मां ताप्ती जयंती: जानें कैसे अवतरित हुई थी धरती पर ताप्ती नदी? क्या है मान्यता

Tapti Jayanti: Know how Tapti river was incarnated on earth?
मां ताप्ती जयंती: जानें कैसे अवतरित हुई थी धरती पर ताप्ती नदी? क्या है मान्यता
मां ताप्ती जयंती: जानें कैसे अवतरित हुई थी धरती पर ताप्ती नदी? क्या है मान्यता

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ताप्ती जयंती (Tapti Jayanti) मनाई जाती है। इस वर्ष यह 16 जुलाई शुक्रवार यानी कि आज है। वेद पुराण में इस नदी का उल्लेख किया गया है। स्कंद पुराण के अंतर्गत ताप्ती महान्त्म्य का वर्णन है। माना जाता है कि, भगवान सूर्य ने स्वयं की गर्मी या ताप से अपनी रक्षा करने के लिए ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था। जिस दिन ताप्ती का अवतरण हुआ था उस दिन अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी थी। 

धार्मिक मान्यता के अनुसार मां ताप्ती सूर्यपुत्री और शनि की बहन हैं। इसलिए कहा जाता है कि, ताप्ती की वंदना से शनि के प्रभाव से राहत मिलती है। ताप्ती सभी का ताप कष्ट हर उन्हें जीवन दायनी शक्ति प्रदान करती हैं। यही नहीं मान्यता यह भी है कि, ताप्ती नदी दुनिया की एकमात्र नदी है, जो हड्डियों को गला देती है। इस नदी की धारा में दीपदान, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं ताप्ती की अवतरण कथा के बारे में...

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ताप्ती नदी की अवतरण कथा
सूर्यपुत्री ताप्ती के जन्म की कथा महाभारत सहित कई पुराणों में मिलती है। जिसके अनुसार, सूर्य भगवान की पुत्री तापी को ताप्ती कहा गया है। वे भगवान सूर्य द्वारा उत्पन्न की गईं थीं। भविष्य पुराण के अनुसार, भगवान सूर्य ने विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा/ संजना से विवाह किया था। इनमें से संजना से उनकी 2 संतानें हुईं- कालिंदनी और यम। उस समय सूर्य अपने वर्तमान रूप में ना होकर अंडाकार रूप में थे। संजना को सूर्य का ताप सहन नहीं हुआ और वे अपने पति की परिचर्या अपनी दासी छाया को सौंपकर एक घोड़ी का रूप धारण कर मंदिर में तपस्या करने चली गईं।

छाया ने संजना का रूप धारण कर लंबे समय तक भगवान सूर्य की सेवा की। इसी बीच सूर्य से छाया को शनिचर और ताप्ती नामक 2 संतानें हुईं। इसके अलावा सूर्य की 1 और पुत्री सावित्री भी थीं। सूर्य ने अपनी पुत्री को यह आशीर्वाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी।

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मिला वरदान
वायु पुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार, कृत युग में चन्द्र वंश में ऋष्य नामक एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनके एक सवरण को गुरु वशिष्ठ ने वेदों की शिक्षा दी। एक समय जब सवरण राजपाट का दायित्व गुरु वशिष्ठ के हाथों सौंपकर जंगल में तपस्या करने के लिए निकले, तब वैभराज जंगल में सवरण ने एक सरोवर में कुछ अप्सराओं को स्नान करते हुए देखा जिनमें से एक ताप्ती भी थीं। ताप्ती को देखकर सवरण मोहित हो गया और सवरण ने आगे चलकर ताप्ती से विवाह कर लिया।

सूर्यपुत्री ताप्ती को उसके भाई शनिचर (शनिदेव) ने यह आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के दिन ताप्ती और यमुनाजी में स्नान करेगा, उनकी कभी भी अकाल मौत नहीं होगी। इसके अलावा और पुराणों में ताप्ती नदी का उल्लेख मिलता है।

Created On :   16 July 2021 5:14 AM GMT

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