पहले किस्मत ने छीना मां-बाप का साया, अब सरकारी नियमों ने उलझायी मासूमों की जिंदगी

14 year old boy is struggling for the financial help from Government
पहले किस्मत ने छीना मां-बाप का साया, अब सरकारी नियमों ने उलझायी मासूमों की जिंदगी
पहले किस्मत ने छीना मां-बाप का साया, अब सरकारी नियमों ने उलझायी मासूमों की जिंदगी

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। जिंदगी के खेल भी निराले हैं। पता नहीं ईश्वर ने उसके नन्हें हाथों में ऐसी कौन सी लकीरें बनाई हैं कि कुछ मिलने से पहले ही बहुत कुछ हाथों से रेत की तरह फिसल जाता है। कुछ ऐसा ही एक मासूम बच्चे के साथ हुआ है। पहले उसकी मासूमियत छिन गई, माता-पिता का साथ छूट गया, बिलखते हुए पांच छोटे भाई-बहनों की परवरिश उसके छोटे और कमजोर कंधों पर आ गई। भूख से बेहाल परिवार की जीविका चलाने के लिए वह रातों रात बड़ा हो गया। खाने के लिए तड़पते भाई-बहनों का पेट भरने के लिए उसे कुछनहीं मिला तो वो बूट पॉलिश करने लगा। जिंदगी चल ही रही थी कि उसे शासकीय सहायता मिलने लगी, उसके चेहरे पर संतोष के भाव आए ही थे कि किस्मत अब मेहरबान हो गई, लेकिन खुशियां ज्यादा देर तक न रह सकी और एक बार फिर समय का चक्र चला और उसके हाथों में आने वाले पैसे, उससे छिन गए। एक पल में ही फिर वह गरीबी की कठोर जमीन पर आ गिरा। छह लोगों के परिवार की जीविका चलाने के लिए अब बूट पॉलिश की कमाई पूरी नहीं पड़ रही है और आमदानी का दूसरा जरिया भी नहीं है। ऐसे में 14 साल का बालक निराश है, बेहद खामोश और चिंता में डूबा है, कि कल जिंदगी कैसे चलेगी।

ऐसे उलझी जिंदगी
7 मई 2014 में गौर खमरिया में रहने वाला राहुल चौधरी जब 14 साल का था तब उसकी चाची प्रीति आग से जलकर मृत हो गई थी। प्रीति की मौत के आरोप में पिता इमरत, मां ऊषा, चाचा, चाची निशा, दादी उजियारी बाई, बुआ मुन्नी बाइत्न को आजीवन कारावास की सजा हो गई। पूरे परिवार के जेल जाने के बाद राहुल के ऊपर अपनी सगी बहनों रागिनी, सपना, चचेरी बहन सपना और भाई सागर के अलावा प्रीति के बेटे हर्ष की भी जिम्मेदारी आ गई। राहुल ने हिम्मत नहीं हारी और अपने पिता की कैरव्ज स्थित बूट पॉलिश की दुकान में काम करके भाई बहनों की परवरिश करने लगा। भाई-बहनों की तरह राहुल पर जेल में बंद परिवार वालों की भी जरूरतों की जिम्मेदारी थी, कुछ दिन रिश्तेदारों ने मदद की, लेकिन बाद में सभी ने दूरियां बना लीं।

कलेक्टर शिवनारायण रूपला ने शुरू कराई पेंशन
राहुल को लेकर मीडिया में खबरें प्रकाशित होने पर तत्कालीन कलेक्टर शिवनारायण रूपला ने मामला को संज्ञान में लेते हुए 16 दिसंबर 2015 से राहुल के चार भाई-बहनों की परवरिश और पढ़ाई के लिए महिला बाल विकास के तहत चलने वाली फास्टर योजना योजना से 2-2 हजार रुपए मासिक पेंशन शुरू कराई थी, जिसके बाद राहुल और उसके भाई-बहनों की हालत में तेजी से सुधार आया।

नियमों के चलते बंद हुई पेंशन
राहुल चौधरी के अनुसार 6 माह पूर्व अचानक उसके खाते में भाई-बहनों के लिए मिलने वाला पैसा आना बंद हो गया। राहुल के अनुसार वह कई बार कलेक्ट्रेट गया और अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कभी त्यौहार बाद तो कभी आचार संहिता की व्यस्तता के चलते उसकी सुनवाई नहीं हो सकी। राहुल के मुताबिक पैसों की कमी के चलते अब वह अपनी बहनों की फीस जमा नहीं कर पा रहा है, जिसके कारण स्कूल प्रबंधन ने नाम काटने की चेतावनी भी दे दी है। इसके साथ ही घर खर्च व दूसरी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रहीं हैं।

 

Created On :   3 Jan 2019 5:39 PM IST

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