कांग्रेस, सीपीसी के बीच समझौते के खिलाफ जनहित याचिका पर सुप्रीम ने जताई हैरानी
नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के बीच 2008 के समझौते की जांच के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए)/सीबीआई को निर्देश देने वाली एक जनहित याचिका पर आश्चर्य व्यक्त किया।
यह समझौता कथित तौर पर उच्च-स्तरीय सूचनाओं के आदान-प्रदान और गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत उनके बीच सहयोग के लिए किया गया था।
प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने हैरानी जताते हुए कहा कि किसी विदेशी सरकार द्वारा किसी दूसरे देश के राजनीतिक दल के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के बारे में पहले कभी नहीं सुना। शीर्ष अदालत ने पीआईएल पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता शशांक शेखर झा और गोवा से संचालित गोवा क्रोनिकल के संपादक सेवियो रॉड्रिग्स से अपील की कि वे याचिका को वापस लें और इसे लेकर हाईकोर्ट के समक्ष जाएं।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा, चीन के साथ एक राजनीतिक दल कैसे समझौता कर सकता है? वकील ने दलील दी कि समझौता सार्वजनिक (पब्लिक डोमेन) नहीं है और सोमवार को आगे की दलीलों के लिए मामले को सूचीबद्ध करने के लिए अदालत की अनुमति मांगी।
पीठ ने जवाब दिया कि वह वकील को इस मामले को वापस लेने और नए सिरे से फाइल करने की अनुमति दे रहे हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने वकील से कहा कि हम केवल एक नई याचिका देखना चाहते हैं और आप हाईकोर्ट में क्यों नहीं गए? वकील ने दलील दी कि सभी अपराध यूएपीए के तहत हैं और इसकी जांच एनआईए कर सकती है। इसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट उचित न्यायालय है और सभी राहत उसी के द्वारा दी जा सकती है। पीठ ने कहा, हम इस पर उनका ²ष्टिकोण भी देख सकते हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चीन के साथ शत्रुतापूर्ण संबंध होने के बावजूद, आईएनसी ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जब वह गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे और समझौते के तथ्यों और विवरणों को भी छिपाया गया।
याचिका में दलील दी गई, याचिकाकर्ताओं का ²ढ़ विश्वास है कि राष्ट्र की सुरक्षा से किसी को भी समझौता नहीं करना चाहिए और न ही करना चाहिए। इसलिए, इस याचिका को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत स्थानांतरित किया गया है, जो समझौते के बारे में पारदर्शिता और स्पष्टता लाना चाहती है। रेस्पॉन्डेंट नंबर 1 (आईएनसी) और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हस्ताक्षर किए गए, जो कि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की वास्तविक सरकार है।
यह समझौता 7 अगस्त, 2008 को संप्रग शासन के दौरान बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) और आईएनसी के बीच उच्च-स्तरीय सूचनाओं और उनके बीच सहयोग का आदान-प्रदान करने के लिए हुआ था। इस पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से कांग्रेस को घेरा गया और चीन के साथ होने का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद राजनीतिक विवाद हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
Created On :   7 Aug 2020 5:01 PM IST