पटाखों के धुएँ से मरने वाले मच्छर इस बार भागे भी नहीं, फॉगिंग का धुआँ भी बेअसर, मोटे और बड़े मच्छरों का शहर पर हमला,

Mosquitoes who die from the smoke of firecrackers did not run this time, fogging smoke also neutralized
पटाखों के धुएँ से मरने वाले मच्छर इस बार भागे भी नहीं, फॉगिंग का धुआँ भी बेअसर, मोटे और बड़े मच्छरों का शहर पर हमला,
पटाखों के धुएँ से मरने वाले मच्छर इस बार भागे भी नहीं, फॉगिंग का धुआँ भी बेअसर, मोटे और बड़े मच्छरों का शहर पर हमला,

मलेरिया, डेंगू का बढ़ा खतरा

डजिटल डेस्क जबलपुर । नवम्बर की शुरूआत से ही ठंड ने असर दिखाना शुरू कर दिया था जिससे उम्मीद जागी थी कि मच्छरों से जल्द ही निजात मिल जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, बल्कि थोड़ा सा मौसम बदला और गर्माहट क्या आई शहर पर मोटे और बड़े मच्छरों का हमला हो गया। आम तौर पर दीपावली में फूटने वाले पटाखों के धुएँ से मच्छरों का खात्मा हो जाता था, लेकिन इस बार तो ऐसा लगा कि पटाखों के धुएँ से मच्छरों को कोई असर ही नहीं पड़ा, बल्कि ठीक जिस प्रकार नगर निगम की फॉगिंग मशीन से निकलने वाले धुएँ को मच्छर डियोडरेंट समझने लगे हैं वैसे ही पटाखों के बारूदी धुएँ को भी मच्छरों ने चिलम का धुआँ बना लिया है। अब केवल नगर निगम के लिए ही नहीं, बल्कि मलेरिया विभाग और अन्य विभागों के वैज्ञानिकों के लिए भी एक चुनौती सामने खड़ी हो गई है कि आखिर मच्छरों का खात्मा कैसे किया जाए।  पहले तो केवल शाम और रात के वक्त ही मच्छरों से परेशानी होती थी, लेकिन इन दिनों शहर में दोपहर के समय भी मच्छरों का हमला होता है और दफ्तरों के साथ ही घरों में ही लोग चैन से नहीं रह पाते हैं।विज्ञान ने भले ही तरक्की कर ली हो, लेकिन कई मामलों में विज्ञान से आगे मच्छरों की प्रजाति निकल जाती है। जिन केमिकल से पहले मच्छर मर जाते थे उन्हें अब मच्छर मजाक में लेने लगे हैं इसका सीधा सा मतलब है कि मच्छरों ने उनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है और अब नए रसायनों की जरूरत है। नगर निगम फॉगिंग मशीनों और हैंड स्प्रे के माध्यम से मेलाथियॉन केमिकल का छिड़काव करवाता है, लेकिन इसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। 
टाइगर मच्छरों का प्रकोप
जानकारों का कहना है कि इन दिनों टाइगर मच्छरों की भरमार हो रही है इन्हें वन मच्छर भी कहा जाता है। पहले ये मच्छर केवल दक्षिण-पूर्व एशिया में ही पाए जाते थे, लेकिन अब ये मच्छर लगभग सभी जगह पाए जाने लगे हैं। ये मोटे और बड़े होते हैं। इसी के जैसे सफेदधारी वाले एडीज एजिप्टी मच्छरों का आकार भी इनके जैसे ही होता है और शहर में इन दिनों यही मच्छर कहर बरपा रहे हैं। घरों के बाहर तो खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा है, सिर के ऊपर मँडराते मच्छरों को देखकर लोग सहम जाते हैं। 
कई बीमारियाँ फैलाते हैं मच्छर 
मच्छरों के सम्बंध में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि नर मच्छर खून नहीं पीते इसलिए वे किसी को काटते भी नहीं हैं। यह काम उन्होंने मादाओं के लिए छोड़ दिया है ये बेचारे तो केवल पेड़-पौधों और फूलों के रस पर जिंदा रहते हैं। मादाओं को  अंडे देने के लिए खून की जरूरत होती है और वे अपने दो माह के जीवन चक्र में हर तीसरे दिन अंडे यानी लार्वा देती है। एक बार में वह 500 से अधिक अंडे देती है। ये मच्छर डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, जीका बुखार, यलो फीवर जैसी बीमारियाँ फैलाते हैं।

Created On :   17 Nov 2020 9:52 AM GMT

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