दिल्ली हार पर संघ की नसीहत, हर बार मोदी और शाह मदद नहीं कर सकते

Sanghs advice on Delhi defeat, Modi and Shah cant help every time
दिल्ली हार पर संघ की नसीहत, हर बार मोदी और शाह मदद नहीं कर सकते
दिल्ली हार पर संघ की नसीहत, हर बार मोदी और शाह मदद नहीं कर सकते
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  • दिल्ली हार पर संघ की नसीहत
  • हर बार मोदी और शाह मदद नहीं कर सकते

नई दिल्ली, 21 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा सदमे में है। अंदरखाने दिल्ली भाजपा में नेतृत्व के प्रति गहरा असंतोष पनप रहा है। छोटे बड़े कई भाजपा नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व को पत्र लिखकर पार्टी के कामकाज और विधानसभा चुनाव में पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़ा कर दिया है।

इस बीच राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने भी भाजपा की हार पर नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया है। संघ ने उम्मीदवारों के चयन पर सवाल उठाया है, साथ ही कहा कि जमीनी स्तर पर संगठन कमजोर हुआ है, जिससे पार्टी की चुनाव में दुर्गति हुई।

हार के कारणों की समीक्षा करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनता पार्टी को कड़ी नसीहत दी है।

संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने लिखा है कि कोई गलत उम्मीदवार सिर्फ यह कहकर नहीं बच सकता कि वह एक अच्छी पार्टी से है। यही नहीं, हर बार मोदी और शाह मदद नहीं कर सकते। दीनदयाल उपाध्याय का संदर्भ देते हुए अखबार ने लिखा है कि बुराई हमेशा बुराई रहेगी।

लेख में कहा गया है कि दिल्ली में 2015 के बाद भाजपा की जमीनी स्तर ढांचे को पुनर्जीवित करने और चुनाव के आखिरी चरण में प्रचार-प्रसार को चरम पर ले जाने में नाकामी हार का बड़ा कारण बनी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह हमेशा विधानसभा स्तर के चुनावों में मदद नहीं कर सकते। दिल्ली में संगठन का पुनर्गठन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने लिखा है, दिल्ली जैसे बड़े शहर में मतदाताओं के व्यवहार को समझने की जरूरत है। भाजपा द्वारा उठाया गया शाहीन बाग का मुद्दा फेल हो गया, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने इस पर स्पष्ट रुख साफ कर दिया। इसके साथ ही केतकर ने भाजपा को केजरीवाल के नए भगवा अवतार के लिए चेताया और कहा कि इस पर नजर रखने की जरूरत है।

गौरलतब है कि पार्टी के कई नेताओं की राय भी संघ के विचार से मिलती जुलती रही है। एक नेता ने तो चुनाव प्रचार के दौरान ही बताया था कि दिल्ली के भाजपा कार्यकर्ता चुनाव के दौरान ज्यादा उत्साहित नहीं दिखे। अगर बाहर से कार्यकताओं की फौज नहीं आती तो, परिणाम और भी चिंताजनक होता।

नाम नहीं छापने की शर्त पर एक नेता ने बताया कि सत्ता में नहीं आने की आशंका तो थी, लेकिन इस कदर हार जाएंगे, इसका थोड़ा भी अहसास नहीं था।

Created On :   21 Feb 2020 10:30 AM GMT

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