ब्रिटिश संस्था 'इनिशल वॉशरूम हाइजीन' ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि टी बैग वाली चाय में टॉइलट सीट से 17 गुना ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं। अधिकतर ऑफिसों में टी बैग वाली चाय होती है क्योंकि ऑफिसों के लिहाज से वह ज्यादा सुविधाजनक होती है। मगर इस रिपोर्ट के मुताबिक, एक टॉयलेट सीट पर जहां 220 बैक्टीरिया होते हैं, वहीं एक ऑफिस टी बैग पर 3,785 बैक्टीरिया पाए जाते हैं।
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टॉयलेट सीट से ज्यादा गंदी है हमारे मोबाइल से लेकर एयरपोर्ट की सिक्योरिटी ट्रे
डिजिटल डेस्क । अगर आप हाइजीन को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं और ये सोचकर पब्लिक टॉयलेट्स यूज नहीं करते क्योंकि वहां बहुत ज्यादा गंदगी और वायरस होते हैं तो हम आपको बता दें कि टॉइलट सीट से भी ज्यादा गंदी चीजें हमारे आसपास मौजूद हैं। अक्सर हम इनसे अनजान रहते हैं और यह सोचे बिना की इनसे भी बीमारी फैल सकती है बेधड़क इनका इस्तेमाल करते रहते हैं। आगे की तस्वीरों में जानें, कौन सी हैं वो जगहें जो टॉयलेट सीट से कई गुना ज्यादा गंदी होती हैं।


एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि टी टावल यानी किचन में इस्तेमाल होने वाले कपड़े में ई-कोलाइ बैक्टीरिया पाया जाता है जिससे फूड पॉइजनिंग होने का खतरा रहता है। एक नई रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि किचन में बार-बार एक ही कपड़े का इस्तेमाल करने से परिवार के सदस्यों को फूड पॉइजनिंग का खतरा रहता है।

प्लेन की सीट में लगे सीट बेल्ट के बकल्स में सबसे ज्यादा बैक्टीरिया पनपता है। वजह साफ है। हर दिन कितने ही लोग सीट बेल्ट को बांधने और खोलने के लिए उसे छूते हैं, लिहाजा कीटाणु फैलना आम बात है।
क्या करें- एक हैंड सैनिटाइजर हमेशा अपने पास रखें और सीट बेल्ट बांधने और खोलने के बाद इसका इस्तेमाल जरूर करें।

यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम की रिसर्च के अनुसार, एयरपोर्ट पर इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक सिक्योरिटी ट्रे किसी भी पब्लिक टॉयलेट के मुकाबले कई गुना ज्यादा गंदे होते हैं। इन ट्रे के इस्तेमाल से इंसान को कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि इन ट्रे में इतने ज्यादा वायरस होते हैं कि यह किस भी इंसान को सर्दी-जुखाम, निमोनिया और ब्लैडर इंफेक्शन दे सकते हैं।

मोबाइल फोन अक्सर टॉइलट की सीट से भी ज्यादा गंदे होते हैं। वैज्ञानिकों ने सूक्ष्मजीवों की ऐसी तीन नई प्रजातियों की पहचान की है, जो मोबाइल फोनों पर पनपते हैं। कुछ स्मार्ट फोनों पर तो ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जिनपर दवाओं का असर ही नहीं होता। साल 2015 में यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफर्निया में मॉलिक्यूलर माइक्रोबायॉलजी ऐंड इम्यूनॉलजी डिपार्टमेंट के एक अध्ययन में पाया गया था कि टॉइलट की सीट पर 3 तरह के बैक्टीरिया पाए जाते हैं जबकि मोबाइल फोन पर औसतन 10-12 विभिन्न तरह के फंगस और बैक्टीरिया पाए जाते हैं।
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Real Estate: खरीदना चाहते हैं अपने सपनों का घर तो रखे इन बातों का ध्यान, भास्कर प्रॉपर्टी करेगा मदद

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। किसी के लिए भी प्रॉपर्टी खरीदना जीवन के महत्वपूर्ण कामों में से एक होता है। आप सारी जमा पूंजी और कर्ज लेकर अपने सपनों के घर को खरीदते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि इसमें इतनी ही सावधानी बरती जाय जिससे कि आपकी मेहनत की कमाई को कोई चट ना कर सके। प्रॉपर्टी की कोई भी डील करने से पहले पूरा रिसर्च वर्क होना चाहिए। हर कागजात को सावधानी से चेक करने के बाद ही डील पर आगे बढ़ना चाहिए। हालांकि कई बार हमें मालूम नहीं होता कि सही और सटीक जानकारी कहा से मिलेगी। इसमें bhaskarproperty.com आपकी मदद कर सकता है।
जानिए भास्कर प्रॉपर्टी के बारे में:
भास्कर प्रॉपर्टी ऑनलाइन रियल एस्टेट स्पेस में तेजी से आगे बढ़ने वाली कंपनी हैं, जो आपके सपनों के घर की तलाश को आसान बनाती है। एक बेहतर अनुभव देने और आपको फर्जी लिस्टिंग और अंतहीन साइट विजिट से मुक्त कराने के मकसद से ही इस प्लेटफॉर्म को डेवलप किया गया है। हमारी बेहतरीन टीम की रिसर्च और मेहनत से हमने कई सारे प्रॉपर्टी से जुड़े रिकॉर्ड को इकट्ठा किया है। आपकी सुविधाओं को ध्यान में रखकर बनाए गए इस प्लेटफॉर्म से आपके समय की भी बचत होगी। यहां आपको सभी रेंज की प्रॉपर्टी लिस्टिंग मिलेगी, खास तौर पर जबलपुर की प्रॉपर्टीज से जुड़ी लिस्टिंग्स। ऐसे में अगर आप जबलपुर में प्रॉपर्टी खरीदने का प्लान बना रहे हैं और सही और सटीक जानकारी चाहते हैं तो भास्कर प्रॉपर्टी की वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं।
ध्यान रखें की प्रॉपर्टी RERA अप्रूव्ड हो
कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि वो भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री के रेगुलेटर RERA से अप्रूव्ड हो। रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद प्रॉपर्टी खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को किया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।