कहीं असंतोष कायम, तो कहीं उभर रहीं नई चुनौतियां

Dissatisfaction persists somewhere, new challenges emerging
कहीं असंतोष कायम, तो कहीं उभर रहीं नई चुनौतियां
कहीं असंतोष कायम, तो कहीं उभर रहीं नई चुनौतियां

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार ने गति पकड़ ली है। उम्मीदवार चयन के समय काफी सस्पेंस रहा है। लेकिन अब स्थिति थोड़ी साफ हाेने लगी है। आरंभ में ही कुछ उम्मीदवारों के दावे चुनौती पाने लगे हैं। कहीं असंतोष का माहौल बना है, तो कहीं नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। चुनाव मैदान में दो पूर्व मंत्रियों की स्थिति को लेकर भी प्रश्न उठने लगे हैं। जिले में 12 में से 11 सीटों पर भाजपा के विधायक है। आरंभ से ही दावा किया जा रहा है कि इस बार बदली हुई स्थिति सामने आ सकती है। कांग्रेस को उत्तर नागपुर में संजीवनी मिलने वाली है। लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार व पूर्व मंत्री डॉ. नितीन राऊत को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए काफी जोर लगाना पड़ रहा है। 2014 में वे पराजित होकर तीसरे स्थान पर रहे थे। इस बार लोकसभा चुनाव में रामटेक से उम्मीदवार बनने के लिए आखिरी तक वे प्रयास करते रहे गए। उनका टिकट कट गया था। अब कहा जा रहा है कि राऊत केवल सत्ता में बने रहने की राजनीति करते हैं। कांग्रेस में उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाने की मांग को लेकर दिल्ली तक दौरे करते रहे नगरसेवक व अन्य नेता अब भी नाराज हैं। कांग्रेस का विरोधी गुट राऊत की राह का बाधा बनता दिख रहा है। 

विरोधियों की संख्या बढ़ी

एक अन्य पूर्व मंत्री अनिल देशमुख को भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। काटोल क्षेत्र से राकांपा उम्मीदवार देशमुख के बारे में तेजी से खबर फैल रही है कि वे सत्ता के लिए कभी भी अपनी राह बदल सकते हैं। इससे पहले निर्दलीय विधायक रहकर वे सत्ता में शामिल हुए थे। नगरपरिषद व स्थानीय निकाय संस्थाओं के चुनाव में उनकी पहले की भूमिका को देखते हुए विरोधियों की संख्या बढ़ी है। नाराज नेताओं व कार्यकर्ताओं को समझाने के लिए उनके पास अधिक समय भी नहीं रहा है। 

नहीं थम रही गुटबाजी

उधर कांग्रेस के शहर अध्यक्ष व पश्चिम नागपुर से कांग्रेस उम्मीदवार विकास ठाकरे को भी अपने ही लोगों को जोड़ने में अधिक ताकत लगानी पड़ रही है। विधानसभा चुनाव में दो बार पराजित होने के बाद इस बार ठाकरे के लिए चुनाव परिणाम राजनीतिक कैरियर के लिए भी निर्णायक होगा। ठाकरे को मनपा की राजनीति से अलग करने के लिए कांग्रेस का गुट सक्रिय हुआ था। लिहाजा वे नगरसेवक भी नहीं बन पाए। अब भी गुटबाजी थम नहीं रही है। ठाकरे के विरोध में विरोधी गुट की बैठकें होने लगी है। 

खुलकर सामने आए बगावती

दक्षिण नागपुर में भाजपा ने विधायक सुधाकर कोहले का टिकट काटकर पूर्व विधायक मोहन मते पर दांव लगाया। लेकिन उम्मीदवारी घोषित होने के बाद से ही वे असंतुष्टाें से घिर गए हैं। उनके विरोध में शिवसेना ने तो खुलकर बगावत कर दी है। मते के विरोध में शिवसेना के जिला प्रमुख प्रकाश जाधव सहित अन्य शिवसेना नेताओं ने सभा ली। शिवसेना के नगरसेवक किशोर कुमेरिया ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ताकत दिखाने का प्रयास किया है। भाजपा का टिकट पाने से चूके नगरसेवक सतीश होले भी बतौर निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में डंटे हुए हैं। कुमेरया व होले की उम्मीदवारी का सबसे अधिक नुकसान भाजपा को होने की आशंका जतायी जा रही है।

बड़े नेता नहीं आ रहे सामने

तेजी से चर्चा फैलायी जा रही है कि सामाजिक वोटों का गणित दक्षिण में भाजपा उम्मीदवार की परेशानी बढ़ाएगा। कोहले की नाराजगी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। मध्य नागपुर में कांग्रेस उम्मीदवार बंटी शेलके को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। पहले कहा जा रहा था कि वे भाजपा के लिए जाइंट किलर साबित हो सकते हैं। लेकिन अचानक चर्चा बदलने लगी है। बंटी की राजनीति को स्टंट की राजनीति कहा जा रहा है। बंटी के साथ कांग्रेस के बड़े नेता भी नहीं आ रहे हैं। हुक्का पार्लर में छापेमारी के समय बंटी के पाए जाने के मामले को काफी हवा दी जा रही है। हालांकि भाजपा उम्मीदवार विकास कुंभारे को लेकर भी सीधा समर्थन नहीं सुना जा रहा है।

टिकट वितरण में लगे आरोप

पिछले चुनावों में जोर दिखाती रही बसपा इस बार चुनाव मैदान में केवल उपस्थिति दिखाती प्रतीत हो रही है। कई उम्मीदवारों के तो नाम भी चर्चा में नहीं है। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष व उत्तर नागपुर के उम्मीदवार सुरेश साखरे को लेकर भी चर्चाओं का दौर शुरू हुआ है। बसपा का परंपरागत जनाधार गिर रहा है। इसके पहले के चुनावों में बसपा में टिकटों के वितरण को लेकर साखरे पर भी आरोप लगते रहे हैं। अब नए पुराने असंतुष्ट सामने आने लगे हैं। पांचपावली की सहकार संस्था में अनियमितता का पुराना मामला भी अचानक चर्चा में लाया गया है।
 

Created On :   15 Oct 2019 8:03 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story