हनुमान जयंती विशेष : हनुमान जन्म की कहानी

डिजिटल डेस्क, भोपाल। चैत्र माह की पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस बार हनुमान जयंती 31 मार्च को मनाई जाएगी। हनुमान जी श्रीराम के अनन्य भक्त थे और उन्हीं की भक्ति में लीन रहते थे। हनुमान जी की माता अंजना और पिता वानरराज केसरी थे इसलिए इन्हें अंजनी पुत्र और केसरीनंदन भी कहा जाता है। हनुमान जी को भगवान शिव का 11 वां अंश भी कहा जाता है।
हनुमान जन्म की कथा
हनुमान जन्म को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पर प्रमुख रूप से दो कथाएं हैं जो हनुमान जी के जन्म को लेकर प्रचलित हैं।
माता अंजना ने अपने बचपन में एक बंदर को पैरों पर खड़े होकर ध्यान लगाते देखा, तो उसने उस बंदर को फल फेंक कर मार दिया। वह बंदर एक ऋषि में बदल गया और उसकी तपस्या भंग होने पर वह क्रोधित हो गया। उसने अंजना को शाप दिया कि जिस दिन उसे किसी से प्रेम हो जाएगा, उसी क्षण वह बंदरिया बन जाएगी।
कुछ समय बाद, अंजना जंगलों में रहने लगी। वहां उसकी भेंट केसरी से हुई, जिससे प्रेम होने पर वह बंदरिया बन गई और केसरी ने अपने बारे में बताते हुए अंजना को बताया कि वह बंदरों का राजा है। केसरी की ओर से प्रस्ताव रखने पर अंजना मान गई और दोनों का विवाह हो गया। अंजना ने घोर तपस्या कर भगवान शिव से उनके समान एक पुत्र मांगा।
वहीं दूसरी ओर, अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रकामेस्थी यज्ञ आयोजित किया। अग्नि देव को प्रसन्न करने के बाद उन्होने दैवीय गुणों वाले पुत्रों की कामना की। अग्निदेवता ने प्रसन्न होकर दशरथ को एक पवित्र हलवा दिया, जिसे तीनों पत्नियों में बांटने को कहा। राजा ने बड़ी रानी तक हलवे को पंतग से पहुंचाया, वहीं बीच में कहीं माता अंजना प्रार्थना कर रही थीं, हवन की कटोरी में वह हलवा जा गिरा, माता अंजना ने उस हलवे को ग्रहण कर लिया। उसे खाने के बाद उन्हे लगा जैसे गर्भ में भगवान शिव का वास हो गया हो। इसके पश्चात उन्होने हनुमान जी को जन्म दिया।
हनुमान जन्म से जुड़ी दूसरी कथा
सूर्य के वर से सुवर्ण के बने हुए सुमेरु में केसरी का राज्य था। उसकी अति सुंदरी अंजना नामक स्त्री थी। एक बार अंजना ने शुचिस्नान करके सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण किए। उस समय पवन देव ने उसके कान के छिद्र में प्रवेश किया और आते समय आश्वासन दिया कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का ज्ञाता, विश्व में सबसे महाबली पुत्र होगा और ऐसा ही हुआ।
कार्तिक, कृष्ण चतुर्दशी को अंजना के हनुमान जी जन्म दिया। कुछ समय बाद सूर्योदय होते ही बालक को भूख लगी। माता फल लाने गई ही थीं कि इधर लाल वर्ण के सूर्य को फल मानकर हनुमान जी उसको लेने के लिए आकाश में उछल गए।
उस दिन अमावस्या होने से सूर्य को ग्रसने के लिए राहु भी आया था, पर हनुमान जी को दूसरा राहु मान कर वह वहां से भाग गया। तब इंद्र ने हनुमान जी पर वज्र से प्रहार किया। जिससे हनुमान जी मूर्छित हो गए। इंद्र की इस उद्दंडता का दंड देने के लिए पवन देव ने पृथ्विलोक की वायु का संचार रोक दिया। तब इंद्रदेव ने अपने किये की माफी मांगी और भगवान शिव ने हनुमान जी को ठीक किया। जिसके बाद पवनदेव मान गए और पृथ्वी पर वायु का संचार पुनः सुचारू रूप से संचालित किया। तब ब्रह्मादि सभी देवताओं ने हनुमान को वर दिए। इस प्रकार के वरों के प्रभाव से ही आगे जाकर हनुमान जी ने अमित पराक्रम के काम किए।
Created On :   26 March 2018 8:54 PM IST