14 दीपक सहस्रदल कमल, ऐसे करें शिव-हरि को एक साथ प्रसन्न
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक मास हिंदू धर्म शास्त्रों में अत्यंत ही पवित्र माना गया है। इस माह में सूर्य के निकलने से पहले पवित्र नदी, तालाबों का स्नान व भगवान विष्णु की पूजा पुण्यकारी मानी गई है। कहा जाता है कि ऐसा करने से वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। ठीक इसी प्रकार कार्तिक माह में वैकुण्ठ चतुर्दशी का दिन आता है। जब विष्णुदेव पुनः सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव से स्वीकारते हैं। इस दिन को लेकर कहा जाता है कि कार्तिक माह की चतुर्दशी को भगवान विष्णु ने स्वयं शिव को प्रसन्न करने के लिए पवित्र नदी में स्नान कर पूजा की थी।
परीक्षा लेने कर दिए थे गायब
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु स्नान के उपरांत एक हजार कमल के पुष्पों से भगवान शिव की पूजा कर रहे थे। तभी शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए कमल के पुष्प में से कुछ गायब कर दिए। श्रीहरि पूजन कर रहे थे तभी उन्होंने देखा कि एक कमल का पुष्प कम है। तभी उन्होंने सोचा की उनके नेत्र भी तो कमल के समान ही माने गए हैं अतः पूजन पूर्ण करने के लिए विष्णुदेव ने अपना एक नेत्र निकालकर शिव को समर्पित कर दिया।
पूजन से पूर्ण होंगे सभी मनोरथ
ऐसा करते ही भगवान शिव उनके समक्ष प्रकट हो गए और कहा, हे हरि आपके समान मेरा दूसरा भक्त इस संसार में नहीं हो सकता। कार्तिक माह की चतुर्दशी के दिन यह शुभ पूजन किया गया है। अतः आज का दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाएगा। इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से विष्णु और शिव का सहस्रदल कमल पुष्प से पूजन करेगा उसके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।
दीपदान की परंपरा
चतुर्दशी पर दीपदान करने की भी परंपरा है। इसे अति पुण्यकारी माना गया है। यह व्रत कर नदी, सरोवर के तट पर 14 दीपक जलाने से स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं।
Created On :   1 Nov 2017 4:23 AM GMT