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श्रीमद भागवत कथा में सुनाई गई आत्मदेव ब्राहम्ण की कथा
डिजिटल डेस्क, ककरहटी । ककरहटी कस्बा के वार्ड क्रमांक ०१ में कथा वाचक पंडित गौरी शंकर त्रिपाठी के द्वारा श्रीमद भगवत कथा का श्रवणपान यजमान दंपत्ती श्रीमती राजकुमारी बाबूलाल यादव सहित श्रद्धालुगणों को कराया जा रहा है। १९ मई से प्रारंभ हुई श्रीमद भागवत कथा के छटवें दिन २५ मई को कथावाचक श्री त्रिपाठी द्वारा श्रीमद भगवत कथा के प्रसंग मे आत्मदेव ब्राह्मण की कथा का वर्णन किया गया। जिसमें उन्होनें बताया कि तुम तुंगभद्रा नदी के तट पर रहने वाले ब्राह्मण आत्मदेव बड़े ज्ञानी थे। उनकी पत्नी धंधुली कुलीन और सुन्दर थी लेकिन अपनी बात मनवाने वाली क्रुरू और झगड़ालू थी धन वैभव से संपन्न आत्मदेव को कोई संतान नही होने का दुख था। अवस्था ढल जाने पर संतान के लिये वह दान करने लगे लेकिन कोई लाभ नही हुआ तो प्राण त्याग के लिये वन चले गये। जब अपने जीवन का अंत करने जा रहे थे तो एक रास्तें में संत महात्मा मिले संत के पूछने पर उन्होने संतान के बिना जीवन सूना-सूना लगने की बात कही गई तथा बताय कि मन बहाने के लिये एक गाय रखी थी सोचा था कि बछड़े होगें उनके साथ अपना मन बहला लूँगा। लेकिन वह भी बांझ निकली। संतान की इच्छा के हट करने पर महात्मा द्वारा आत्मदेव को एक फल दिया गया। आत्मदेव की पत्नी धंधुली ने संदेह की वजह से फल स्वयं नही खाया बहन जो गर्भवती थी जब घर आई तो उसने पूरी बात बताई जिस पर बहन ने कहा कि मेरे पेट में जो बच्चा है वह तुम ले लेना फल गाय को खिला दो। आत्मदेव की पत्नी ने फल गाय को खिला दिया कुछ समय बाद गाय ने एक बच्चे को जन्म दिया। जिसका शरीर पूरा मनुष्य का था जिसका का नाम गोकर्ण रखा गया। धंधुली की बहन ने जिस बच्चे को जन्म दिया उसका नाम धुंधकारी रखा गया। गोकर्ण ज्ञानी और धर्ममात्मा हुआ और धुधंकारी दुराचारी,व्याभीचारी मदिराचारी और दुरात्मा निकला। व्यसन में पडक़र चोरी करने लगा और उसकी हत्या हो गई। बाद में वह प्रेत बना जिसकी मुक्ति के लिये गोकर्ण महाराज ने भागवत कथा का आयोजन किया। श्रीमद भागवत कथा के श्रवण करने से धुंधकारी को प्रेत योनी से मुक्ति मिली।
Created On :   27 May 2022 4:54 PM IST