पैरालंपिक में मेडल जीतने का है पक्का इरादा, पिता का सपना पूरा करने मैदान में उतरेंगे देवेंद्र झाझरिया
- पत्नी ने किया खेल न छोड़ने के लिए प्रेरित
- रियो और एथेंस में जीत चुके है पीला तमगा
- स्वर्गवासी पिता के लिए जीतना चाहते है मेडल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के जेवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझरिया ने दो बार पैरालिंपिक में भाग लिया है और दोनों ही बार उन्होंने गोल्ड मेडल जीता है। भारत के पहले पैरालिंपियन हैं झाझरिया जिन्होंने पीला तमगा अपने नाम किया है। देवेंद्र झाझरिया ने अपनी बढ़ती उम्र के साथ अनुभव हासिल किया है। जब वह 2004 में एथेंस पैरालिंपिक में गए थे तब उनकी उम्र 23 साल थी और अब वह 40 साल के हो गए हैं।
उम्र के इस पड़ाव पर भी झाझरिया लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। वह भारत के लिए टोक्यो में जैवलिन थ्रो के इवेंट में पदक के मजबूत दावेदार हैं।
भारतीय एथलेटिक्स में देवेंद्र झाझरिया एक बड़ा नाम हैं। वह जेवलिन थ्रो इवेंट के मौजूदा चैंपियन भी हैं। उन्होंने 2016 में रियो में गोल्ड मेडल हासिल किया था। इससे पहले 2004 में एथेंस में भी उन्होंने सोने का तमगा अर्जित किया था। एथेंस के बाद बीजिंग और लंदन पैरालिंपिक में एफ-46 जैवलिन पैरालिंपिक का हिस्सा नहीं था। भारत के सर्वश्रेष्ठ पैरालिंपियन माने जाने वाले झाझरिया ने रियो में रेकॉर्ड 63.97 मीटर का भाला फेंका था। इसके बाद जुलाई 2021 में 65.71 मीटर भाला फेंककर उन्होंने टोक्यो के लिए क्वॉलिफाइ किया था। वहीं एथेंस में उन्होंने 62.15 मीटर भाला फेंककर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था।
झाझरिया को इस उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 2021 में पद्मश्री से नवाजा जा चुका है। वह यह सम्मान हासिल करने वाले पहले पैरा एथलीट हैं। इससे पहले उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड 2017 में और 2005 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
यह उनका आखिरी पैरालिंपिक मन जा रहा हैं। झाझरिया इसे यादगार बनाने का पूरा प्रयास करेंगे। वह भारत के लिए मेडल जीतने के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं।
करंट के चपेट में आने के कारण खोया बायां हाथ
झांझरिया को आठ साल की उम्र में करंट की चपेट में आने के कारण बाया हाथ खोना पड़ा. बात 1989 की है जब झाझड़िया अपने गाँव चुरू में ढाणी के पास जोहड़ में अन्य बच्चों के साथ खेल रहे थे। खेल के दौरान वह एक पेड़ पर चढ़ गए। पेड़ के पास से गुजर रहे बिजली के तारों के सम्पर्क में आने से झुलसकर नीचे आ गिरे। एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया। परिजन उन्हें तुरंत सरकारी अस्पताल लेकर गए। प्राथमिक उपचार के बाद जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में रैफर किया गया। 15 दिन तक ना दवा लगी और ना ही दुआ काम आई। आखिर डाक्टरों को बायां हाथ काटना पड़ा। आखिरकार अस्पताल से घर आ गए। सबको लगने लगा था कि बदनसीब देवेंद्र अब एक हाथ से जिंदगी में कुछ नहीं कर पाएगा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज इतिहास खुद गवाह है।
पत्नी ने किया खेलने के लिए प्रेरित
दो बार के स्वर्ण पदक विजेता भारतीय भाला फेंक खिलाड़ी देवेंद्र झाझरिया साल 2013 में खेल छोड़ना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। 40 वर्षीय "गोल्डन ब्वॉय" ने कहा कि जब भाला फेंक को 2008 और 2012 पैरालंपिक से बाहर कर दिया गया तो वह खेल छोड़ने के कगार पर थे लेकिन पत्नी के मान मनोबल के बाद उन्होंने इसे जारी रखा। आपको बता दें कि झझारिया की पत्नी मंजू पूर्व राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी हैं।
पिता के लिए जीतना चाहते है मेडल
देवेंद्र झाझरिया को पैरालंपिक चैंपियन बनाने में उनके माता-पिता का बहुत बड़ा हाथ है। देवेंद्र जब पहली बार 2004 के एथेंस पैरालंपिक में खेलने जा रहे थे तो उन्हें विदाई देने वाले अकेले उनके पिता राम सिंह थे। उस वक्त उनके पिता ने देवेंद्र से कहा था यहां से अकेले जा रहे हो लेकिन वहां पदक जीता तो दुनिया पीछे होगी। दो बार के पैरालंपिक चैंपियन भावुक देवेंद्र ने कहा कि वह अपने पिता के लिए टोक्यो में तीसरा पैरालंपिक स्वर्ण जीतने के लिए जी-जान लगा देंगे। देवेंद्र के मुताबिक बीते वर्ष अक्तूबर माह में कैंसर से जूझ रहे उनके पिता ने उन्हें जबरन पैरालंपिक की तैयारियों के भेज दिया था। कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई और देवेंद्र उनसे अंतिम क्षणों में बात भी नहीं कर सके। अब देवेंद्र मेडल जीत कर अपने पिता का सपना पूरा करना चाहते हैं।
Created On :   21 Aug 2021 3:52 PM IST