डॉ. रुख्माबाई राउत की जयंती पर गूगल ने डूडल बनाकर दी श्रद्धांजलि
डिजिटल डिस्क, नई दिल्ली। गूगल ने डूडल बनाकर औपनिवेशिक भारत में महिला डॉक्टरों में से पहली अभ्यास करने वाली महिला डॉक्टर रुख्माबाई राउत को श्रद्धांजलि दी है। रुख्बामाई की आज 153वीं जयंती है। रुख्बामाई बहुत ही साहसी महिला थीं। उन्होंने ब्रिटिश दौर में वो कर दिखाया था जो किसी महिला ने कभी सोचा नहीं था। गुलामी की मार झेल रहे भारत को रुख्माबाई के रूप एक ऐसी महिला मिली जिन्होंने नारी समाज के लिए एक उदाहरण पेश किया कि मुश्किलें कितनी भी हों अगर जज्बा सच्चा हो तो राह खुद ही बन जाती है।
11 साल की उम्र में बन गई थी बालिका वधु
डॉक्टर रुख्माबाई का जन्म बॉम्बे के एक मध्यमवर्गीय परिवार में 22 अक्टूबर 1864 को हुआ था। जब लड़कियों की गुड्डे गुड़ियों से खेलने की उम्र होती है तब उनका विवाह उनकी मर्जी के बिना मात्र 11 साल की उम्र में दादाजी भीकाजी (19) से कर दिया गया था। यह वो दौर था जब बाल विवाह प्रथा अपने चरम पर थी। विवाह होने के बाद भी वह अपनी विधवा मां जयंतीबाई के घर में रहती रहीं। जब दादाजी और उनके परिवार ने रुख्माबाई को अपने घर जाने के लिए कहा, तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया।
मार्च 1884 में दादाजी ने वैवाहिक अधिकारों को पुनर्स्थापित करने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें कोर्ट ने रुख्माबाई से कहा कि वह या तो अपने पति के साथ रहें या जेल जाएं। रुख्माबाई ने इस बात पर बड़ी ही निडरता से जवाब दिया कि वह जेल जाना ज्यादा पसंद करेंगी। उन्होंने कोर्ट से कहा कि दोबारा शादी नहीं कर सकती, क्योंकि वह कम उम्र में एक शादी कर चुकी थी। उस समय वह बहुत छोटी थी और अपनी सहमति नहीं दे पाई थी। उनका यह तर्क इसे पहले किसी भी अदालत ने नहीं सुना था। इस प्रकार 1891 में संधि अधिनियम की आयु पारित करने के लिए प्रेरित किया।
रुख्माबाई ने अपने तर्कों के माध्यम से 1880 के दशक के दौरान इस मामले का ध्यान प्रेस की तरफ ले जाने में सफल रहीं थी। इस प्रकार रमाबाई रानाडे और बेहरजी मालाबारी सहित कई सामाजिक सुधारकों के नोटिस में यह मामला आया। आखिरकार, रुख्माबाई के पति दादाजी ने शादी को भंग करने के लिए मौद्रिक मुआवजा स्वीकार किया। इस समझौते के कारण रुख्माबाई जेल जाने से बच गईं थी।
लगातार विभिन्न पत्रों में लिखने वाली रुख्माबाई ने जब इच्छा जताई कि वह डॉक्टरी की पढ़ाई करना चाहती हैं तो उनके लिए फंड की व्यवस्था की गई और वह लंदन के स्कूल ऑफ मेडिसिन में चिकित्सा की पढ़ाई करने गईं। इसके बाद वह एक योग्य फिजीशियन बनकर लौटीं। एक डॉक्टर के अलावा उन्होंने समाजसेवी के रूप में भी समाज के हित के लिए काम किए। रुख्माबाई ने समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे- बाल विवाह और पर्दा प्रथा का भी जमकर विरोध किया। उन्हे एक प्रखर नारीवादी के रूप में भी जाना जाता है।
उनकी मृत्यु 25 सितंबर, 1955 में 91 वर्ष की आयु में हो गई थी।
Created On :   22 Nov 2017 9:49 AM IST