भारत को मिला 'पहला ओलंपिक मेडल' नीलाम करने पर मजबूर हुआ दादासाहेब जाधव का परिवार

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ओलंपिक इतिहास में भारत को पहला मेडल जीताने वाले रेसलर खसाबा दादासाहेब जाधव का परिवार अब उनका मेडल नीलाम करने को मजबूर है। जाधव का सपना था कि उनके नाम पर रेसलिंग एकेडमी बनाई जाए। इस सपने को पूरा करने में परिवार असमर्थ है। यही कारण है कि परिवार उनके मेडल को नीलाम करने को मजबूर हो गया है।
खसाबा पहलवान के बेटे रंजीत जाधव ने फोन पर बताया है कि कांस्य पदक की नीलामी का फैसला पीड़ादायक था, क्योंकि अकादमी बनाने के वादे से राज्य सरकार के पीछे हटने के बाद हमारे पास कोई और विकल्प नहीं बचा था।
रंजीत ने कहा कि 2009 में जलगांव में कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान राज्य के तत्कालीन खेल मंत्री दिलीप देशमुख ने घोषणा की थी कि सरकार मेरे दिवंगत पिता के नाम पर सतारा जिले में राष्ट्रीय स्तर की कुश्ती अकादमी बनाएगी। घोषणा को 8 साल बीत गए लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। दिसंबर 2013 में परियोजना के लिए एक करोड़ 58 लाख रुपये स्वीकृत किए गए थे लेकिन यह परियोजना आकार नहीं ले पाई।
रंजीत ने कहा कि मेरे पिता अंतर्मुखी थे और उन्होंने कभी अपनी उपलब्धियों का गुणगान नहीं किया। वह 1984 तक जीवित रहे लेकिन सरकार ने कभी उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया, जो उन्हें उनके निधन के 16 साल बाद मिला। प्रतिष्ठित लोगों को उस समय क्यों नहीं सम्मानित करते जब वे जीवित होते हैं।
गौरतलब है कि खसाबा दादासाहेब जाधव ने 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में व्यक्तिगत खेल में ओलंपिक कांस्य पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने थे। उस समय खसाबा दादासाहेब की उम्र 27 वर्ष थी।
Created On :   26 July 2017 12:38 AM IST