उज्जैन के रहस्यमयी काल भैरव मंदिर से जुड़ी रोचक बातें 

उज्जैन के रहस्यमयी काल भैरव मंदिर से जुड़ी रोचक बातें 

Bhaskar Hindi
Update: 2018-06-25 10:08 GMT
उज्जैन के रहस्यमयी काल भैरव मंदिर से जुड़ी रोचक बातें 

डिजिटल डेस्क, उज्जैन। महाकाल की नगरी उज्जैन जहां के कण-कण में महादेव का वास है। यहां हर दिन चमत्कार होते रहते हैं। महाकाल की इस नगरी में पांव पखारती क्षिप्रा नदी है, जिसे मोक्षदायिनी क्षिप्रा भी कहा जाता है। धर्म ग्रथों के अनुसार उज्जैन नगरी जीवन और मौत के चक्र को खत्म कर भक्तों को मोक्ष देती है। यहां हर दिन भगवान भक्तों की बुराई को निगल लेते हैं और दूर कर देते हैं उनके सारे कष्ट। शिव की इसी नगरी में बसा है एक ऐसा मंदिर जहां स्वयं शिव के अवतारी काल भैरव भक्तों को साक्षात दर्शन देते हैं।

भक्तों के लिए भक्ति, आस्था और आराधना की वो मंजिल जहां सुबह शाम बजने वाली घंटों की ध्वनि निरंतर किसी चमत्कारी शक्ति का आभास करवाती है। जहां दूर-दूर से भक्त कष्टों की चिंता किए बिना चले आते हैं। क्योंकि उन्हें तो बस इंतजार होता है भगवान के साक्षात स्वरूप से मिलने का और यहां होने वाले मदिरा पान के चमत्कार के साक्षी बनने का।

 


उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थापित इस मंदिर में शिव अपने भैरव स्वरूप में विराजते हैं। वैसे तो भगवान शिव का भैरव स्वरूप रौद्र और तमोगुण प्रधान रूप है लेकिन कालभैरव अपने भक्त की करूण पुकार सुनकर उसकी सहायता के लिए दौड़े चले आते हैं। काल भैरव के इस मंदिर में मुख्य रूप से मदिरा का ही प्रसाद चढ़ता है।

मंदिर के पुजारी भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को एक प्लेट में उढ़ेल कर भगवान के मुख से लगा देते हैं और देखते ही देखते भक्तों की आंखों के सामने ये प्रसाद भगवान भैरोनाथ पी जाते हैं। ये ऐसा चमत्कार है जिसे देखने के बाद भी विश्वास करना एक बार को कठिन हो जाता है। क्योंकि मदिरा से भरी हुई प्लेट पलभर में खाली हो जाती है। इसके अतिरिक्त जब भी किसी भक्त को मुकदमे में विजय हासिल होती है तो बाबा के दरबार में आकर मावे के लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं। तो वहीं किसी भक्त की सूनी गोद भर जाती है तो वो यहां बाबा को बेसन के लड्डू और चूरमे का भोग लगाते हैं। प्रसाद चाहे कोई भी क्यों न हो बाबा के दरबार में आने वाला हर भक्त कोई ना कोई समस्या लेकर आता है और बाबा काल भैरव अपने आशीर्वाद से उसके कष्टों को हर लेते हैं।

 


बाबा काल भैरव के इस धाम में एक और बड़ी चमत्कारिक चीज है जो भक्तों का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींचती है और वो है मंदिर परिसर में स्थापित दीपस्तंभ। श्रद्धालुओं द्वारा दीपस्तंभ की इन दीपमालिकाओं को प्रज्जवलित करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भक्तों द्वारा शीघ्र विवाह के लिए भी दीपस्तंभ का पूजन किया जाता है। जिनकी भी मनोकामनाएं पूरी होती हैं वो दीपस्तंभ के दीप अवश्य प्रज्वलित करवाते हैं।

इसके अतिरिक्त मंदिर के अंदर भक्त अपनी मनोकामना के अनुसार दीप जलाते हैं। जहां एक तरफ शत्रु बाधा से मुक्ति व अच्छे स्वास्थ्य के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाने की पंरपरा है। तो वहीं अपने मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि की इच्छा करने वाले चमेली के तेल का दीपक जलाते हैं।

 


कालभैरव के इस मंदिर में दिन में दो बार आरती होती है। एक सुबह साढ़े आठ बजे आरती की जाती है, दूसरी आरती रात में साढ़े आठ बजे की जाती है। महाकाल की नगरी होने से भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति भी कहा जाता है। कालभैरव के शत्रु नाश मनोकामना को लेकर कहा जाता है कि यहां मराठा काल में महादजी सिंधिया ने युद्ध में विजय के लिए भगवान को अपनी पगड़ी अर्पित की थी। उन्होंने भगवान से युद्ध में अपनी जीत की प्रार्थना की थी और कहा था कि युद्ध में विजयी होने के बाद वे मंदिर का जीर्णोद्धार करेंगे। कालभैरव की कृपा से महादजी सिंधिया युद्धों में विजय हासिल करते चले गए। इसके बाद उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से मराठा सरदारों की पगड़ी भगवान कालभैरव के शीश पर पहनाई जाती है।

कालभैरव का चमत्कार जितना अचंभित करने वाला है उतनी ही उनके उज्जैन में बसने की कहानी भी है। वैसे तो यहां साल भर कई जगह से बहुत भीड़ में श्रद्धालु आते हैं लेकिन रविवार की पूजा का यहां विशेष महत्व होता है। जिस प्रकार सोमवार का दिन महाकाल शिव का है उसी प्रकार रविवार का दिन काल भैरव जी का माना जाता है। बाबा काल भैरव के भक्तों के लिए उज्जैन का भैरो मंदिर किसी धाम से कम नहीं। सदियों पुराने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके दर्शन के बिना महाकाल की पूजा भी अधूरी मानी जाती है।

 


अघोरी जहां अपने ईष्टदेव की आराधना के लिए साल भर काल भैरों की कालाष्टमी (भेरोंअष्टमी) की प्रतीक्षा करते हैं। वहीं सामान्य भक्त भी इस दिन उनका दर्शन कर सर झुका कर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते। मार्गशीर्ष (अगहन) मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरवाष्टमी कहते हैं। क्योंकि इस दिन काल भैरव का जन्म हुआ था।

शहर से आठ किलोमीटर दूर कालभैरव के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर कोई उज्जैन आकर महाकाल के दर्शन करे और कालभैरव न आए तो उसे महाकाल के दर्शन का आधा ही लाभ मिलता है। 

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