कूनो नेशनल पार्क जैसे मध्यप्रदेश की राजनीति के हाल

कूनो नेशनल पार्क जैसे मध्यप्रदेश की राजनीति के हाल
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पिछले साल टाइगर स्टेट में सत्तर साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर नामीबिया से आए चीतों को श्योपुर के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया,तब मध्यप्रदेश की सियासत में खूब खुशियां छाई। उस दौरान पीएम ने कहा कूनो में चीता फिर से दौड़ेगा तो यहां कि बायोडायवर्सिटी बढ़ेगी। विकास की संभावनाएं जन्म लेंगी। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। पीएम ने लोगों से धैर्य रखने की भी अपील की थी।,अभी चीतों को देखने नहीं आएं। ये चीते मेहमान बनकर आए हैं। इस क्षेत्र से अनजान हैं। कूनो को ये अपना घर बना पाएं, इसके लिए इनको सहयोग देना है। प्रधानमंत्री मोदी ने चीता और चीता मित्रों के साथ फोटो भी क्लिक की। वैसे आपको बता दें चीता शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द चित्रकाय से हुई है। और मेहमान चीतों के आने के साथ साथ मप्र में भी राजनीति का नया चित्र बनता हुआ दिखाई देने लगा।

मप्र की धरती पर जैसी ही चीते की एंट्री हुई सियासत भी होने लगी। और मध्यप्रदेश की राजनीति में भी सियासी लड़ाई की नई तस्वीर खींचने लगी। कई नेता टाइगर की दौड़ में लगे थे अब वो चीता बनने की रेस करने लगे। और आगे आगे आकर राज्य का हर नेता पीएम मोदी का खास बनकर उनके साथ सेल्फी लेने में मग्न होने लगा। प्रधानमंत्री मोदी के साथ जैसे जैसे नेताजी की तस्वीरों की संख्या बढ़ने लगी, वह मध्यप्रदेश की सियासत में भी अपना दबदबा बनाने लगा। और हर कोई अपना दबदबा बढ़ाने चला।

वैसे आपको पता होगा कि चीता प्रोजेक्ट शुरू से ही राजनीति का शिकार हो गया। पहले यह तय हुआ था कि करीब आधा दर्जन चीतों को कूनो की बजाए राजस्थान के मुकुंदरा अभ्यारण्य में रखा जाएगा। लेकिन केंद्र सरकार ने कांग्रेस की सरकार होने की वजह से वहां की अनुमति ही नहीं दी। और दे भी तो क्यों? बात आखिरकार श्रेय की थी। और श्रेय तो अपनापन ढूंढता हैं। लेकिन राजस्थान के रणथम्मौर पार्क से बाघ भी कूनो नेशनल पार्क में चीतों से मिलने आ गए, जिससे बाघ और चीते में टेरिटरी को लेकर लड़ाई होने लगी। टेरिटरी जंग होने की खबर जमकर सामने आने लगी।

मेहमान बनकर आए बाघ और चीते की तर्ज पर मध्यप्रदेश की राजनीति में भी टेरिटरी की जंग छिड़ने लगी। श्रेय और विरोध की इस लड़ाई में बेजान भैंसा और चीतल की कुर्बानी होने लगी। मध्यप्रदेश की पॉलिटिक्स में भी दिग्गजों की लड़ाई में कई बीजेपी नेता दरकिनार होने लगे और चीतों के पुनर्वास का विरोध करने वाले दल यानी विपक्षी खेमा कांग्रेस ऐसे नेताओं पर नजर जमाए हुए है कि कब मौका मिलें और अपने घर में ऐसे नेताओं का पुर्नवास किया जाए। पूर्व सीएम कैलाश जोशी के सुपुत्र पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने हाल ही कांग्रेस के हाथ का दामन थामा है। उससे पहले तीन बार के बीजेपी विधायक देशराज सिंह यादव के बेटे यादवेंद्र सिंह यादव ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। खरगोन के पूर्व सांसद माखन सिंह सोलंकी भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। पार्टी आलाकमान ने बगावत पर उतरने वाले नाराज नेताओं के मिजाज को भांपने के लिए प्रतिनिधिमंडल भी बनाया है।

