निर्जला एकादशी 2020: इस व्रत को करने से होगी मोक्ष की प्राप्ति, ऐसे करें पूजा

निर्जला एकादशी 2020: इस व्रत को करने से होगी मोक्ष की प्राप्ति, ऐसे करें पूजा

Manmohan Prajapati
Update: 2020-05-30 12:44 GMT
निर्जला एकादशी 2020: इस व्रत को करने से होगी मोक्ष की प्राप्ति, ऐसे करें पूजा

डिजिटल डेस्क, नई ​दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। इन एकादशियों में निर्जला एकादशी को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। वहीं इस साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी निर्जला एकादशी 2 जून, मंगलवार यानी कि आज मनाई जा रही है। इस व्रत में सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल तक न पीने का विधान होने के कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इस दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना का विधान है। इस व्रत से दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

निर्जला एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और समस्या से निवारण के लिए की जाती है। इस का व्रत करने से व्यक्ति को आयु, आरोग्य तथा विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस एक एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का लाभ मिलता है। भीम ने केवल यही एकादशी करके सारी एकादशियों का फल प्राप्त कर लिया था। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से समूची एकादशियों के व्रतों के फल की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। सनातन धर्म में श्री हरि को सर्वाधिक प्रिय एकादशी व्रत है। 

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ऐसे रखें यह व्रत
- यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों को ही करना चाहिए। 
- एकादशी के दिन सुर्योदय से पूर्व स्नान करें और सूर्य देव को जल अर्पित करें। 
- इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- संभव हो तो पीला वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करें। 
- पूजा में पीले फूल, पंचामृत और तुलसी पत्र जरुर रखें। 
- इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप करें।

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ध्यान रखें ये बातें
- याद रखें इस व्रत में पानी पीना वर्जित होता है यानी पानी इस व्रत में नहीं पी सकते। 
- गर्मी अधिक है इसलिए व्रती सिर्फ कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हैं। 
- यदि आप जलपान करते हैं तो आपका य​ह व्रत टूट जाता है। 
- व्रत करने वाले व्यक्ति को दृढ़तापूर्वक नियम पालन के साथ निर्जल उपवास करना चाहिए। सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल का त्याग करना चाहिए। 
- द्वादशी को स्नान करके और सामर्थ्य के अनुसार सुवर्ण और जल भरा कलश दान देकर भोजन करना चाहिए। 

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