149 साल बाद आया ऐसा चंद्रग्रहण, इन बातों का खास तौर पर रखें ध्यान

The lunar eclipse On July 16, this time Keep these things in mind
149 साल बाद आया ऐसा चंद्रग्रहण, इन बातों का खास तौर पर रखें ध्यान
149 साल बाद आया ऐसा चंद्रग्रहण, इन बातों का खास तौर पर रखें ध्यान

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सूर्य ग्रहण के बाद अब चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है। सूर्य ग्रहण को भारत में नहीं देखा जा सका था, लेकिन चंद्रग्रहण को संपूर्ण भारत में देखा जा सकेगा। इसके पहले पिछले वर्ष 28 जुलाई 2018 को भी चंद्रग्रहण दिखाई दिया था। इस बार चंद्र ग्रहण पर वही दुर्लभ योग बन रहे हैं जो 149 साल पहले 12 जुलाई 1870 को गुरु पूर्णिमा पर बने थे। रात करीब 1.30 बजे से ग्रहण शुरू हो जाएगा जो सुबह करीब 4.30 बजे खत्म होगा।

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार चंद्र ग्रहण आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में लग रहा है। यह चंद्रग्रहण खंडग्रास चंद्र ग्रहण कहा जा रहा है। गुरु पूर्णिमा को लगातार दूसरी बार चंद्रग्रहण होने जा रहा हैं। ग्रहण से जुड़ी कई सारी भ्रांतियां हैं, जिन्हें लेकर मन में संकोच होता है। ऐसे में bhaskarhindi.com पर पंडित सुदर्शन शर्मा शास्त्री बता रहे हैं ग्रहण से जुड़ी कुछ खास बातें...

क्या है ग्रहण ?
:- किसी खगोलीय पिंड का पूर्ण या आंशिक रूप से किसी अन्य पिंड से ढंक जाना या पीछे आ जाना ग्रहण कहलाता है। सूर्य प्रकाश पिंड हैं। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता हैं। पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य तीनों जब एक सीध में आ जाते हैं तब ग्रहण होता है। 

सूर्य ग्रहण
:-जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता हैं तब सूर्य ग्रहण होता है। 

चंद्र ग्रहण
:-जब पृथ्वी  सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती हैं तब चंद्रग्रहण होता हैं। पृथ्वी जब चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को रोकती हैं और उसमें अपनी ही छाया बनाती हैं तो चंद्र ग्रहण होता हैं।

सुतक या वेध  
:- सुतक सभी वर्णो में लगता हैं, सूर्य ग्रहण का सूतक चार प्रहर पूर्व से यानी 12 घंटे पहले से लग जाता है, जबकि चंद्र ग्रहण का वेध तीन प्रहर यानि 9 घंटे पहले से प्रारंभ हो जाता है। अबाल वृद्ध बालक रोगी इनके लिए डेढ़ प्रहर यानि साढे चार घंटे पूर्व वेध प्रारंभ हो जाता है।

ग्रहण काल में नहीं करना चाहिए भोजन  
:- ग्रहण काल में कीटाणु, जीवाणु अधिक मात्रा में फैलते हैं खाने पीने के पदार्था में वे फैलते हैं इसलिए भोजन नहीं करना चाहिए, पका हुआ नहीं खाना चाहिए। कच्चे पदार्थों कुशा छोड़ने से जल में कुशा छोड़ने से जीवाणु कुशा में एकत्रित हो जाते हैं पात्रो में अग्नि डालकर स्नान करने से शरीर में उष्मा का प्रभाव बढ़े और भीतर बाहर के किटाणु नष्ट हो जाते हैं। 
प्रोफेसर टारिंस्टन ने अनुसंधान कर बताया कि ग्रहण समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर होती हैं जिससे शारिरिक मानसिक हानि पहुंचती हैं।

ग्रहण काल में क्या करें ?
:- ग्रहण के वेध काल में तथा ग्रहण काल में भी भोजन नहीं करना चाहिए। देवी भागवत के अनुसार सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के समय जो मनुष्य जितने अन्न के दाने खाते हैं उतने वर्षा तक अरूतुंद नरक में वास करता हैं और उदर रोगी, गुल्मरोगी , काना तथा दंतहीन होता हैं।  

ग्रहण काल में क्या ना करें ?
कोई भी शुभ काम या नया कार्य नहीं करना चाहिए। ग्रहण समय में सोने से रोगी, लघुशंका से दरिद्र, स्त्री प्रसंग से सुअर तथा उबटन लगाने से कोढ़ी होता है। ग्रहण काल में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल मूत्र त्यागना, बाल काटना, मंजन करना, रति क्रिया करना मना है। पत्ते, तिनके, फूल, लकड़ी नहीं तोड़ना चाहिए। 
गर्भवती स्त्रियां ध्यान रखें ये बातें
:- गर्भवती स्त्रीयां के गर्भ के लिए ग्रहण हानिकारक होता है। शास्त्रों में गर्भवती स्त्रियों के लिए कुछ नियम बताए गए हैं। जिनका ध्यान रखना चाहिए। 

1- गर्भवती स्त्रियों को कोई भी ग्रहण चाहे वह सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण हो, नहीं देखना चाहिए 
2- गर्भवती स्त्रियों को संपूर्ण ग्रहण काल में सोना नहीं चाहिए।
3- ग्रहण के समय गर्भवती स्त्रियों को किसी भी प्रकार की नुकीली वस्तु, धारदार वस्तु जैसे चाकू, छूरी आदि को स्पर्श न करें 
4- गर्भवती स्त्रियों को ग्रहण काल में सुखासन में बैठना चाहिए और अपनी गोद में नारियल लेकर भगवान कृष्ण का नाम स्मरण करना चाहिए।  श्रीकृष्ण शरणम् मम् इस मंत्र का जप कर सकते हैं या संतान गोपाल मंत्र ‘‘ओम देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगतपते , देहि में तनयं कृश्ण त्वामहं षरणं गतः ’’ या अन्य भी जप, ध्यान आदि करना चाहिए तथा ग्रहण मोक्ष होने पर गोद के नारियल को नदी या कुंए में प्रवाहित करें। 

Created On :   8 July 2019 12:22 PM GMT

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