वर्ल्ड फूड डे : मिलावटी मिठाई खाने से खुद को ऐसे बचाएं
डीजिटल डेस्क। आज वर्ल्ड फूड डे है। खाने की बात की जाए और उसमें भारतीय व्यंजनों का जिक्र ना हो ऐसा शायद ही होता होगा। पूरी दुनिया में भारत का मसालेदार भोजन प्रचलित है। यहां की मिठाइयां और स्ट्रीट फूड ने विश्व स्तर पर अलग पहचान बनाई हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गोलमटोल गुलाब जामुन और समोसा हमारी परंपरा का हिस्सा हमेशा से नहीं रहा हैं।
दोनों ही व्यंजनों को मुगल अपने साथ-साथ भारत लाए थे और इन्हें शिद्दत से अपना कर रखा और अब ये भारतीय व्यंजन का एक हिस्सा बन गए हैं,लेकिन वक्त के साथ गुलाबजामुन अब वैसा नहीं रहा जैसा हुआ करता था। मिलावटखोरों ने इसका ऐसा स्वाद बिगाड़ा है कि हर कोई अब इसे बाजार से खरीदने से लेकर घर पर बनाने से भी डरने लगे हैं।
दिवाली पर सबसे ज्यादा चाव से बनाए जाने वाला गुलाब जामुन मावे में बढ़ती मिलावट से लोगों के मुंह का स्वाद ही बिगड़ गया है। बाजार की मिठाई कितनी हानिकारक हो सकती हैं इस बारे में शायद सभी जानते हैं, लेकिन बदलते वक्त और खाने में मिलावट के कारण ये स्वादिष्ट मिठाइयां जानलेवा हो गई हैं। आज वर्ल्ड फूड डे पर हम बाजार में बिकने वाली मिठाइयों पर चर्चा करेंगे।
त्यौहार पर खुद को असली और नकली मावे से ऐसे बचाएं
भारत जैसे विविधता वाले देश में खाने को लेकर भी तमाम अलग-अलग बातें हैं। यहां खाना सिर्फ पेट भरने का जरिया नहीं है। यहां खाना खुद को खुश करने और दूसरों को खुश करने के लिए खाया जाता है। त्यौहारों का सीजन आते ही भोजन में मिलावट और भी बढ़ जाती हैं। खास कर मावे में, क्योंकि आधिकांश मिठाइयां मावे से ही बनती हैं।
देशभर में दीपावली, भैयादूज, गोवर्धन सहित त्यौहार सीजन मे करोडों रुपए का व्यापार होता है, जिसमें शहरों में फैक्ट्रियों का मावा बड़े स्तर पर सप्लाई किया जाता है। बाजार में इन दिनों मिलावट वाली मिठाइयों की भरमार है। दरअसल मिठाइयां बनाने के लिए दूध, मावे और घी की आवश्यकता होती है, जिसकी मांग सबसे ज्यादा होती है। लेकिन खपत बढ़ाने के लिए मिलावटखोर इन उत्पादों को सोडा, डिटरजेंट, कास्टिक सोडा, यूरिया और चरबी के प्रयोग से तैयार करके बाजार में बेचते हैं जिसके दुष्परिणाम मनुष्य की स्वास्थ्य समस्याओं के रूप में सामने आते हैं। इन मिठाइयों के उपयोग से लीवर संबंधी बीमारियों की संभावना अधिक रहती है। लोगो को चटकीले रंग वाली मिठाइयों से परहेज करना चाहिए , इसलिए मिठाई खरीदने से पहले इसकी जांच कर लें इसके बाद ही मिठाई खरीदें।
कैसे बनता है मिलावटी मावा
मावे में अक्सर स्टार्च, आटा आदि की मिलावट की जाती है। स्टार्च काफी सस्ता होता है और इसे मिलाने से मावे की मात्रा बढ़ जाती है। नकली मावा बनाने में स्टार्च, आयोडीन और आलू इसलिए मिलाया जाता है ताकि उसका वजन बढ़े। वजन बढ़ाने के लिए मावे में आटा भी मिलाया जाता है। नकली मावा असली मावा की तरह दिखे इसके लिए इसमें कुछ केमिकल भी मिलाए जाते हैं। कुछ दुकानदार दूध के पाउडर में वनस्पति घी मिलाकर मावा तैयार करते हैं। मिठाइयों को सजाने के लिए उस पर चांदी की वर्क लगाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता लेकिन कई मिठाई वाले पैसे बचाने के लिए चांदी के वर्क की जगह ऐल्युमिनियम का इस्तेमाल करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। हालांकि इसकी भी पहचान खरीददार आसानी से कर सकता है। मिठाई खरीदते समय उसमें लगी वर्क को उंगलियों के बीच रगड़ें। असली वर्क कुछ समय के बाद पूरी तरह गायब हो जाता है जबकि ऐल्युमिनियम की परत छोटी गोली जैसी बन जाती है।
कैसे करें मावे की पहचान
इस समय मार्केट में खोवा का रेट 220 से 240 रुपये किलो चल रहा है। जबकि दूध का मार्केट भाव 55 रुपये किलो है। एक किलो दूध में मुश्किल से 180 से 200 ग्राम मावा निकलता है। इस लिहाज से एक किलो मावा तैयार करने के लिए करीब 300 रुपये का दूध खरीदना होगा। इसके बाद उसे तैयार करने में ईंधन खर्च अलग से होता है। ऐसे में फिर 220 से 240 रुपये में शुद्ध मावा कैसे मिल सकता है। बताया जाता है कि यूपी और राजस्थान से लगे क्षेत्रों में मावा तैयार किया जाता है।
आप अपनी हथेली पर मावे को रगड़कर उसमें मिलावट की आसानी से पहचान कर सकते हैं। असली मावा रगड़ के बाद चिकनाई के रूप में देसी घी की तरह महक छोड़ता है। वहीं खाने पर असली मावा मुंह में चिपकता नहीं है। इसके अलावा नकली मावे में अजीब तरह की गंध आती है। इसी तरह दूसरी प्रक्रिया अपनाकर भी मावे में मिलावट को परखा जा सकता है। थोड़े से फीके मावे में टींचर आयोडिन डालनी होगी। इसकी एक बूंद डालते ही नकली मावे का रंग बदलकर काला या नीला हो जाएगा। मिलावट न होने पर मावे का रंग लाल रहेगा। टिंचर आयोडिन मेडिकल स्टोर से 10 या 12 रुपये में मिल जाएगी।
Created On :   16 Oct 2017 3:12 PM IST