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Beed News: भक्ति, सेवा और संत परंपरा को जीने का पर्व है आषाढ़ी एकादशी, मंदिरों में उमड़े श्रद्धालु

Beed News. आषाढ़ी एकादशी में मंदिरों में भक्तों का तांता लगा है। भगवान विठ्ठल रुक्मिणी का जलाभिषेक कर पूजा अर्चना की गई। जिले के माजलगांव, बीड, अंबाजोगाई, केज, धारूर, वडवणी, आष्टी, गेवराई, पाटोदा, शिरूर, परली वैद्यनाथ, सिरसाला सहित कई स्थानों में रविवार के दिन आषाढ़ी एकादशी पर विशेष कार्यक्रम रखे गए। महाराष्ट्र का एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। जिसे विशेष रूप से विदर्भ, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता। यह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को, यानी आषाढ़ मास (जून-जुलाई) के 11वें दिन आती है। इसे 'देवशयनी एकादशी' या 'हरिशयनी एकादशी' भी कहा जाता है।
आषाढ़ी एकादशी पर क्या होता है:
- लाखों वारकरी (भक्त) महाराष्ट्र के विभिन्न भागों से पैदल चलकर पंढरपुर पहुंचते हैं। भक्तजन संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर की पालकी के साथ भजन - कीर्तन करते हुए यात्रा करते हैं।
- महाराष्ट्र में यह दिन भगवान विठोबा (भगवान विष्णु का एक रूप) की भक्ति के लिए अत्यंत खास होता है।
- भक्त पंढरपुर (सोलापुर, महाराष्ट्र) में स्थित विठोबा मंदिर की यात्रा करते हैं। इसे वारी यात्रा कहा जाता है।
- इस दिन से भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योगनिद्रा (शयन) में चले जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहते हैं, जो कार्तिक मास की एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) तक चलता है। ऐसी मान्यता है कि इन चार महीनों में शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते।
- इस दिन श्रद्धालु व्रत (उपवास) रखते हैं और भगवान विष्णु या विठोबा की पूजा करते हैं।
- रात्रि को जागरण और भजन-कीर्तन होता है।
आध्यात्मिक महत्व
- आषाढ़ी एकादशी आत्मशुद्धि, भक्ति और संयम का प्रतीक मानी जाती है।
- इसे भगवान के चरणों में समर्पण और जीवन में धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश देने वाला दिन माना जाता है।
आषाढ़ी एकादशी केवल व्रत का दिन नहीं, बल्कि भक्ति, श्रद्धा, सेवा और संत परंपरा को मन, वचन और कर्म से जीने का पर्व है। यह दिन सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
(यहां खास आयोजन)
श्री विठ्ठल रूक्मिणी भगवान मंदिर
श्री विष्णु भगवान मंदिर
परली के वैद्यनाथ मंदिर
नारायण गढ़ और चाकरवाडी में भव्य कार्यक्रम
Created On :   6 July 2025 5:20 PM IST