बॉम्बे हाई कोर्ट: नाशिक के देवलाली कैंटोनमेंट बोर्ड के नॉमिनेटेड मेंबर को बदलने की केंद्र, सरकार की पावर पर सुनाया अलग-अलग फैसला

नाशिक के देवलाली कैंटोनमेंट बोर्ड के नॉमिनेटेड मेंबर को बदलने की केंद्र, सरकार की पावर पर सुनाया अलग-अलग फैसला
  • देवलाली कैंटोनमेंट बोर्ड के नॉमिनेटेड मेंबर को बदलने की केंद्र सरकार की पावर पर सुनाया अलग-अलग फैसला
  • अदालत ने कहा-किसी मौजूदा मेंबर को मनमाने ढंग से नहीं हटाना चाहिए

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाशिक के देवलाली कैंटोनमेंट बोर्ड के एक नॉमिनेटेड मेंबर को केंद्र सरकार द्वारा उनके कार्यकाल के खत्म होने से पहले हटाने से जुड़े मुद्दे पर अलग-अलग राय दी। उनका कार्यकाल 10 फरवरी 2026 को पूरा होना है। अदालत ने कहा कि किसी मौजूदा मेंबर को मनमाने ढंग से नहीं बदलना चाहिए। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले की पीठ ने प्रीतम अधव की याचिका पर कहा कि केंद्र सरकार को ऐसे बोर्ड के गठन में बदलाव करने से पहले अपनी संतुष्टि दर्ज करनी चाहिए और उसे कानून के सही तरीके का पालन करना चाहिए। किसी मौजूदा मेंबर को मनमाने ढंग से नहीं हटाना चाहिए। सरकार को कैंटोनमेंट एक्ट 2006 के तहत तय नियम का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति को हटाने के नियम उस व्यक्ति पर कलंक लगाते हैं। केंद्र सरकार एक नॉमिनेटिंग अथॉरिटी होने के नाते "डॉक्ट्रिन ऑफ प्लेजर’ का इस्तेमाल कर सकती है और 2006 के उस एक्ट के तहत किसी नॉमिनेटेड सदस्य की जगह किसी दूसरे सदस्य को नियुक्त करके ले सकती है।

याचिकाकर्ता प्रीतम अधव को 2021 से समय-समय पर देवलाली कैंटोनमेंट बोर्ड का सदस्य नॉमिनेट किया गया था और सदस्य के रूप में उनका सबसे नया नॉमिनेशन 3 जनवरी 2025 को नोटिफाई किया गया था और उनका कार्यकाल 10 फरवरी 2026 तक तय किया गया था। अधव ने आरोप लगाया है कि अधिकारी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा रिकमेंड किए गए किसी दूसरे व्यक्ति को नॉमिनेट करने और उनकी जगह लेने की योजना बना रहे थे। उन्होंने इस "पॉलिटिकल दखल’ को हाईलाइट किया। उनकी जगह लेने और किसी दूसरे व्यक्ति को नॉमिनेट करने का फैसला मनमाना और गैर-कानूनी है।

पीठ ने कहा कि कैंटोनमेंट एक्ट का सेक्शन 13 बोर्ड में मेंबर्स को नॉमिनेट करने के प्रोसेस और सेंट्रल गवर्नमेंट के रोल के बारे में डिटेल में बताता है। उन्होंने सेक्शन 34 को भी ध्यान में रखा, जिसमें उन हालात की लिस्ट है, जिनके तहत किसी सर्विस मेंबर को हटाया जा सकता है। पीठ ने याचिकार्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील आशुतोष कुंभकोणी की दलील पर सहमति जताई, जिसमें उनके मुवक्किल को अपना कार्यकाल खत्म होने तक ऑफिस में बने रहने का पूरा हक है। उन्हें सिर्फ एक्ट के सेक्शन 34 के तहत दिए गए प्रोसेस को फॉलो करके ही हटाया जा सकता है, जो ‘मेंबर्स को हटाने' से जुड़ा है। याचिकाकर्ता को हटाने का कोई नोटिस नहीं दिया गया था और न ही अधिकारियों ने उन्हें हटाने का कोई कारण रिकॉर्ड किया था।

Created On :   1 Dec 2025 10:14 PM IST

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