भले बाड़े में कैद चीते भी एक- दूसरे के बाड़े में जा रहे है। लेकिन वहां मेहमान चीतों को ही नुकसान हो रहा है। अब तक कूनो में तीन चीतों की मौत हो चुकी है, जिनमें से दो नामीबिया से आए चीते है। चीतों की तरह ही बीजेपी के नेताओं का हाल है, वो एक दूसरे के इलाके पर कब्जा जताना चाहते है। चंबल-ग्वालियर इलाके में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के रिश्तेदार कहे जाने वाले पूर्व मंत्री और पूर्व सांसद अनूप मिश्रा ने जैसे ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो पार्टी के दूसरे नेता व पूर्व विधायक नारायण सिंह कुशवाह नाराज होने लगे और उन्होंने भोपाल तक की यात्रा कर डाली।

बीजेपी में नेताओं की नाराजगी की बयानबाजी से संगठन को नुकसान उठाना पड़ सकता है, इसका अनुमान तो बीजेपी हाईकमान को भी है, तभी तो चीतों की मॉनिटरिंग करने के लिए कॉलर पर उच्च तकनीक से लैस कॉलर बैंड लगाई गई है। वैसे ही भाजपा ने उछलकूद का शोर मचाने वाले नेताओं पर नकेल कसने के लिए दिल्ली से नेताओं को भेजा है। जो लगातार उन पर निगरानी करने और आलाकमान को रिपोर्ट भेज रहे है।

जिस संगठन को खड़ा करने में कई वर्षों तक पार्टी कार्यकर्ता ने ऊर्जा लगाई, केवल मात्र उम्र का हवाला और युवाओं को मौका देने की रणनीति के चलते उन्हें दरकिनार करना राजनीति के लिए कितना सही और गलत है, इस सवाल का जवाब तो भविष्य के गर्त में छिपा है। लेकिन आपको बता दें भारतीय परंपरा में घर और परिवार में बड़े बूढ़ों का अपना एक अलग अनोखा महत्व होता है।

अधिकांश राजनेता अपने लालच और कुर्सी के लिए राजनीतिक दृष्टि से उसका कोई महत्व नहीं समझते। पीएम मोदी के चीते को मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बहुत बड़ा तोहफा बताया। और बताना लाजिमी भी था। क्योंकि उस समय पर उन्हें और उनकी कुर्सी को लेकर सियासी गलियारों में दबे पांव कई खबरें चल रही थी। कई आशंकाएं और अनुमान लगाए जा रहे थे। चीतों को छोड़ने के दौरान पर्यटन बढ़ने की बात तेजी से कही जा रही थी। हालफिलहाल पर्यटन बढ़ने के साथ साथ मध्यप्रदेश में सियासी बयानबाजी और जंग तो बढ़ी है। आपसी नेता एक दूसरे के बैरी बनने लगे। जिन्हें साधने का प्रयास किया जा रहा है। कभी कभी तो ये खबर सामने आई कि कूनो नेशनल पार्क में एक चीते ने वन अमले की नाक में दम कर दिया है। वह चीता बार-बार अपने इलाके से बाहर की ओर भाग जाता है। फिर उसे बेहोश करके वापस लाना पड़ता है।

न केवल राजनेता बल्कि हर कोई अपना अपना इलाका बनाना चाहता है। चाहे फिर वो शेर हो या चीता। फिर तो स्वाभाविक तौर पर इलाके और स्थायित्व को लेकर संघर्ष होना लाजिमी है। लेकिन कहा जाता है घुसपैठिए हमेशा गंभीर समस्या पैदा करते है। कूनो में भी मनमुटाव के चलते मादा चीता दक्षा की मौत भी आपसी संघर्ष में हुई है। विचार, तथ्य और तर्क के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि मेहमानों को लाए जाने से पहले उनके हिसाब से तैयारी नहीं की गई। सिर्फ श्रेय लेने का इवेंट आयोजित होते रहे। बीजेपी में भी उसके परिणाम सामने आने लगे कि कई नेता अंदर ही अंदर पार्टी से नाखुश है, जिसके गंभीर परिणाम आगे भी सामने आते रहेंगे। सबको सच्चाई पता है पर 'दिल्ली' के आगे मुंह कौन खोले? हमें तो न केवल चीतों बल्कि बाघों का भी संरक्षण करना है। इससे बढ़िया है हम अपनी कुर्सी और अपने नेताओं का ही संरक्षण कर लेते हैं।

नोट- ये लेखक के अपने निजी विचार हैं। bhaskarhindi.com इसका समर्थन नहीं करता है।

Created On :   11 May 2023 12:33 PM GMT

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