ये हैं वे 5 बड़े कारण, जिसकी वजह से PM मोदी की पसंद बने 'कोविंद'
टीम डिजिटल, नई दिल्ली. हमेशा ही अपने फैसलों से सभी को चैंकाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार चुना है. इस फैसले के बाद अब सवाल ये है कि आखिर पार्टी ने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आड़वाणी, मुरली मनोहर जोशी, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन सहित तमाम बड़े चेहरों पर कोविंद को तरजीह क्यों दी? आइये यहां आपको बताते हैं कि मोदी ने कोविंद को ही इस महत्वपूर्ण पद के लिए क्यों चुना...
कानून के अच्छे जानकार
कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई करने वाले कोविंद ने दिल्ली हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 16 साल तक वकालत की है. कानपुर के रहने वाले रामनाथ कोविंद कानून के भी अच्छे जानकार हैं. ऐसे में राष्ट्रपति जैसे पद पर तमाम कानूनी प्रक्रियाओं और संविधान की बेहतर जानकारी उनकी राह आसान करेगी.
अच्छा राजनीतिक अनुभव
वह 12 साल तक राज्यसभा के सांसद रहे और भाजपा के दलित मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं. कुछ समय के लिए पार्टी के प्रवक्ता भी रहे और अब पिछले दो सालों से बिहार के राज्यपाल हैं राजनीतिक अनुभव के मामले में भी कोविंद का पक्ष काफी मजबूत है.
दलित चेहरा
कोविंद के सहारे पार्टी सबका साथ सबका विकास के नारे को आगे बढ़ा सकेगी. दलित समुदाय से होना कोविंद की उम्मीदवारी की बड़ी वजह बना. लोकसभा और फिर यूपी के विधानसभा चुनावों में जिस तरह से दलितों ने अपने पुराने सिपहसलारों को छोड़ भाजपा को समर्थन किया उस बढ़त को पार्टी किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहती है. ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव के लिए किसी दलित चेहरे को आगे करने से बड़ा दांव और क्या हो सकता था.
समर्थन जुटाना होगा आसान
रामनाथ कोविंद के चेहरे पर भाजपा के लिए दूसरे दलों से समर्थन जुटाना भी आसान होगा. इसमें उनका दलित होना काफी फायदेमंद रह सकता है. बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए अब उनके चेहरे का विरोध करना मुश्किल भरा होगा तो बिहार का राज्यपाल रहने के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन मिलने की उम्मीद भी की जा सकती है.
बेहतर चेहरा कोई नहीं
राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी के दलित नेता रामनाथ कोविंद से बेहतर चेहरा कोई नहीं हो सकता था, जिससे पार्टी पूरे दम के साथ यह कह सके कि उसने एक दलित को देश के राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाया. रामनाथ कोविंद का नाम घोषित करने का सबसे बड़ा लाभ भाजपा को यह भी हो सकता है कि उनका विरोध करना दूसरे दलों को भारी पड़ सकता है. दलित चेहरा होने के कारण विरोध करने वालों पर दलित विरोधी होने का ठप्पा लग सकता है. ऐसे में बेवजह कोई भी इस दल इस तरह का खामियाजा नहीं भुगतना चाहेगा.
Created On :   20 Jun 2017 9:06 AM IST