
सीआईआई के चेयरमैन डॉ. किबला अयाज ने कहा कि उन्हें मिली सूचना के मुताबिक, जितने लोग अपने बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने से मना करते हैं, उनमें से कम से कम तीस फीसदी ऐसा धार्मिक कारणों से करते हैं।
धार्मिक कारणों के अलावा इसके राजनैतिक कारण भी हैं। समाज के एक हिस्से में यह धारणा पाई जाती है कि यह दवा पश्चिमी देशों से आती है और घातक होती है। इन्हें पीने के बाद मुस्लिम बच्चे आगे चलकर संतान पैदा करने की क्षमता खो देंगे। इसके पक्ष में रत्ती भर भी प्रमाण नहीं होने के बावजूद ऐसी अफवाहें फैला दी जाती हैं।
इन अफवाहों को उस वक्त भी बल मिला था जब डॉक्टर शकील अफरीदी ने देश में हेपेटाइटिस के खिलाफ कार्यक्रम चलाया। डॉ. अफरीदी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने अमेरिका को दुर्दात आतंकी ओसामा बिन लादेन का खात्मा करने में मदद दी थी। लोगों में अफरीदी के प्रति यह धारणा बनी कि पश्चिमी देशों का ऐसा एजेंट मुसलमानों के लिए कुछ अच्छा नहीं सोच सकता। नतीजा यह हुआ कि खैबर पख्तूनख्वा जैसे प्रांत में टीकों के खिलाफ माहौल बन गया।
कुछ स्थानीय स्तर के मौलवियों ने भी लोगों को यह समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि पोलियो जैसी दवाएं ईश्वर की जो इच्छा होती है और उसने जो जिंदगी किसी इनसान के लिए तय की है, उसके रास्ते में रुकावट डालने का काम करती हैं, इसलिए गैर इस्लामी हैं।
अब सरकार को उम्मीद है कि इस्लाम के सभी मत-संप्रदायों के विद्वानों को मिलाकर बनाई गई संस्था सीआईआई द्वारा पोलियो दवा के पक्ष में दिए गए फतवों की पुष्टि से हालात बेहतर होंगे और लोगों में भ्रांतियां दूर होंगी।
Created On :   16 Oct 2019 5:30 PM IST