- Home
- /
- राज्य
- /
- मध्य प्रदेश
- /
- जबलपुर
- /
- भावांतर योजना: किसान फंसा भंवर में,...
भावांतर योजना: किसान फंसा भंवर में, न भाव समझ आ रहा न अंतर

डिजिटल डेस्क जबलपुर। मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी भावांतर योजना प्रदेश में प्रारंभ हुए आठ दिन बीत चुके हैं लेकिन इसे लेकर किसानों का भ्रम बरकरार है। किसान यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके व्दारा बेची गई फसल के दाम क ी तुलना किस भाव से की जाएगी और भविष्य में उसे कितनी राशि प्राप्त हो सकती है । आठ फसलों के फेर ने अधिकांश जिलों के अधिकाधिक किसानों को पहले ही चरण में योजना से बाहर कर दिया है। हालात यह कि मण्डला, डिण्डौरी, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर व बालाघाट जिले में इस योजनांतर्गत पंजीयन कराने वाले किसानों की संख्या काफी कम है। छिंदवाड़ा , नरसिंहपुर, सिवनी जैसे जिले जहां पंजीयन कराने वाले किसानों की संख्या अन्य जिलों की तुलना में ज्यादा है वहां के किसानों का भी मानना है कि सोसायटियों के अलावा मंडियों में उपज बेचना उनके लिए महंगा सौदा बनेगा। आठ दिन बाद भी किसानों में सर्वाधिक भ्रम की स्थिति इस बात को लेकर बनी है कि भावांतर योजना में अंतर की राशि कब उनके खाते में आएगी।
केवल 8 फसलें , बाकी ..- भावांतर योजना के तहत फसल की केवल आठ किस्में सोयाबीन (3050), मूंगफली (4450), तिल (5300), रामतिल (4050), मक्का (1425), मंूग (5575), उड़द (5400)े एवं तुअर (5450) रुपए रुपये प्रति क्विंटल की दर से क्रय की जाएंगी। अरहर 1 फरवरी से 30 अप्रैल तक और अन्य किस्म की फसल 16 अक्टूबर से 15 दिसंबर तक किसान बेच सकेगा। इस नियम के बाद वे सारी फसलें जो योजना से बाहर हैं की नुकसानी व कम दाम में विक्रय पर किसानों को कोई लाभ नहीं मिलना। उल्टे किसान पर कर्ज भार बढऩे की आशंका यूँ बढ़ गई है क्योंकि यह योजना लागू होते ही सरकार ने कर्ज माफी से भी साफ इंकार कर दिया है।
सबसे बड़ा सवाल - जो अधिसूचित फसलें हैं उनमें से भी मंग व उड़द कम बारिश के चलते दाल उत्पादन के लिए मशहुर नरसिंहपुर जिले में ही इतनी बर्बाद हुई है कि किसानों को लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। यहां तक कि किसानों ने अपनी फसलें वेशियों के हवाले कर दीं। रही सोयाबीन की बात तो अधिकांश जिलों में सोयाबीन की फसल बहुत पहले पक चुकी थी और योजना के श्रीगणेश से पहले ही कटाई व इसका विक्रय शुरु हो गया था। ऐसा इसलिये भी क्योंकि सोयाबीन उत्पादक किसानों को दीपावली के पहले अपनी फसल बेच कर पैसा खड़ा करना होता है। ऐसे में नई समस्या यह खड़ी हो गई है कि जिन कसानों ने 15 अक्टूबर तक सोयाबीन व मक्का बेची है उन्हें भावांतर योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा।
यह है मॉडल रेट का फार्मूला: भावांतर भुगतान को लेकर असंमजस की स्थिति है। मॉडल रेट तय करने प्रदेश के अलावा अन्य दो राज्यों के दो माह के मूल्य का औसत निकाला जाएगा। फिर तीनों राज्यों के औसत से मॉडल रेट तय होगा। मॉडल रेट और समर्थन मूल्य के बीच के अंतर की राशि का योजना के तहत भुगतान किया जाएगा। उदाहरण के तौर पर यदि किसी किसान ने सोयाबीन बेची और उसे व्यापारी ने ढाई हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान किया जबकि महाराष्ट्र व राजस्थान के साथ प्रदेश की मंडी में जो मॉडल के विक्रय दर में अंतर रहेगा, उसका ऑनलाइन भुगतान किया जाएगा। इनमें भी मंडियों की मॉडल दरों को शामिल किया जाएगा। सोयाबीन के लिए महाराष्ट्र, राजस्थान व मध्य प्रदेश की मंडी के मॉडल भाव के आधार पर विक्रय दर की गणना होगी। यानी की सोयाबीन की बिक्री को लेकर महाराष्ट्र और राजस्थान पर भी निर्भर रहना होगा। जबकि मक्का के मामले में कर्नाटक और महाराष्ट्र पर निर्भर रहना होगा।
Created On :   25 Oct 2017 5:12 PM IST