किशोरों से नरम बर्ताव उन्हें जघन्य अपराधों में लिप्त होने को प्रोत्साहित करता है : सुप्रीम कोर्ट

Soft treatment to juveniles encourages them to indulge in heinous crimes: Supreme Court
किशोरों से नरम बर्ताव उन्हें जघन्य अपराधों में लिप्त होने को प्रोत्साहित करता है : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली किशोरों से नरम बर्ताव उन्हें जघन्य अपराधों में लिप्त होने को प्रोत्साहित करता है : सुप्रीम कोर्ट
हाईलाइट
  • विश्वास पैदा करने वाले सबूत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उसे यह आभास होने लगा है कि सुधार लाने के उद्देश्य से किशोरों के साथ जिस नरमी से पेश आया जाता है, वह जघन्य अपराधों में लिप्त होने के लिए उन्हें प्रोतसाहित कर रहा है।

जस्टिस अजय रस्तोगी और जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा, हम यह देखना चाहेंगे कि भारत में किशोर अपराध की बढ़ती दर चिंता का विषय है और इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। पीठ ने कहा कि हमारे देश में एक विचारधारा मौजूद है, जो दृढ़ता से मानती है कि अपराध कितना भी जघन्य क्यों न हो, चाहे वह एकल दुष्कर्म, गैंगरेप, नशीली दवाओं की तस्करी या हत्या हो, लेकिन अगर आरोपी किशोर है, तो उसे रखते हुए निपटा जाना चाहिए। मन में केवल एक ही बात है, सुधार का लक्ष्य।

पीठ ने आगे कहा, जिस विचारधारा के बारे में हम बात कर रहे हैं, उसका मानना है कि सुधार का लक्ष्य आदर्श है। जिस तरह से किशोरों द्वारा समय-समय पर क्रूर और जघन्य अपराध किए गए हैं और अभी भी किए जा रहे हैं, हमें आश्चर्य होता है कि क्या अधिनियम, 2015 (किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015) ने अपने उद्देश्य का पालन किया है।

शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणियां कीं कि शुभम सांगरा - 2018 में जम्मू-कश्मीर के कठुआ में आठ साल की खानाबदोश लड़की से सनसनीखेज गैंगरेप और हत्या के मुख्य आरोपी - अपराध के समय नाबालिग नहीं थे। उसे एक वयस्क के रूप में आजमाया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कठुआ और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया।

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस पारदीवाला ने कहा, हमने यह धारणा बनानी शुरू कर दी है कि सुधार के लक्ष्य के नाम पर किशोरों के साथ जिस तरह की नरमी बरती जाती है, वह इस तरह की जघन्य अपराध वाली गतिविधियों में शामिल होने के लिए उनका हौसला बढ़ा रही है। यह सरकार को विचार करना है कि क्या 2015 का अधिनियमन प्रभावी साबित हुआ है या इस मामले में अभी भी कुछ करने की जरूरत है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।

पीठ ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम से जुड़े परोपकारी कानून के सिद्धांत का लाभ केवल ऐसे मामलों तक बढ़ाया जाएगा, जिसमें अभियुक्त को कम से कम प्रथम दृष्टया साक्ष्य के आधार पर किशोर के रूप में उसके अल्पसंख्यक होने के बारे में विश्वास पैदा करने वाले सबूत के आधार पर किशोर माना जाता है।

अदालत ने इस मामले में कहा कि अभियुक्तों के अपराध या निर्दोषता को उन साक्ष्यों के आधार पर कड़ाई से निर्धारित किया जाएगा जो मुकदमे के समय अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष की ओर से पेश किए जाएंगे। पीठ ने कहा, इस फैसले में सभी टिप्पणियां केवल किशोरावस्था तय करने के उद्देश्य से की गईं हैं।

 

आईएएनएस

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Created On :   16 Nov 2022 5:30 PM GMT

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