सावधान: कहीं आप भी नील और व्हाईटनर से सफेद हुआ पोहा तो नहीं खा रहे...

Poha comes out openly from other city, branding done here
सावधान: कहीं आप भी नील और व्हाईटनर से सफेद हुआ पोहा तो नहीं खा रहे...
सावधान: कहीं आप भी नील और व्हाईटनर से सफेद हुआ पोहा तो नहीं खा रहे...

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। पोहे को ज्यादा सफेद और उच्च गुणवत्ता का दर्शाने के लिए नील और व्हाईटनर का उपयोग होने के संदेह में खाद्य एवं औषधि विभाग के अधिकारियों ने बुधवार से कार्रवाई शुरु कर दी है। इससे पूर्व विभाग के मुख्यालय से अलर्ट आया था, जिसमें सभी ब्राण्डों के पाेहों की सैम्पलिंग करने के निर्देश दिए गए थे। खाद्य सुरक्षा अधिकारी अमरीश दुबे के अनुसार, विभाग की टीम ने यादव कॉलोनी में घनश्याम किराना दुकान पर छापा मारते हुए यहां से पोहे का सैम्पल लिया है। बताया जाता है कि पोहा ओम ब्राण्ड का है और इसकी पैकेजिंग मुकादमगंज में की जाती है। अधिकारियों को कहना है कि पोहे का सैम्पल जांच के लिए भोपाल भेजा रहा है। 

गौरतलब है कि शहर में बालाघाट और छत्तीसगढ़ के बिलासपार इलाके से पोहे का आयात खुले रुप में होता है। इसके बाद इसकी शहर में ही पैकेजिंग कर ब्राण्डिंग की जाती है। सूत्राें की माने तो ब्राण्डिंग करने वाले कई ऐसे लोग हैं, जो कि पोहे को ज्यादा सफेद व चमकीला दिखाने के लिए यहीं उसका नील और व्हाईटनर में ट्रीटमेंट किया जाता है। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो, नील और व्हाईटनर से सफेद किए गए पोहे का आयात करते हैं। विभाग के जिम्मेदारों का कहना है कि इस पूरे गोरखधंधे पर संदेह होने के चलते ही कार्रवाई शुरु हुई है, जो आगे भी जारी रहेगी।

कैसे करते है पोहे को पॉलिश
जानकारों का कहना है कि पोहे को ज्यादा सफेद और उच्च गुणवत्ता का दिखाने के लिए उत्पादक इसे नील में भिगा कर रखते हैं। सफेद कपड़ों को चमकदार बनाने के लिए उपयोग होने वाले नील में कई घंटों तक भीगे रहने से इसके रसायन पोहे को भी सफेद कर देते हैं। इसी प्रकार पानी में व्हाईटनर को घोलकर इसे पतला बनाया जाता है और फिर उसमें पोहे को भीगा दिया जाता है। इससे व्हाईटनर के तत्व पोहे की परत पर चढ़ जाते हैं और इससे उसमें सफेदी आ जाती है।

स्वास्थ्य के लिए है हानिकारक
जानकारों का यह भी कहना है कि कपड़ों और कागज पर उपयोग की जाने वाली वस्तुओं को खाद्य पदार्थ में इस्तेमाल होने से लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। क्योंकि नील और व्हाईटनर दोनों को ही बनाने के लिए एेसे तत्व व रसायन प्रयुक्त किए जाते हैं, जिन्हें स्पष्ट तौर पर खाने के लिए उपयोगी नहीं माना जा सकता है। यह बात निर्माता कंपनियां अपने प्रोडक्ट पर भी अंकित करतीं हैं कि यह वस्तु खाने के लिए नहीं है। बावजूद इसके मुनाफा कमाने के चक्कर में कुछ पोहा उत्पादक लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं अा रहे हैं। 

Created On :   6 Dec 2017 11:57 PM IST

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