Mohan Bhagwat on RSS 100 years: 'अगर हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो हम किसी को छोड़ रहे हैं', RSS के 100 साल पूरा होने पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का बड़ा बयान

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में मंगलवार को '100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज' कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के चीफ मोहन भागवत शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा कि अगर हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो हम किसी को छोड़ रहे हैं, यह ठीक नहीं है। हम किसी के विरोध में नहीं हैं। भागवत ने अपने संबोधन के दौरान हिंदू राष्ट्र, राष्ट्रीय एकता, विविधता और जिम्मेदारी जैसे कई अहम मुद्दों पर अपने विचार रखे। करीब 40 मिनट के लंबे भाषण में उन्होंने इतिहास, समाज और राजनीति से जुड़े कई पहलुओं का जिक्र किया।
हम किसी के विरोध में नहीं हैं - मोहन भागवत
मोहन भागवत ने कहा कि जब हम हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं तो लोग सवाल उठाते हैं। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया, "हमारा राष्ट्र पहले से ही है। अगर हिंदू शब्द हटा भी दें, तब भी उस पर विचार करना चाहिए। हिंदू राष्ट्र का मतलब किसी को अलग करना नहीं है।" अगर हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो हम किसी को छोड़ रहे हैं, यह ठीक नहीं है। हम किसी के विरोध में नहीं हैं।
मोहन भागवत ने कहा कि आजादी से पहले कुछ लोगों ने जनता के गुस्से और आक्रोश को अपने वश में किया और वहीं से कांग्रेस का जन्म हुआ। उन्होंने कहा, "कांग्रेस के जन्म से कई अन्य राजनीतिक धाराएं भी निकलीं।"
भागवत ने कहा कि "हिंदू" नाम हमें बाहर के लोगों ने दिया है। उन्होंने कहा, “हम कभी मनुष्यों में अंतर नहीं करते थे। हमारे देश में कई धर्म थे लेकिन सबका स्वभाव स्वीकार करने वाला था। ऐसी श्रद्धा रखने वालों को ही हिंदू कहा गया। दूसरों की भी श्रद्धा का सम्मान करो, उसका अपमान मत करो। सब इसी मिट्टी से बने हैं, मिलजुलकर रह सकते हैं, फालतू में झगड़ा क्यों करते हो।"
आरएसएस प्रमुख ने साफ किया कि हिंदू होने का मतलब दूसरों के खिलाफ खड़े होना नहीं है। उन्होंने कहा, "हिंदू कहते हैं, पर हिंदू बनाम ऑल कभी नहीं होता। हिंदू का स्वभाव ही समन्वय में है, संघर्ष में नहीं।" मोहन भागवत ने कहा कि हमारे देश में कन्वर्टेड मुसलमान भी हैं। उन्होंने कहा कि सब इसी मिट्टी के बने हैं और सबका मूल एक ही है। इसलिए समाज में झगड़ा करने की कोई जरूरत नहीं है।
यह डाइवर्सिटी में यूनिटी का ही एक प्रारूप है
भाषण के लगभग 40 मिनट बाद भागवत ने कहा कि जब संघ शुरू हुआ था तब सबको हिंदू नहीं कहते थे, आज भी नहीं कहते। उन्होंने कहा, "जो जानते हैं पर किसी कारण खुद को हिंदू नहीं कहते, उनको भारतीय कहने से बुरा नहीं लगता। कुछ लोग सनातन स्वीकार करते हैं। उनको हिंदवी कहने से भी बुरा नहीं लगता।” उन्होंने कहा-कहा कि पहले जो खुद को हिंदू कहते हैं, वे अपने जीवन को अच्छा और संगठित करें। तभी बाकी लोग भी साथ आएंगे और जो खुद को भूल गए हैं, उन्हें भी अपनी पहचान याद आएगी।
भागवत ने कहा कि भारत के लोगों का डीएनए पिछले 40,000 वर्षों से एक जैसा है। उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही अखंड है और विविधता में एकता इसकी असली ताकत है। उन्होंने कहा, "हम यह नहीं मानते कि एक होने के लिए सबको एक जैसे कपड़े या एक जैसी सोच रखनी होगी। यह डाइवर्सिटी में यूनिटी का ही एक प्रारूप है।"
मोहन भागवत ने कहा कि देश का उद्धार सिर्फ संघ के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा, “सिर्फ यह कहना कि नेता जिम्मेदार हैं, पार्टी जिम्मेदार है, सरकार जिम्मेदार है और हम सिर्फ मीनमेख निकालेंगे - यह सही नहीं है। देश की जिम्मेदारी हम सबकी है। यह पूरे हिंदू समाज का दायित्व है।” उन्होंने आगे कहा, “आप धुर विरोधी हों तब भी अपने हैं। साथ हों तब भी अपने हैं। हमें सबको मिलकर देश के लिए काम करना होगा।” आरएसएस प्रमुख ने यह भी बताया कि संघ के स्वयंसेवक अनेक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संघ अकेले देश का उद्धारक नहीं है, बल्कि हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी होगी।
बता दें, आरएसएस चीफ मोहन भागवत के कार्यक्रम में कई देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इनमें श्रीलंका, वियतनाम, लाओस, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस, ओमान, इजरायल, नॉर्वे, डेनमार्क, सर्बिया, जर्मनी, नीदरलैंड, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, इटली, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, आयरलैंड, जमैका, अमेरिका, ब्राजील और अर्जेंटीना के प्रतिनिधि मौजूद रहे।
Created On :   27 Aug 2025 2:46 AM IST