100 मिलीमीटर बारिश भी सहने लायक नहीं नागपुर,  2200 किलोमीटर की ड्रेनेज बेकार 

100 mm rain is not worth chance in Nagpur, drainage waste of 2200 kms
100 मिलीमीटर बारिश भी सहने लायक नहीं नागपुर,  2200 किलोमीटर की ड्रेनेज बेकार 
100 मिलीमीटर बारिश भी सहने लायक नहीं नागपुर,  2200 किलोमीटर की ड्रेनेज बेकार 

डिजिटल डेस्क, नागपुर। देश के सबसे बड़े शहरों की सूची में शुमार 13वें क्रमांक के नागपुर महानगर को भले ही विकास कार्यों को तेज गति मिली है और बीते 4 वर्षों में 56000 करोड़ की निधि खर्च कर शहर का स्वरूप बदला जा रहा है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं में शामिल ड्रेनेज व बाढ़रोधी व्यवस्था के निर्माण की अनदेखी की जा रही है। यही वजह है कि नागपुर शहर की 2200 किमी लंबी एवं बरसों पुरानी ड्रेनेज लाइनें 100 मिलीमीटर की बारिश को भी सह नहीं सकतीं। अचानक 100 मिमी से अधिक बारिश होने पर जलनिकासी अपेक्षित रफ्तार से नहीं हो पाती। ऐसे में शुक्रवार को सुबह 8 से 2.30 बजे तक हुई 263.5 मिमी बारिश ने शहर में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए। इस समस्या से निपटने के लिए ड्रेनेज व्यवस्था को अत्याधुनिक बनाने की आवश्यकता है, किंतु प्रशासन के पास इसके लिए न तो कोई नियोजन है और न ही निधि का कोई प्रावधान। इसलिए तत्काल इस दिशा में यदि ठोस कदम नहीं उठाया गया तो भविष्य में भले ही नागपुर का बाह्य रूप स्मार्ट सिटी का नजर आएगा, लेकिन अंदरुनी ड्रेनेज हर बार बाढ़ व जलजमाव को जन्म देता रहेगा।

शहर में जलजमाव व बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए स्थायी स्वरूप में नागपुर महानगरपालिका के पास वर्तमान और भविष्यकालीन कोई पुख्ता योजना उपलब्ध नहीं है। बरसों पुरानी ड्रेनेज सिस्टम अब बेकार साबित होने लगी है। शहर के विभिन्न इलाकों में जब जल-जमाव होने लगता है तो आपदा प्रबंधन का राहत कार्य केवल मरहम की तर्ज पर क्रियान्वित किया जाता है। शहर में जलजमाव होने न पाए, इसके लिए मनपा व जिला प्रशासन के पास कोई योजना व नियोजन उपलब्ध न होना, यहां की बदहाल व्यवस्था की पोल खोल रहा है। यातायात से निपटने के लिए सरकार ने 70 साल की योजना बनाकर मेट्रो की सौगात दी, 8680 करोड़ का बजट बनाया, अन्य विकास कार्यों के लिए 56000 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन बाढ़ से निपटने के स्थायी उपाय के लिए न तो किसी के पास नियोजन है और न ही फूटी कौड़ी का प्रावधान।

बाढ़ रोकने के उपाय कोसों दूर
शहर में विभिन्न योजनाओं पर 56000 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। सड़क व पुल के लिए 6448 करोड़, रिंग रोड के लिए 61.55 करोड़, मेट्रो के लिए 8680 करोड़, एम्स के लिए 1577 करोड़, दीक्षाभूमि के लिए 10 करोड़, बुद्धिस्ट सर्किट योजना के लिए 100 करोड़, नल योजना के लिए 228 करोड़, स्कील डेवलपमेंट के लिए 300 करोड़, नई रेल लाइन के लिए 6317 करोड़, गारमेंट क्लस्टर के लिए 32 करोड़, बायोगैस के लिए 228 करोड़, सीमेंट सड़क के लिए 700 करोड़, स्मार्ट सिटी के लिए 1008 करोड़, नाग नदी के लिए 1500 करोड़, वार्षिक योजना के लिए 26438 करोड़ आदि विकास कार्य तेज गति से किए जा रहे हैं। परंतु जिन-जिन कारणों से बाढ़ एवं जलजमाव की स्थिति निर्माण हो रही है, उसके लिए उपाय तथा निधि खर्च करने की दिशा में प्रस्ताव तैयार कर उसे मंजूर कराने का प्रयास नहीं किया जा रहा है।

