चुनावी कार्ड, सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायतों को दिया अलग धर्म का दर्जा
डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को लेकर बड़ा फैसला लिया है। सोमवार को कैबिनेट ने लिंगायत समुदाय की उस मांग को स्वीकृति दे दी है, जिसमे उन्होंने अलग धर्म का दर्जा देने की सिफारिश की थी। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले लिए गए इस फैसले को चुनावी कार्ड के तौर पर देखा जा रहा है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद सिद्धारमैया सरकार ने गेंद भारतीय जनता पार्टी के पाले में डाल दी है। बीजेपी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इसे समुदाय को बांटने वाला बताया है। हालांकि केंद्र की एनडीए सरकार भी विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस समुदाय को नाराज नहीं करना चाहेगी।
लिंगायत समुदाय ने की थी सीएम से मुलाकात
कर्नाटक में लंबे समय से लिंगायत समुदाय अलग धर्म की मान्यता देने की मांग कर रहा था। इसे लेकर लिंगायत समुदाय के धर्मगुरुओं ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से मुलाकात की थी। संतों का नेतृत्व गाडग आधारित तोंदार्य मठ सिद्धलिंग स्वामी ने किया। इस दौरान उन्होंने नागमोहन दास कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की मांग की। उन्होंने मांग की थी कि लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता के साथ अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए। जिसके बाद सोमवार को कर्नाटक सरकार ने इसे स्वीकर कर लिया। मुलाकात के बाद स्वामी ने कहा कि हमारी लड़ाई नई नहीं है, हम 900 साल से इसके लिए लड़ रहे हैं।
केंद्र के पाले में गेंद
राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले इस मामले में अंतिम फैसला केंद्र सरकार लेगी। कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद बीजेपी ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा है कि कर्नाटक सरकार धर्म को आधार बनाकर चुनावों में उतरना चाहती है। बीजेपी प्रवक्ता मालविका ने आरोप लगाया है कि सिद्धारमैया लंबे समय से लिंगायतों को हिंदू धर्म से अलग करना चाहते थे। इस मुद्दे पर फैसला संसद में लिया जाएगा, सिद्धारमैया यह फैसला नहीं कर सकते।
100 सीटें लिंगायत समुदाय के हाथ में
आपको बता दें कि लिंगायत समुदाय की स्थापना 12वीं सदी में महात्मा बसवण्णां ने की थी। लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था, लेकिन कुछ कुरीतियों से दूर होने, उनसे बचने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई। यह समुदाय कर्नाटक में सबसे प्रभावशाली है। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय लगभग 21 फीसदी है। इस वजह से यह निर्णय बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए मायने रखता है। 224 सीटों में से 100 सीटों पर हार जीत यह समुदाय तय करता हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब साल 2013 के चुनाव के वक्त बीजेपी ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया था तो लिंगायत समाज ने बीजेपी को वोट नहीं दिया था क्योंकि येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं।
Created On :   19 March 2018 5:20 PM IST