Sarva Pitru Amavasya: मोक्षदायिनी अमावस्या पर सूर्य ग्रहण का संयोग, इस विधि से करें अपने पितरों का श्राद्ध

- पितृपक्ष का समापन इस वर्ष 21 सितंबर को हो जाएगा
 - इस दिन को पितृ विसर्जन अमावस्या के नाम से जाना जाता है
 - इस दिन पितरों को विदाकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है
 
डिजिटल डेस्क, भोपाल। हिन्दू धर्म अमावस्या तिथि का काफी महत्व बताया गया है। लेकिन, आश्विन मास में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, जब यह पितृपक्ष के दौरान आती है। इसे सर्वपितृ अमावस्या (Sarvapitri Amavasya) के नाम से जाना जाता है। इस दिन पितरों को विदाकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। इस बार भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण का संयोग बन रहा है।
सर्वपितृ विसर्जन अमावस्या को लेकर मान्यता है कि, इस तिथि पर मात्र जल तर्पण से पितृ न सिर्फ तृप्त होते हैं, बल्कि उनके आशीर्वाद से सफलता और समृद्धि के द्वार भी खुल जाते हैं। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व...
तर्पण का समय
इस दिन कुतुप मूहूर्त दिन में 11 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। वहीं, रौहिण मूहूर्त दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 27 मिनट तक है। जबकि, श्राद्ध और तर्पण के लिए समय दोपहर 01 बजकर 27 मिनट से लेकर 03 बजकर 53 मिनट तक है।
कैसे करें श्राद्ध
हमारे पूर्वजों का स्मरण कर उनके प्रति आदर, श्रद्धा रखते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए स्नान, दान, तर्पण आदि हर कोई करता है। इसके लिए जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो उस दिन श्राद्ध करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करालें। श्राद्ध करते समय दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, अभिजित मुहूर्त और तिल का विशेष ध्यान रखें। तुलसीदल से पिंडदान करने से पितर पूर्ण तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।
इस दिन आमंत्रित किए गए ब्राह्मण के पैर धोना चाहिए, ध्यान रहे इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए। वहीं श्राद्ध तिथि के दिन तेल लगाने, दूसरे का अन्न खाने, और स्त्रीप्रसंग से परहेज करें। श्राद्ध में राजमा, मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैगन, शलजम, हींग, प्याज-लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, कैंथ, महुआ और चना ये सब वस्तुएं श्राद्ध में वर्जित मानी गई हैं।
गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक इन्हें महादान कहा गया है। भगवान विष्णु के पसीने से तिल और रोम से कुश कि उत्पत्ति हुई है अतः इनका प्रयोग श्राद्ध कर्म में अति आवश्यक है। ब्राहमण भोजन से पहले पंचबलि गाय, कुत्ते, कौए, देवतादि और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें।
दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन के उपरांत यथा शक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें तथा निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें।
डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष, वास्तुशास्त्री) की सलाह जरूर लें।
Created On :   19 Sept 2025 11:15 PM IST