आपदा प्रबंधन की समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार, जिले के 234 स्थानों को बाढ़ का खतरा होता है। आपदा से निपटने के लिए राजस्व विभाग एवं स्थानीय प्रशासन के पास विविध तरह के संसाधन उपलब्ध हैं। राजस्व विभाग व स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स(एसडीआरएफ) की 4 टीमें सेवारत है। हर टीम में करीब 35 कर्मचारी कार्यरत हैं। जिले में 10 बोट उपलब्ध हैं। 5 फायबर बोट एवं 5 ओवीएम बोट आपदा प्रबंधन के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। वहीं 150 लाइफ जैकेट एवं अन्य सामग्री उपलब्ध होने की जानकारी है, लेकिन उक्त सामग्री नाकाफी होने का अहसास दिलाती है। हैरत की बात है कि बीते सप्ताह पौधारोपण के लिए ड्रोन का उपयोग करने वाले प्रशासन ने आपदा प्रबंधन के लिए अब तक ड्रोन व आधुनिक तकनीक को राहत तथा बचाव कार्य में शामिल नहीं किया है। जरूरत पड़ने पर ड्रोन का उपयोग करने की बात आपदा प्रबंधन के अधिकारियों ने कही है, किंतु इसका प्रावधान अब तक नहीं किया जा सका है।

10 वर्ष से नहीं बदले हालात
मनपा कार्यक्षेत्र में हर बार राहत व बचाव का कार्य किया जाता है। परंतु समय रहते जल-जमाव के उपाय नहीं किए जाते। यही वजह है कि वर्ष 2008 से बीते वर्ष तक कुल 540 मकानों में पानी प्रवेश कर जाने की अधिकृत जानकारी सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज की जा चुकी है। उल्लेखनीय है कि बीते वर्षों में 579 स्थानों पर पेड़ ढह गए, जबकि दीवार ढह जाने की 21 घटनाएं उजागर हो चुकी हैं। वहीं 34 मकान भी ढहकर जमींदोज हो गए। इसके अलावा बाढ़ के पानी में बह जाने जैसी घटनाओं में करीब 15 लोगों ने अपनी जान गंवाई है।

अतिक्रमण व पुरानी ड्रेनेज है मुख्य समस्या
वी.आर.बनगीनवार, तकनीकी सलाहकार, मनपा के मुताबिक 10 वर्ष पूर्व आईआरडीपी योजना के तहत जब शहर में सड़कें बनाई जा रही थीं, तभी ड्रेनेज लाइन का भी निर्माण किया गया। सड़क के दोनों छोर पर खुदाई कर, नाली बनाकर उस पर फुटपाथ बनाए गए। इन पर गटर के ढक्कन लगाए गए। यह अब जर्जर हो चुके हैं। ड्रेनेज लाइन पुरानी व्यवस्था पर चल रही है। ऐसे में सीमेंट की सड़कों का निर्माण कराए जाने से सड़क ऊंची हुई। इसलिए ड्रेनेज की ऊंचाई बढ़ाकर व सुधार कार्य किया जा रहा है। शहर में 18 से अधिक एजेंसियां खुदाई कार्य कर रही हैं। जिसके चलते फुटपाथ व ड्रेनेज को क्षति पहुंच रही है। मिट्टी व मलबा ड्रेनेज में समा जाता है। इसकी सफाई ठीक से नहीं हो पाता, जिसके कारण जल निकासी में दिक्कतें पेश आ रही हैं।

हिंगना तहसील में शुक्रवार को जनजीवन प्रभावित रहा। नदी किनारे बसे ज्यादातर गांव डूबे रहे। किरमीठी भारकस के 70 परिवार तथा सुखली बेलदार के 150 परिवारों को जिला परिषद की स्कूलों में स्थलांतरित किया गया। वहीं रायपुर-हिंगना के 120 परिवारों को स्थानीय बचत भवन में पहुंचाया गया। वानाडोंगरी नप में अमर नाला उफान पर होने से मातोश्री नगर, गेडाम ले-आउट, राजीवनगर, अष्टविनायक नगर आदि क्षेत्रों में पानी भर गया था। 

Created On :   8 July 2018 11:38 AM GMT

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