राम मंदिर के लिए किए गए बड़े -बंड़े त्याग : एक ने पति को मंगलसूत्र लौटाया , दूसरी ने 28 साल से अन्न त्यागा 

राम मंदिर के लिए किए गए बड़े -बंड़े त्याग : एक ने पति को मंगलसूत्र लौटाया , दूसरी ने 28 साल से अन्न त्यागा 

Bhaskar Hindi
Update: 2020-08-05 08:41 GMT
राम मंदिर के लिए किए गए बड़े -बंड़े त्याग : एक ने पति को मंगलसूत्र लौटाया , दूसरी ने 28 साल से अन्न त्यागा 

डिजिटल डेस्क जबलपुर । अयोध्या और भगवान श्रीराम से जुड़ीं तमाम कथाओं, प्रसंगों का उल्लेख  वेद-पुराणों में है। श्रीराम के प्रति भक्ति और प्रेम की मिसाल बन चुका शबरी का अमर पात्र संत-महात्माओं द्वारा प्राचीन काल से  अपने-अपने अंदाज में किया जाता रहा है। विगत तीन दशकों से भाजपा द्वारा चलाए जा रहे राममंदिर निर्माण आंदोलन में कई महिलाओं के समर्पण के पात्र सामने आए हैं, इनमें जबलपुर की स्व. डॉ. उर्मिला जामदार और उर्मिला चतुर्वेदी ऐसे नाम हैं, जिनका श्रीराम के प्रति प्रेम और त्याग शबरी से कम नहीं माना जाएगा, लोग तो यह भी कहते हैं कि भविष्य में दोनों को शबरी की तरह ही याद किया जाएगा। 
पति को मंगलसूत्र सौंपकर अयोध्या गईं थीं उर्मिला जामदार आई के नाम से मशहूर रहीं डॉ. उर्मिला जामदार विश्व हिन्दू परिषद की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहने के साथ रामजन्म भूमि आंदोलन में प्रारंभ से ही जुड़ी रहीं। उनसे जुड़े संस्मरण सुनाते हुए जुगराज धर द्विवेदी और स्वामी अखिलेश्वरानंद बताते हैं कि डॉ. उर्मिला पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के साथ हमेशा रहा करती थीं। दिसम्बर 1992 में जब विवादित ढाँचा गिरने के पहले जब कारसेवा के लिए अयोध्या जाने का प्रश्न आया, तो उन्होंने अपने पति डॉ. जेबी जामदार को मंगलसूत्र सौंपकर उनसे विदाई ली थी। जाते वक्त उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि जिंदा रही तो फिर मिलूँगी। वे किसी तरह अयोध्या पहुँचीं, विवादित ढाँचा गिराते समय विहिप के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल सिर में पत्थर लगने से घायल हो गए थे, जिन्हें उर्मिला ही हैल्थ सेंटर लेकर पहुँचीं। उनके पुत्र डॉ. जितेन्द्र जामदार बताते हैं कि मैंने भी आई से अयोध्या चलने की जिद की थी, लेकिन उन्होंने दादा की बीमारी की वजह से उन्हें घर पर ही रोक दिया था। 
राममंदिर के लिए त्यागा अन्न 
डॉ. उर्मिला जामदार की ही तरह विजय नगर निवासी 82 वर्षीय उर्मिला चतुर्वेदी का श्रीराम के प्रति प्रेम और त्याग किसी से कम नहीं रहा। श्रीमती चतुर्वेदी ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए 28 वर्ष पूर्व अन्न त्याग करने का निर्णय लिया और आज तक वे अपने प्रण पर कायम हैं। वे कारसेवकों की तरह अयोध्या तो नहीं गईं, लेकिन उनके मंदिर निर्माण के प्रति समर्पण को जो देखता था वो रामभक्त बन जाता था। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद 5 अगस्त को मंदिर निर्माण के भूमिपूजन की खबर जैसे ही उर्मिला देवी को मिली उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा।
 

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