आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर पूरी तरह निर्भर हो जाएंगे भविष्य के युद्ध, भारत ने शुरू की तैयारी
- इस तरह अगले दिनों में युद्ध के मैदानों में जवान कम होंगे
- रॉबोटिक मशीन ज्यादा होंगी।
- भविष्य में युद्ध के मैदान तकनीक की नुमाइश बन जाने वाले हैं।
- इस परियोजना का मकसद सुरक्षा बलों को मानव रहित टैंक
- पोत
- विमान और रोबॉटिक हथियारों से लैस करना है।
- दुनिया के विकसित देश युद्ध की ऐसी तकनीक विकसित करने पर काम कर रहे हैं
- जो पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित होगी।
- भारत में भी इस दिशा में म
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भविष्य में युद्ध के मैदान तकनीक की नुमाइश बन जाने वाले हैं। दुनिया के विकसित देश युद्ध की ऐसी तकनीक विकसित करने पर काम कर रहे हैं, जो पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित होगी। भारत में भी इस दिशा में महत्वपूर्ण काम हो रहा है। इस परियोजना का मकसद सुरक्षा बलों को मानव रहित टैंक, पोत, विमान और रोबॉटिक हथियारों से लैस करना है। इस तरह अगले दिनों में युद्ध के मैदानों में जवान कम होंगे, रॉबोटिक मशीन ज्यादा होंगी। लोग उन्हें दूर से बैठ कर संचालित करेंगे। दरअसल, हाल के दिनों में चीन ने अपनी सेना के लिए आर्टिफिशल इंटेलीजेंस के व्यापक इस्तेमाल के क्षेत्र में भारी निवेश किया है। चीन द्वारा किए जाने वाले निवेश को देखते हुए भारत ने भी थल सेना, वायु सेना और नौसेना को भविष्य के युद्धों के लिहाज से तैयार करने के लिए एक व्यापक नीति बनाई है। रक्षा सचिव (उत्पादन) अजय कुमार ने बताया कि भारत का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग आधार काफी मजबूत है। यह आर्टिफिशल इंटेलीजेंस संबंधी क्षमताओं के विकास के लिहाज से हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी।
अमेरिका ने अफगानिस्तान में किया सफल प्रयोग
आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस कंप्यूटर विज्ञान का क्षेत्र है। यहां पर ध्यान रखने वाली बात यह है अमेरिका मानव रहित ड्रोन के सहारे अफगानिस्तान और उत्त-पश्चिमी पाकिस्तान में आतंकियों के गुप्त ठिकानों को निशाना बनाता रहा है। मानवरहित ड्रोन आर्टिफिशल इंटेलीजेंस की मदद से काम करते हैं। यह इस तकनीक का सटीक उदाहरण भी है। दरअसल, ड्रोन की कमांड कंट्रोल रूम में बैठे व्यक्ति के हाथों में होती है जो उसको नियंत्रित करता है और युद्ध क्षेत्र से दूर होता है। सैटेलाइट की मदद से यह दोनों आपस में जुड़े रहते हैं। ड्रोन में लगे कैमरे से और उसमें लगे कंप्यूटर से कंट्रोल रूम में बैठे व्यक्ति को उस जगह की और ड्रोन की पूरी जानकारी मिलती रही है। इसके अलावा ड्रोन में लगा कैमरा दिन और रात के समय में हाई रिजोल्यूशन वाली सटीक तस्वीरें लेने में सहायक होता है जिसका उपयोग आगे भी किया जा सकता है। कंट्रोल रूम में बैठा व्यक्ति सही समय और सटीक निशाना मिलने पर दुश्मन पर वार करता है। आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का सबसे बड़ा फायदा यही है कि इसकी वजह से जवानों के जोखिम को कम किया जा सकेगा।
भारत ने भी शुरू किया काम, सीमा पर कम होगा दबाव
