अगहन मास की उत्पन्ना एकादशी आज, जानें व्रत की विधि और महत्व

Today Aghan Maas Utpanna Ekadashi, Learn the process of Fasting
अगहन मास की उत्पन्ना एकादशी आज, जानें व्रत की विधि और महत्व
अगहन मास की उत्पन्ना एकादशी आज, जानें व्रत की विधि और महत्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। जो कि आज 3 दिसंबर 2018 को है। जो मनुष्य जीवन पर्यन्त एकादशी को उपवास करता है, वह मृत्युपरांत वैकुण्ठ जाता है। एकादशी के समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है। एकादशी-माहात्म्य को सुनने मात्र से सहस्रगोदानोंका पुण्यफलप्राप्त होता है। 

एकादशी में उपवास करके रात्रि-जागरण करने से व्रती श्रीहरि की अनुकम्पा प्राप्त होती है। 
उपवास करने में असमर्थ एकादशी के दिन कम से कम अन्न का परित्याग अवश्य करें। 
एकादशी में अन्न का सेवन करने से पुण्य का नाश होता है तथा भारी दोष लगता है। 
ऐसे लोग एकादशी के दिन एक समय फलाहार कर सकते हैं। 
एकादशी का व्रत समस्त प्राणियों के लिए अनिवार्य बताया गया है। 

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

पद्मपुराण में धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से पुण्यमयी एकादशी तिथि की उत्पत्ति के विषय पर प्रश्न किए जाने पर बताया कि सत्ययुग में मुर नामक भयंकर दानव ने देवराज इन्द्र को पराजित करके जब स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। तब समस्त देवी-देवता महादेव जी की शरण में पहुंचे। महादेव जी देवगणों को साथ लेकर क्षीरसागर गए। जहां शेषनाग आसन पर योग-निद्रालीन भगवान विष्णु को देखकर देवराज इन्द्र देव ने उनकी स्तुति की। देवताओं के अनुरोध पर श्रीहरि विष्णु ने उस अत्याचारी दैत्य पर आक्रमण कर दिया। सैकड़ों असुरों का संहार कर नारायण बदरिकाश्रम चले गए। 

वहां वे बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा के भीतर निद्रा में लीन हो गए। दानव मुर ने भगवान विष्णु को परहास्त करने के उद्देश्य से जैसे ही उस गुफा में प्रवेश किया, वैसे ही श्रीहरि के शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार मात्र से दानव मुर को भस्म कर दिया। श्री नारायण ने जगने पर पूछा तो कन्या ने उन्हें सूचित किया कि आतातायी दैत्य का वध उसी ने किया है। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी नामक उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया। श्रीहरि के द्वारा अभीष्ट वरदान पाकर परम पुण्यप्रदा एकादशी बहुत प्रसन्न हुई।

व्रत के प्रकार
इस व्रत को दो प्रकार से रखा जा सकता है- निर्जल व्रत और फलाहारी। 
यदि जातक बीमार है तो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए। 
इस व्रत में दशमी को रात में भोजन करने से बचना चाहिए। 
इस व्रत में भगवान कृष्ण को केवल फलों का ही भोग लगाएं। 

भूल कर भी ना करें ये काम 
इस व्रत को बिना विष्णु को अर्घ्य दिए कभी ना करें। 
अर्घ्य देने से पहले उसमें हल्दी मिलाएं। जल में कभी भी रोली या दूध का प्रयोग न करें। 
यदि जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उसे यह व्रत भूलकर भी नहीं करें किन्तु नियमों का पालन अवश्य करें।

Created On :   3 Dec 2018 3:58 AM GMT

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