'एक देश-एक चुनाव' पर पीएम मोदी को सौंपी गई रिपोर्ट क्या कहती है?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने "एक देश-एक चुनाव" को लेकर एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी है। दरअसल, जनवरी में आरएसएस और इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च ने एक सेमिनार किया था। इस सेमिनार में ही एक देश-एक चुनाव को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अगर देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इससे सदन भंग और अविश्वास प्रस्ताव जैसे मामलों को रोकने में मदद मिलेगी। बता दें कि पीएम मोदी भी काफी समय से इस बात की वकालत कर रहे हैं कि देश में एक ही बार में लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने चाहिए।
रिसर्च पेपर के जरिए तैयार की गई रिपोर्ट
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जनवरी में आरएसएस से जुड़े रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी ग्रुप ने इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के साथ मिलकर एक सेमिनार कराया था। इस सेमिनार में देश भर की 16 यूनिवर्सिटीज़ और 29 एकेडमी के मेंबर्स शामिल हुए थे। इन्होंने "एक देश-एक चुनाव" पर रिसर्च पेपर प्रेजेंट किए थे। इसी रिसर्च पेपर का एनालिसिस कर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। यही रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी गई है।
क्या वाकई समय से पहले या एक साथ चुनाव करा सकती है सरकार?
रिपोर्ट में दिए गए हैं ये 5 सुझाव :
1. इस रिपोर्ट में मध्यावधि चुनाव और उपचुनाव की प्रोसेस को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। इसमें कहा गया है कि अगर देश में एक साथ चुनाव होते हैं, तो अविश्वास प्रस्ताव और सदन भंग करने जैसे मामलों को रोकने में भी मदद मिलेगी।
2. पीएम को सौंपी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि "एक देश-एक चुनाव" सिस्टम के तहत सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाते हुए विपक्षी पार्टियों को अगली सरकार के समर्थन में विश्वास प्रस्ताव भी लाना जरूरी होगा। ऐसे में समय से पहले सदन को भंग होने से रोका जा सकता है।
3. इस रिपोर्ट में उपचुनाव को भी बंद कराने की सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है कि अगर किसी कारण से कोई सीट खाली होती है, तो उपचुनाव की जगह दूसरे नंबर पर रहने वाले कैंडिडेट को चुना जा सकता है।
4. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हर साल लगभग 6 राज्यों में चुनाव होते हैं। ऐसी स्थिति में सरकार के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स और प्रोग्राम्स पर गलत असर पड़ता है, जिससे देश की सरकार पर भी खराब असर होता है।
5. इस रिपोर्ट में दो चरणों में चुनाव कराए जाने की सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है कि पहले चरण में लोकसभा चुनाव और कम से कम आधे राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ 2019 में कराए जाएं और बाकी के बचे राज्यों के विधानसभा चुनाव 2021 में कराए जाएं।
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एक साथ चुनाव होने में 4,500 करोड़ खर्च होंगे
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग चुनाव होने की वजह से खर्चा भी ज्यादा होता है। इसके लिए 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों का हवाला दिया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2009 के लोकसभा चुनावों में 1,115 करोड़ रुपए का खर्च हुआ, जबकि 2014 के चुनावों में 3,870 करोड़ रुपए खर्च हुए। इन सबके अलावा राज्यों के विधानसभा चुनावों का खर्च अलग है। हालांकि, इलेक्शन कमीशन ने अनुमान लगाया है कि अगर देश में एकसाथ चुनाव होते हैं, तो लगभग 4,500 करोड़ रुपए का खर्चा आएगा।
एक देश में एक चुनाव क्या वाकई संभव है?
एक देश-एक चुनाव का आईडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है और वो कई बार अपने इस आईडिए का जिक्र कर चुके हैं। पीएम मोदी कई रैलियों में कह चुके हैं कि देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होने चाहिए, क्योंकि इससे पैसे की बचत होगी। हालांकि, इसके पीछे जानकारों का मानना है कि पीएम मोदी का ये आईडिया आर्थिक से ज्यादा राजनैतिक है और राजनीति में कोई भी चीज बिना फायदे के नहीं की जाती। इसके अलावा मोदी के इस आईडिए को पूरा करने के लिए सबसे जरूरी चीज जो है, वो है "सहमति।" एक साथ लोकसभा-विधानसभा चुनाव कराने के लिए सभी राजनैतिक दलों की सहमति जरूरी है। इसके साथ ही अगर मोदी सरकार एक साथ चुनाव कराना चाहती है तो संविधान में संशोधन करना होगा।
Created On :   30 March 2018 12:20 PM IST