Holashtak 2024: 17 मार्च से शुरू होंगे होलाष्टक, इन दिनों में नहीं करना चाहिए ये काम

17 मार्च से शुरू होंगे होलाष्टक, इन दिनों में नहीं करना चाहिए ये काम
  • होलाष्टक 17 मार्च 2024, रविवार से शुरू होंगे
  • होलाष्टक का समापन 24 मार्च, रविवार को होगा
  • इन 8 दिनों में हर तरह के शुभ कार्य वर्जित हैं

डिजिटल डेस्क, भोपाल। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा यानि कि होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक (Holashtak) कहा जाता है। इस साल होलाष्टक 17 मार्च 2024, रविवार से 24 मार्च, रविवार के बीच है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इन 8 दिनों में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं किए जाते। इनमें गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, सगाई, विवाह, नया वाहन खरीदना एवं अन्य मंगल कार्य शामिल हैं।

तिथि कब से कब तक

अष्टमी तिथि आरंभ: 16 मार्च 2024, शनिवार रात 9 बजकर 39 मिनट से

अष्टमी तिथि समापन: 17 मार्च 2024, रविवार सुबह 9 बजकर 53 मिनट पर

होलाष्टक की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, राक्षस कुल में जन्में प्रह्लाद भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। लेकिन, उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी। उनके पिता ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक 8 दिनों में प्रह्लाद को कई प्रकार के कष्ट दिए। अंत में पूर्णिमा पर होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन प्रह्लाद बच गए और वह खुद जल गई। लेकिन, इस अवधि में भगवान श्रीहिर के भक्त को कष्ट दिए जाने से नवग्रह भी क्रोधित हो गए थे। तभी से इस अवधि में किए जाने वाले शुभ कार्यों में अमंगल होने की आशंका के चलते इन दिनों को अशुभ माना जाने लगा और इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।

ये कथा भी है प्रचलित

होलाष्टक को अशुभ माना जाता है, इसको लेकर शिव पुराण में उल्लेख है। कथा के अनुसार, शिव पुत्र को तारकासुर का वध करने का वरदान प्राप्त था। लेकिन सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए थे। ऐसे में तारकासुर ने अत्याचार फैलना शुरू कर दिया, चारों ओर हाहाकार मचा था। यहां तक कि देवी-देवता भी तारकासुर से परेशान हो गए। जिसके बाद सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को तपस्या से विमुख करने की योजना बनाई।

इसके लिए कामदेव और देवी रति को आगे कर दिया और उन्होंने शिवजी की तपस्या भंग कर दी। लेकिन इसका दण्ड दोनों को भोगना पड़ा। तपस्या भंग होते ही भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुला और उसके सामने आने से कामदेव भस्म हो गए। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन फाल्गुन की अष्टमी तिथि थी। इस घटना के बाद देवी-देवताओं ने कामदेव और रति के लिए क्षमा मांगी और ऐसा करते हुए 8 दिन गुजर गए। आखिरकार नौवें दिन महादेव ने कामदेव को फिर से जीवित कर दिया, उस दिन फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि थी। मान्यता है कि तभी से होलाष्टक के इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न नहीं किया जाता है।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

Created On :   15 March 2024 11:21 AM GMT

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