#ByPoll : हार के सिलसिले को तोड़ने वाली AAP के लिए बड़ी राहत ?

Bawana bypoll Election what is the political meaning of AAPs victory
#ByPoll : हार के सिलसिले को तोड़ने वाली AAP के लिए बड़ी राहत ?
#ByPoll : हार के सिलसिले को तोड़ने वाली AAP के लिए बड़ी राहत ?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पिछले दिनों आंध्र प्रदेश, गोवा और दिल्ली की चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजे सोमवार को घोषित किए गए। इन नतीजों में सबसे ज्यादा खुशी की बात आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए रही, क्योंकि वो यहां की एकमात्र सीट पर हुए उपचुनाव में अपनी साख बचाने में कामयाह रहे। दिल्ली की बवाना सीट पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी रामचंद्र ने बीजेपी के वेदप्रकाश को 24 हजार वोटों से हराया। इतना ही नहीं, इस बार के बायपोल इलेक्शन में बीजेपी का वोट शेयर 30% से कम रहा। 1998 के बाद से अब तक कभी भी पार्टी का वोट शेयर 30% से कम नहीं रहा, लेकिन इस बार के इलेक्शन में बीजेपी का वोट शेयर घटकर 27.2% रह गया। बीजेपी का वोट शेयर गिरना इस बात से भी बहुत मायने रखता है क्योंकि 4 महीने पहले ही बीजेपी ने एमसीडी इलेक्शन में भारी जीत दर्ज की थी। बवाना चुनाव में आप की जीत से साफ हो गया है कि वो इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है। केजरीवाल के लिए ये जीत इसलिए भी खास है क्योंकि बीजेपी ने इसी सीट पर आम आदमी पार्टी के विधायक रहे वेदप्रकाश को कैंडिडेट बनाया था। बवाना से वेदप्रकाश ने 2015 के विधानसभा चुनाव में इलेक्शन जीता था, लेकिन मार्च में उन्होंने आप को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। इतना ही नहीं एमसीडी के साथ-साथ गोवा और पंजाब में हुई हार के बाद बवाना में हुई ये जीत आप के लिए मरहम की तरह काम करेगी। 

बवाना में काम नहीं आई बीजेपी की रणनीति

पिछले कई चुनावों से बीजेपी दूसरी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए नेता को टिकट देने की रणनीति पर काम कर रही है। हालांकि कई जगह उसे इसका फायदा भी हुआ है, लेकिन अब बीजेपी की ये रणनीति पुरानी होती जा रही है और जनता को भी समझ आने लगा है। हाल ही में गुजरात में हुए राज्यसभा चुनाव में भी बीजेपी ने कांग्रेस के अहमद पटेल के खिलाफ बलवंत सिंह राजपूत को खड़ा कर दिया था। बलवंत सिंह भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे, लेकिन वहां भी उन्हें इसका कुछ फायदा नहीं मिला। खैर, ये तो राज्यसभा चुनाव थे लेकिन बायपोल इलेक्शन में बीजेपी के हारने के कई कारण है। बताया जा रहा है कि 2 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने किरण बेदी को सीएम कैंडिडेट घोषित करके जो गलती की थी, वही गलती उसने इस बार भी कर दी। दरअसल, 2015 के असेंबली इलेक्शन में बवाना सीट से आप के वेदप्रकाश जीते थे, लेकिन उनसे पहले 2013 में इस सीट से बीजेपी के गुग्गन सिंह जीते थे। गुग्गन सिंह को इस बार बायपोल इलेक्शन में दरकिनार कर दिया गया, जिसके कारण संगठन और पार्टी नेताओं में असंतोष बढ़ गया और पार्टी को इस सीट पर वही नुकसान हुआ जो 2015 में हुआ था। इसके अलावा बवाना की जनता भी इस बात से नाराज हो गई, कि जो आदमी 2015 में आप की टिकट से चुनाव जीता वो अब उन्हें छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गया। इसके अलावा बवाना में बीजेपी ने यहां के सांसद को भी नजरअंदाज कर दूसरे एरिया के सांसदों को यहां की जिम्मेदारी दी। बवाना सीट नॉर्थ संसदीय क्षेत्र में आती है और यहां से बीजेपी के उदित राज सांसद हैं। जिन्हें इग्नोर कर वेस्ट दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा को इस बायपोल इलेक्शन का प्रभारी बनाया गया, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ी। बवाना में हुई हार के बाद पॉलिटिकल एनालिस्ट का कहना है कि अगर बीजेपी ने अपनी रणनीति नहीं बदली तो उसे इसका खामियाजा आगे भी भुगतना पड़ सकता है। 

केजरीवाल की जीत के सियासी मायने

बवाना सीट पर आम आदमी पार्टी की जीत ह किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है क्योंकि इस सीट पर आप के कैंडिडेट रामचंद्र ने बीजेपी के कैंडिडेट वेदप्रकाश को 24 हजार वोटों से हराया है। पार्टी को मिली इस जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ेगा, जो पिछले चुनावों में हुई हार के कारण काफी कम हो गया था। इसके साथ ही बवाना में हुई आप की जीत इस बात का संकेत है कि दिल्ली में पार्टी अभी उतनी कमजोर नहीं है, जितना उसे समझा जा रहा था। एमसीडी इलेक्शन में बीजेपी की जीत के बाद से आप को कमजोर समझा जाने लगा था और बीजेपी इस सीट पर अपनी जीत तय मान रही थी, लेकिन इसी जीत के साथ आप ने एकबार फिर साबित कर दिया कि उसे हराना उतना आसान नहीं है। 24 हजार से ज्यादा वोटों से जीत के बाद आप की ये जीत कोई मामूली नहीं है क्योंकि इससे पहले राजौरी गार्डन सीट के लिए हुए बायपोल  इलेक्शन में उसे बीजेपी से हार का सामना करना पड़ा था। रही-सही कसर एमसीडी इलेक्शन और पंजाब-गोवा के असेंबली इलेक्शन ने पूरी कर दी थी। इस तरह की लगातार हार के बाद से माना जा रहा था कि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल अब ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगी और धीरे-धीरे वो दिल्ली में भी गायब हो जाएगी, लेकिन इस जीत ने इन सभी बातों पर फिलहाल रोक लगा दी है।

Created On :   29 Aug 2017 12:53 PM IST

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