- Home
- /
- राज्य
- /
- मध्य प्रदेश
- /
- जबलपुर
- /
- पुश्तैनी जमीन में वारिसानों के नाम...
Jabalpur News-: पुश्तैनी जमीन में वारिसानों के नाम चढ़वाने में लग गए 26 साल

- राजस्व अधिकारियों की हठधर्मिता पर हाईकोर्ट ने जताया आश्चर्य, कहा- ऐसे तो कभी समाप्त नहीं होगी मुकदमेबाजी
- पीड़ितों ने 2024 में हाईकोर्ट में सिविल रिवीजन दायर की।
- हाईकोर्ट ने इसे "अदालती प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग" और "कोर्ट के बहुमूल्य समय की शुद्ध बर्बादी" करार दिया।
Jabalpur News: कहते हैं कि न्याय में देरी, न्याय नहीं मिलने के बराबर है। जमीन की जंग के लिए कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते एक महिला जीवन की जंग हार गई। कानूनी दांवपेंच के चलते पुश्तैनी जमीन पर वारिसानों को अपने नाम चढ़वाने में 26 साल लग गए। आश्चर्य ये है कि यह मामला सिविल कोर्ट से शुरू होकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को धता बताते हुए राजस्व अधिकारियों ने पुन: दूसरी बार सिविल कोर्ट में मुकदमा पेश कर दिया।
हाईकोर्ट ने राजस्व अधिकारियों की हठधर्मिता पर घोर आश्चर्य जताया और कहा कि ऐसे तो मुकदमेबाजी कभी खत्म नहीं होगी। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार के अधिकारियों को अदालतों के फैसले के प्रति कोई सम्मान नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा जब सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में सरकार की अपील खारिज कर दी है तो किस कानून के तहत दोबारा सिविल कोर्ट में प्रकरण लगाया गया। हाईकोर्ट ने इसे "अदालती प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग" और "कोर्ट के बहुमूल्य समय की शुद्ध बर्बादी" करार दिया।
पालन कराने फिर पहुंचे हाईकोर्ट
देश की शीर्ष अदालत के आदेश की तामीली कराने 2022 में सुगरा के बेटे व अन्य ने पुन: हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने 30 जून 2022 को कलेक्टर को आदेश दिया कि दो माह के भीतर कार्रवाई करें और ऋण पुस्तिका अदा करें। आदेश का पालन नहीं होने पर अवमानना याचिका दायर की गई। हाईकोर्ट ने जब कलेक्टर, तहसीलदार को हाजिर होने कहा तो उन्होंने दलील दी कि इस मामले में सिविल कोर्ट में सिविल सूट दायर किया है।
यह तर्क दिया गया कि वारिसानों ने फर्जीवाड़ा करते हुए जमीन अपने नाम कराई है। पीड़ितों ने 2024 में हाईकोर्ट में सिविल रिवीजन दायर की। इस पर हाईकोर्ट ने जून 2025 में सरकार द्वारा सिविल कोर्ट में प्रस्तुत दूसरा सिविल सूट निरस्त कर दिया।
ऐसे चला कानूनी दांवपेंच
प्रकरण के अनुसार स्व. शेख बब्बू को 1941 में 13 हेक्टेयर जमीन का पट्टा मिला था। उनके पुत्र मोहम्मद सुलेमान की 1993 में मृत्यु के बाद उनकी पत्नी सुगरा, भाई, बच्चों व भतीजों ने नाम जुड़वाने की प्रक्रिया शुरू की। सबसे पहले 1999 में सतना की सिविल कोर्ट ने सभी वारिसानों के नाम राजस्व रिकॉर्ड में जोड़ने के आदेश दिए। सरकार ने अपील पेश की। अपील पर 2005 में सिविल कोर्ट ने जमीन को सरकारी बताया। मामला पहुंचा हाईकोर्ट। हाईकोर्ट ने 2005 में स्पष्ट आदेश दिया कि याचिकाकर्ता भू-स्वामी हैं और उनके रेवेन्यू िरकॉर्ड दुरुस्त करें।
सुको से हारी सरकार
हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 2018 में विशेष अनुमति याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। इस पर तत्कालीन कलेक्टर ने राजस्व अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने कहा। तत्कालीन तहसीलदार बीके मिश्रा और पटवारी राजेन्द्र सिंह परिहार ने आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया। वर्ष 2020 में न्याय मिलने से पहले सुगरा की मौत हो गई।
राजस्व अधिकारियों को अदालत के आदेश के प्रति सम्मान नहीं और वे हमेशा से इसे धता बताते रहे हैं। यह प्रकरण इस बात का जीवंत उदाहरण है। यह आश्चर्य का विषय है कि गलत करने वाले अधिकारी-कर्मचारी को कोई दंड भी नहीं दिया जाता।
संजय वर्मा, याची के अधिवक्ता
Created On :   14 July 2025 2:23 PM IST