आर्टिफिशल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में भारत जिस तरफ लगा है उससे चीन एवं पाकिस्तान से लगी देश की सीमाओं की निगरानी में आर्टिफिशल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल से संवेदनशील सीमाओं की सुरक्षा में लगे सशस्त्र बलों पर दबाव कम हो सकता है। यह इस लिहाज से भी जरूरी है कि दुनिया की दूसरी बड़ी शक्तियां इस पर पहले से काम कर रही हैं। चीन आर्टिफिशल इंटेलीजेंस अनुसंधान एवं मशीनों से जुड़े अध्ययन में अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। उसने पिछले साल आर्टिफिशल इंटेलीजेंस संबंधी नए प्रयोगों के लिहाज से देश को 2030 में दुनिया का केंद्र बनाने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की। चीन के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और यूरोपीय संघ भी आर्टिफिशल इंटेलीजेंस में काफी निवेश कर रहे हैं।
एन चंद्रशेखरन की अध्यक्षता में कमेटी गठित
रक्षा सचिव (उत्पादन) अजय कुमार ने बताया कि सरकार ने रक्षा बलों के तीनों अंगों में आर्टिफिशल इंटेलीजेंस की शुरूआत करने का फैसला किया है। इसके मुताबिक दुनिया की दूसरी शक्तियों की तरह ही भारत ने भी अपने सशस्त्रों बलों को मजबूत बनाने के लिए आर्टिफिशिल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल पर शोध शुरू किए हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में लड़ाई के क्षेत्र में जिस तरह से बदलाव संभावित हैं, उन्हें देखते हुए इस दिशा में पहल की जानी जरूरी है। उन्होंने बताया कि टाटा संस के प्रमुख एन चंद्रशेखरन की अध्यक्षता वाली कमेटी इस परियोजना की बारीकियों और संरचना को अंतिम रूप दे रही है। इसको सशस्त्र बल और निजी क्षेत्र की भागीदारी के मॉडल के तहत कार्यान्वित किया जाएगा।
भविष्य में पूरी तरह तकनीक आधारित हो जाएगा युद्ध
कुमार ने कहा कि यह हमारी अगली पीढ़ी के युद्ध के लिए भारत की तैयारी का बेहद अहम हिस्सा है। उन्होंने कहा कि है कि आने वाला कल आर्टिफिशल इंटेलीजेंस का ही है। हमें अगली पीढ़ी के युद्ध के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है, जो ज्यादा से ज्यादा तकनीक आधारित, स्वचालित और रोबॉटिक प्रणाली पर आधारित होगी। अजय के मुताबिक भविष्य में होने वाली लड़ाइयों में मानव रहित विमान, मानव रहित पोत एवं मानव रहित टैंक और हथियार प्रणाली के रूप में स्वचालित रोबोटिक राइफल्स का व्यापक इस्तेमाल होगा। लिहाजा भारत को भी इनके लिए क्षमताओं का निर्माण करने की जरूरत है। परियोजना में रक्षा बलों के तीनों अंगों के लिए मानवरहित प्रणालियों की व्यापक श्रृंखला का उत्पादन भी शामिल होगा।
जून तक आ जाएंगी कार्यबल की सिफारिशें
कुमार ने कहा कि आर्टिफिशल इंटेलीजेंस आने वाले वर्षों में बहुत बड़ी संकल्पना का रूप लेने वाला है। दुनिया के प्रमुख देश रक्षा बलों के लिए आर्टिफिशल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल की संभावना तलाशने की खातिर रणनीतियों पर काम कर रहे हैं। हम भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इस पहल में खास बात यह है कि इसके लिए हमारे उद्योग एवं रक्षा बल दोनों मिलकर काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कार्यबल की सिफारिशें जून तक आ जाएंगी और तब सरकार परियोजना को आगे ले जाएगी। रक्षा सचिव का कहना है कि भारत का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग आधार काफी मजबूत है और यह आर्टिफिशल इंटेलीजेंस संबंधी क्षमताओं के विकास के लिहाज से हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी। परियोजना को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे कुमार ने कहा कि एक संरचना को अंतिम रूप दिया जा रहा है। परियोजना के तहत रक्षा प्रणालियों में आर्टिफिशल इंटेलीजेंस के लिए मजबूत आधार के निर्माण की खातिर उद्योग एवं रक्षा बल साथ काम कर सकते हैं। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) परियोजना में एक प्रमुख भागीदार होगा।
Created On :   22 May 2018 12:31 PM IST