अवध का प्रिंस था ये शख्स, दिल्ली के जंगलों में मिली 'गुमनाम मौत'

The lonely death of Awadh Prince Ali Raza
अवध का प्रिंस था ये शख्स, दिल्ली के जंगलों में मिली 'गुमनाम मौत'
अवध का प्रिंस था ये शख्स, दिल्ली के जंगलों में मिली 'गुमनाम मौत'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। खुद को अवध का प्रिंस बताने वाले प्रिंस अली रजा उर्फ साइरस आज इस दुनिया में नहीं हैं। उनकी आधी से ज्यादा जिंदगी गुमनामी में बीती और उनकी मौत भी गुमनामी में ही हुई। बताया जा रहा है कि अली रजा की मौत हुए एक महीना हो चुका है, लेकिन इस बारे में किसी को जानकारी नहीं थी। प्रिंस अली रजा राजकुमारी सकीना महल के साथ दिल्ली के मालचा महल में रहा करते थे। ये महल पूरी तरह से खंडहर हो चुका था और यहां पर न ही पानी था और न ही बिजली। 

Prince Cyrus' mattress by an arch

 

12 कुत्तों के साथ रहा करते थे प्रिंस अली

 

बताया जाता है कि प्रिंस अली रजा मालचा महल में राजकुमारी सकीना महल और 12 कुत्तों के साथ रहा करते थे। मालचा महल सेंट्रल रिज के घने जंगलों के बीच है। इस महल में ही न ही पानी की कोई सुविधा है और न ही बिजली की। इसके बावजूद प्रिंस अली रजा ने अपना जीवन यहां बिताया। प्रिंस के पास कोई गाड़ी नहीं थी और वो हमेशा केवल एक साइकिल से ही चला करते थे। इतना ही नहीं प्रिंस राजकुमारी सकीना के गहने बेचकर कुत्तों के लिए हड्डी और अपने लिए खाना लेकर आते थे। कहा जाता है कि प्रिंस अली रजा और राजकुमारी सकीना की शादी काफी कम उम्र में ही हो गई थी। 

 

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गरीबी के बावजूद देसी घी में खाना खाते थे प्रिंस

प्रिंस अली रजा इतनी गरीबी होने के बाद भी देसी घी में खाना खाते थे। मालचा महल पूरी तरह से जर्जर और खंडहर हो चुका था। इस महल में प्रिंस के पास न ही सोफा था और न ही कोई बिस्तर। बताया जाता है कि प्रिंस अली जमीन पर कालीन बिछाकर सोया करते थे। प्रिंस अली और राजकुमारी सकीना जिस मालचा महल में रहते थे, उस महल को मुस्लिम शासक फिरोजशाह तुगलक ने बनवाया था। फिरोजशाह इसे शिकारगाह की तरह इस्तेमाल करते थे। 

The dirty table, where Prince Cyrus once entertained

1975 में दिल्ली आया था प्रिंस का परिवार

 

प्रिंस अली उर्फ साइरस की मां विलायत महल खुदको अवध राजघराने की बेगम बताती थीं और उनका दावा था कि वो अवध के नवाब की करीबी वारिस हैं। 1970 के दशक में विलायत महल अपने बेटे अली रजा और बेटी सकीना महल के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आईं थीं। उनके साथ 7 नेपाली नौकर और करीब 15 कुत्ते भी आए थे। विलायत महल करीब 10 साल तक नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के वीआईपी लाउंज में ही रहीं और भारत सरकार के खिलाफ धरना दिया। उनकी मांग थी कि जब तक भारत सरकार उनके परिवार के बलिदान को मान्यता नहीं देती है, वो अपने लोगों के साथ यहीं रहेंगी। 

 

दिल्ली

 

इंदिरा गांधी से मिलने के बाद छोड़ी जिद

 

जब विलायत महल से बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला तो सरकार को झुकना पड़ा। उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विलायत महल से मुलाकात की, जिसके बाद उन्होंने अपनी जिद छोड़ी। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें रहने के लिए दिल्ली में कोई सेफ जगह दी जाए। तब जाकर सरकार ने उन्हें सेंट्रल रिज के घने जंगलों के बीच बने मालचा महल रहने को दिया। इस महल में न ही पानी-बिजली थी और न ही खिड़की-दरवाजे। बावजूद इसके विलायत महल ने रहना शुरू किया। 1985 में उन्होंने प्रिंस अली रजा और राजकुमारी सकीना के साथ रहना शुरू किया। 10 सितंबर 1993 में विलायत महल ने आत्महत्या कर ली। 

 

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चोरी के बाद कीमती सामान हटाया

 

बताया जाता है कि मालचा महल में एक बार चोरी के बाद से सारा कीमती सामान हटा दिया गया था। इस महल में पहले चांदी के टेबल, बर्तन और जूलरी भी थी, लेकिन अब ये सारे सामान महल से हटा लिए गए हैं। कहा जाता है कि कुछ साल पहले बावरिया गैंग ने प्रिंस के सभी कुत्तों को जहर देकर मार डाला था और महल में चोरी कर ली थी। जिसके बाद पुलिस ने उन्हें सभी कीमती सामान हटाने की हिदायत दी। एक बार प्रिंस ने बताया था कि उनके पास एक तोप भी है, जिसे खरीदने के लिए बड़े बिजनेस घराने से ऑफर आ चुके हैं, लेकिन उन्होंने बेचने से साफ मना कर दिया था, क्योंकि तोप घराने की शान थी।

Carpets near a series of stone arches

 

Created On :   6 Nov 2017 1:02 PM IST

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