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पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम को चुनौती, हाईकोर्ट ने जवाब तलब किया
युगलपीठ में याचिका की अगली सुनवाई 21 फरवरी को
डिजिटल डेस्क जबलपुर । मप्र हाईकोर्ट में एमपी पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम को चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बैंच ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब माँगा है। इस मामले में अगली सुनवाई 21 फरवरी को नियत की गई है। यह याचिका सामाजिक संगठन अपाक्स, ओबीसी, एससी, एसटी और ईडब्ल्यूएस के अभ्यर्थियों की ओर से दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि नियमानुसार अधिक अंक प्राप्त करने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में ट्रांसफर करने का प्रावधान है, लेकिन पीएससी ने आरक्षित वर्ग में आने वाले अभ्यर्थियों के मेरिट में अंक अधिक होने के बाद भी उन्हें उनके ही वर्ग में रखा गया है। इसकी वजह से अनारक्षित और ओबीसी की कट ऑफ माक्र्स 146-146 है। याचिका में कहा गया है कि सिविल सेवा नियम 2015 में किए गए संशोधन को 17 फरवरी 2019 से भूतलक्षीय प्रभाव से लागू किए जाने को भी चुनौती दी गई है। याचिका में लोक सेवा आरक्षण नियम 1994 की धारा 4 की उपधारा (4) को भी चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि आरक्षण का लाभ अंतिम चयन के समय दिया जाएगा। अधिवक्ता रामेश्वर पी. सिंह और विनायक शाह ने तर्क दिया कि संशोधित नियमों को भूतलक्षीय प्रभाव से लागू कर पीएससी ने 45 हजार अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है। इसको देखते हुए पीएससी की मुख्य परीक्षा पर रोक लगाई जानी चाहिए। सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने राज्य सरकार से जवाब माँगा है। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्पेन्द्र यादव ने पक्ष प्रस्तुत किया।
Created On :   16 Jan 2021 3:48 PM IST