'राधा अष्टमी' आज, ये व्रत ना करने से नहीं मिलता 'जन्माष्टमी' का फल

'राधा अष्टमी' आज, ये व्रत ना करने से नहीं मिलता 'जन्माष्टमी' का फल

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-28 03:17 GMT
'राधा अष्टमी' आज, ये व्रत ना करने से नहीं मिलता 'जन्माष्टमी' का फल

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जहां कृष्ण हैं वहां राधा और जहां राधा हैं वहां तो कन्हैया होंगे ही। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री राधाजी का प्राकट्य दिवस माना जाता है। यह दिवस श्रीराधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस वर्ष यह 29 अगस्त मंगलवार को मनाया जा रहा है। कहा जाता है कि जो राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता, उसे जन्माष्टमी व्रत का फल भी प्राप्त नहीं होता।

बरसाना को श्रीराधाजी की जन्मस्थली माना जाता है। पद्मपुराण में श्रीराधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है। श्रीराधाष्टमी पर श्रीराधा-कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा करना चाहिए। माना जाता है कि श्रद्धा से यह व्रत रखने पर श्री राधाजी के भक्त के घर से कभी लक्ष्मी विमुख नहीं होती हैं। श्रीराधाजी का जन्म भी दोपहर को माना गया है। इसलिए इनके पूजन के लिए मध्याह्न का समय सर्वाधिक उर्पयुक्त माना गया है।

राधाष्टमी कथा

पद्म पुराण के अनुसार राधा जी राजा वृषभानु की पुत्री थीं और उनकी माता का नाम कीर्ति था। कथानुसार एक बार जब राजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि की साफ-सफाई कर रहे थे तब उनको भूमि पर कन्या के रूप में राधा जी मिलीं थीं इसके बाद राजा वृषभानु कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे। राधा जी जब बड़ी हुई तो उनका जीवन कृष्ण के सानिध्य में बिताए किन्तु राधा जी का विवाह रापाण नामक व्यक्ति के साथ हुआ था।

ऐसे करें पूजा

  • पहले श्रीराधाजी को पंचामृत से स्नान कराएं।
  • इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा करना चाहिए। 
  • स्नान करने के पश्चात उनका श्रृंगार करें। 
  • श्रीराधा रानी की प्रतिमूर्ति को स्थापित करें। 
  • श्रीराधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा धूप-दीप, फल, फूल आदि से करनी चाहिए।
  • आरती-अर्चना करने के पश्चात अंत में भोग लगाना चाहिए। 
  • इस दिन निराहार रहकर उपवास करें। 
  • संध्या-आरती करने के पश्चात फलाहार ग्रहण करें।

करें इस मंत्र का जाप 

हेमेन्दीवरकान्तिमंजुलतरं श्रीमज्जगन्मोहनं नित्याभिर्ललितादिभिः परिवृतं सन्नीलपीताम्बरम्
नानाभूषणभूषणांगमधुरं कैशोररूपं युगंगान्धर्वाजनमव्ययं सुललितं नित्यं शरण्यं 

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