MP Politics: नेता प्रतिपक्ष ने कोर्ट में लगाई थी याचिका, बीना विधायक सप्रे की बढ़ीं मुश्किलें, सरकार- विस अध्यक्ष और सप्रे को नोटिस

डिजिटल डेस्क, भोपाल। कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुईं बीना विधायक निर्मला सप्रे के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की याचिका पर सुनवाई की। हाई कोर्ट ने मामले में बीना विधायक निर्मला सप्रे, मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने सभी पक्षों से 10 दिन में जवाब मांगा है।
इसके साथ ही मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि सभापति ने 16 माह बीत जाने के बाद भी दल-बदल याचिका पर निर्णय क्यों नहीं दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पाडी कौशिक रेड्डी बनाम तेलंगाना राज्य और केशम बनाम मणिपुर राज्य मामलों में स्पष्ट कहा है कि ऐसी याचिकाओं का निपटारा तीन माह के भीतर किया जाना चाहिए। निर्मला सप्रे ने कांग्रेस की टिकट पर पिछला विधानसभा चुनाव जीता था।
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लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। दलबदल कानून के तहत उमंग सिंघार ने निर्मला सप्रे का चुनाव शून्य घोषित करने की मांग की थी। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को सिंघार ने सप्रे के मामले में आवेदन दिया था। याचिका पर विधानसभा अध्यक्ष ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया जिसके बाद सिंघार ने कोर्ट में याचिका लगाई थी। अब विधायक निर्मला सप्रे की मुश्किलें बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।
गौरतलब है कि निर्मला सप्रे ने लोकसभा चुनाव के दौरान एक रैली में भाजपा का दामन थामा था। उसके बाद कई बार वो भाजपा कार्यालय में भी देखी गईं, लेकिन भाजपा में शामिल होने को लेकर स्पष्ट जवाब न निर्मला सप्रे ने दिया और न ही भाजपा के पदाधिकारी दे पाए। तब से ये संशय बरकरार है कि आखिल निर्मला सप्रे किस पार्टी में हैं। हालांकि कांग्रेस ने साफ कह दिया था कि दलबदल करने वाले नेताओं की कांग्रेस में इंट्री नहीं होगी।
नेता प्रतिपक्ष ने कोर्ट में चुनाव शून्य करने की याचिका लगाई थी जिसपर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार, विधानसभा अध्यक्ष और निर्मला सप्रे को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सिंघार की ओर से अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल और जयेश गुरनानी ने पैरवी की। अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि सभापति ने संविधान की दसवीं अनुसूची और अनुच्छेद 191(2) के प्रावधानों का उल्लंघन किया है। यदि कोई विधायक दल बदलता है तो उसकी सदस्यता समाप्त होनी चाहिए। विधायक बनने के लिए उसे फिर से चुनाव लड़ना आवश्यक है।। वहीं राज्य की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने पक्ष रखा।
Created On :   8 Nov 2025 6:24 PM IST












