गूगल ने बनाया डूडल, जानिए कैसे हुई 'चिपको आंदोलन' की शुरुआत

गूगल ने बनाया डूडल, जानिए कैसे हुई 'चिपको आंदोलन' की शुरुआत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पेड़ों को बचाने के लिए 1970 के दशक में चलाए गए चिपको आंदोलन की आज 45वीं वर्षगांठ है। गूगल ने डूडल बनाकर ऐतिहासिक आंदोलन को याद किया है। इस आंदोलन की खास बात ये थी कि... पेड़ों को काटने से रोकने के लिए बिना हिंसा और उपद्रव के आंदोलन चलाया गया था। सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने अपने डूडल में आंदोलन की तस्वीरों का भी चित्रण किया है। डूडल में कुछ महिलाएं मून लाइट में एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए एक पेड़ के आस-पास घेरा बनाकर खड़ी दिखाई दे रही हैं। जिसमें दिखाया गया है कि पेड़ की रक्षा के लिए महिलाएं घेरा बनाकर खड़ी हैं।

 


 

कहां से शुरु हुआ था चिपको आंदोलन

चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले से हुई थी। उस समय उत्तर प्रदेश राज्य में आने वाली अलकनंदा घाटी के मंडल गांव में लोगों ने 1974 में आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन में ग्रामीणों ने पेड़ों की कटाई का विरोध किया था।


 

क्या है आंदोलन की कहानी

1973 में वन विभाग के ठेकेदारों ने अलकनंदा घाटी के मंडल गांव में जंगलों की कटाई शुरु कर दी थी। इसके खिलाफ लोगों ने चिपको आंदोलन शुरु कर दिया और देखते ही देखते आंदोलन आस-पास के इलाकों में फैलता गया। पेड़ों को बचाने के लिए ग्रामीण खासतौर पर महिलाएं उनसे लिपट जाती थीं। जिसके कारण इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ गया। 1974 में शुरू हुए इस आंदोलन की जनक गौरी देवी को माना जाता है। गौरी देवी ‘चिपको वूमन’ के नाम से भी मशहूर हैं।   

 

 

पर्यावरणविदों ने दिया व्यापक रूप

कई पर्यावरणविद और जागरूक लोगों ने भी इस आंदोलन को व्यापक रूप देने में अहम भूमिका निभाई। इनमें सुंदरलाल बहुगुणा, गोबिंद सिंह रावत, चंडी प्रसाद भट्ट, हयात सिंह और वासवानंद नौटियाल जैसे लोगों के नाम शामिल हैं।  आंदोलन में पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट की संस्था दशोली ग्राम स्वराज्य संघ ने बड़ी भूमिका निभाई वहीं सुंदरलाल बहुगुणा ने आंदोलन को दिशा दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने की अपील की गई। जिसके बाद पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई।

 

 

बिश्नोई समाज से ली गई प्रेरणा
चिपको आंदोलन को 18वीं सदी में राजस्‍थान में हुए आंदोलन से प्रेरित माना जाता है। दरअसल जोधपुर के महाराजा ने पेड़ों को काटने का फैसला सुनाया था। महाराजा के आदेश के खिलाफ पेड़ों को कटने से बचाने के लिए बिश्‍नोई समाज के लोग पेड़ों से चिपक जाते थे। इस आंदोलन में अमृता देवी के नेतृत्‍व में 84 गांवों के 383 लोगों ने खेजड़ी पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी थी।

 

 

जिसके बाद वहां के महाराज ने अपने आदेश को वापस लेते हुए बिश्‍नोई समुदाय से जुड़े गांवों में पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बता दें कि बिश्नोई समाज के लोग पर्यावरण की पूजा करते हैं।

 

राजनीति में बना बड़ा मुद्दा

वृक्षों की रक्षा के लिए जन्मे इस चिपको आंदोलन के बाद पर्यावरण की सुरक्षा केंद्रीय राजनीति में भी एक बड़ा मुद्दा बना रहा। देश में 1980 का वन संरक्षण अधिनियम और केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन भी कहीं न कहीं चिपको आंदोलन की वजह से संभव माना गया है। 1980 में इंदिरा गांधी ने हिमालयी वनों में पेड़ों की कटाई पर 15 साल के लिए रोक लगा दी थी।

 

Created On :   26 March 2018 11:40 AM IST

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