रेलवे के इस कर्मचारी ने केस लड़ते-लड़ते किया एलएलबी, केस भी जीता
डिजिटल डेस्क, नागपुर। किसी-किसी का जीवन फिल्मी कहानी सा होता है। रेलवे में टाइपराइर कम क्लर्क पद से ऑडिटर बनकर रिटायर्ड हुए कर्मचारी का जीवन फिल्मों की तरह है। 23 साल कानूनी लड़ाई लड़ी। केस लड़ते-लड़ते एलएलबी किया और अदालत में खुद पैरवी कर केस जीत गए। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को नुकसान भरपाई देने के लिए रेलवे को आदेश दिए हैं।
रेलवे ने नजरअंदाज की अर्जी
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता उमाकांत जयस्वाल सन् 1994 में मध्य रेलवे में टाइपराइटर कम क्लर्क पद पर ज्वाइन हुए। उसी साल उनका ग्रेजुएशन पूरा हुआ। ऑडिटर पद के लिए शैक्षणिक योग्यता ग्रेजुएशन है। शैक्षणिक पात्रता पूरी करने से उन्होंने सन् 1995 में ऑडिटर पद की परीक्षा के लिए आवेदन किया। तीन साल सेवाकाल पूरा नहीं होने से उन्हें परीक्षा के लिए अपात्र घोषित किया गया। इसके बाद सन् 1996 में फिर से परीक्षा के लिए आवेदन किया।
परीक्षा उत्तीर्ण करने पर उन्हें प्रमोशन दिया गया। इससे उनका समाधान नहीं हुआ। पहली बार जब आवेदन किया, उसे स्वीकृत किया जाता, तो प्रमोशन के साथ 175 रुपए अधिक वेतन मिलता था। यह बात उनके मन में बस गई। अपने अधिकार की लड़ाई लड़ने की मन में ठाल ली। पहले रेलवे से अर्जी कर नुकसान भरपाई देने की मांग की। रेलवे ने उनकी अर्जी को नजरअंदाज किया। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी।
3 महीने में भरपाई करने के आदेश
सन् 1996 में उन्होंने कैट में याचिका दायर की। सन् 2004 में कैट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। रेलवे को गलती सुधार कर जयस्वाल को नुकसान भरपाई देने का आदेश दिया। रेलवे ने कैट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। अप्रैल 2004 से हाईकोर्ट में मामला चलता रहा। 28 फरवरी 2018 को वे सेवानिवृत्त हो गए। इस बीच, उन्होंने एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।
एड. एस. के. साबले के साथ उन्होंने खुद भी अदालत में मामले की पैरवी की। न्यायमूर्ति भूषण धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति अरुण उपाध्ये की संयुक्त खंडपीठ ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए रेलवे को सन् 1995 से 2018 तक की नुकसान भरपाई 3 महीने में याचिकाकर्ता को अदा करने का आदेश दिया है।
Created On :   27 April 2018 6:45 AM GMT