उफान आना जरूरी, पोंगल में इस परपंरा का है खास महत्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मकर संक्रांति, बिहु और लोहड़ी की ही तरह दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला त्योहार है पोंगल। सौर पंचांग के अनुसार यह तमिल माह की पहली तारीख को यह त्योहार मनाए जाने की परंपरा है। यह विशेष रूप से किसानों का त्योहार है। इसे सर्वाधिक तमिलनाड़ू में धूमधाम से मनाया जाता है। पोंगल पर्व को 3-4 दिन तक मनाया जाता है। हर दिन के लिए अलग-अलग तरह की परंपराएं हैं और प्रत्येक दिन का अपना अलग ही महत्व है। पहले दिन कूड़ा-करकट एकत्र कर जलाया जाता है जबकि दूसरे दिन माता लक्ष्मी की पूजा होती है वहीं इस पर्व की कड़ी के तीसरे और अंतिम दिन पशु धन को पूजा जाता है।
रंगकर होती है पशुधन की पूजा
इसे हर साल जनवरी माह के मध्य में मनाया जाता है। इसे लोग अपनी अच्छी फसल होने पर बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। जनवरी के समान ही तमिल पंजाग में तई नामक माह की पहली तारीख को इसे मनाया जाता है, जो कि आमतौर पर 14 से 15 जनवरी ही होता है। इस त्योहार के तीसरे दिन गाय, बैल को रंगों से सजाकर उन्हें अच्छा भोजन कराया जाता है। क्योंकि किसानों के लिए यही सबसे बड़ा धन होता है।
ऐसे पकाते हैं खिचड़ी
मकर संक्रांति के समान ही इस दिन भी खिचड़ी का महत्व है। पोंगल अर्थात खिचड़ी का यह त्योहार सूर्य के उत्तरायण होने पर मनाते हैं। इसे पुण्यकाल माना जाता है। हल्दी की जड़ की गांठ को खुले आंगन में पीले धागे में पिरोया जाता है। इसके बाद उसे पीतल के बर्तन में बांधा जाता है। इसके पश्चात उसमें चावल, मूंग दान की खिचड़ी पकाई जाती है। जब इस खिचड़ी में उफान आ जाता है तो इसमें घी व दूध डालते हैं। उफान आते ही परिवार के सभी लोग ढोल बाजे की आवाज के साथ पोंगल-पोंगल की आवाज निकालते हैं और अपनी खुशी प्रकट करते हैं। यह समृद्धि का प्र्रतीक माना जाता है। बैलों या सांडों की लड़ाई जल्लीकट्टू का आयोजन भी इसी त्योहार के दौरान किया जाता है।
Created On :   7 Jan 2018 9:47 AM IST