नीरव मोदी मामले में आईसीएआई स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकता है : दिल्ली हाईकोर्ट
- अदालत की दृढ़ राय है कि संस्थान के पास धारा 21 द्वारा अपेक्षित अपेक्षित जानकारी थी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने शनिवार को कहा कि लिखित शिकायत के अभाव में भी इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के पास अपने सदस्यों के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का अधिकार है।
चार्टर्ड एकाउंटेंटों ने आईसीएआई द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं का एक बैच दायर किया था। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की एकल पीठ के न्यायाधीश ने कहा, लिखित शिकायत या लिखित आरोप को किसी भी तरह से धारा 21 के तहत कार्रवाई शुरू करने के लिए पूर्व-आवश्यकता या अनिवार्य शर्त नहीं माना जा सकता।
उन्होंने कहा, कोई व्यक्ति संस्थान के ध्यान में लाने के लिए लिखित सामग्री का विकल्प चुन सकता है और धारा 21 द्वारा प्रदान किया गया अधिकार संस्थान को किसी भी सूचना के आधार पर आगे बढ़ने में सक्षम बनाता है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि एक समाचार लेख को साक्ष्य के रूप में नहीं गिना जा सकता। न्यायाधीश ने कहा, किसी समाचारपत्र की रिपोर्ट अपने आप में सबूत नहीं हो सकती। कोई रिपोर्ट जो प्रिंट मीडिया या दृश्य समाचार प्लेटफॉर्म पर दिखाई देती है, उसे तथ्यों का बाहरी स्रोत माना जा सकता है।
ये याचिकाकर्ता उन फर्मो के साथ कार्यरत थे, जिन्हें पंजाब नेशनल बैंक के वित्तीय विवरणों की सीमित समीक्षा करने के लिए संयुक्त वैधानिक लेखा परीक्षकों के रूप में नियुक्त किया गया था। आईसीएआई ने नीरव मोदी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कथित रूप से विभिन्न ऑडिटिंग मानकों का पालन नहीं करने के लिए याचिकाकर्ताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसने बैंकों को 12,000 करोड़ रुपये की चपत लगाई थी।
सीए ने कहा था कि आईसीएआई स्वत: संज्ञान लेकर कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता, क्योंकि वे केवल समाचार रिपोर्टों पर आधारित थे। अदालत ने कहा, अदालत की दृढ़ राय है कि संस्थान के पास धारा 21 द्वारा अपेक्षित अपेक्षित जानकारी थी और इसने इस मामले के तथ्यों में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ जांच शुरू करने को उचित ठहराया है।
अदालत ने कहा, इस प्रश्न का उत्तर कि क्या कोई विशेष शक्ति कानून के तहत प्रदत्त है, का उत्तर अनिवार्य रूप से कानून को पढ़ने और उसके दायरे के विवेक पर दिया जाना चाहिए। किसी कानून को प्रदान किए जाने का अर्थ केवल इस तथ्य पर नहीं टिक सकता कि शक्ति अस्तित्व में पाए जाने पर भी इसका पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था। न्यायमूर्ति वर्मा ने याचिकाओं को खारिज कर दिया और कहा कि आईसीएआई इस मामले में स्वयं आगे बढ़ने का हकदार है।
(आईएएनएस)
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Created On :   18 Dec 2022 1:00 AM IST