जानिए, क्या है जन्म कुंडली और इसके जरिए कैसे मालूम होती है जीवन की कई घटनाएं

what is the Birth chart? how we can know about our life by it?
जानिए, क्या है जन्म कुंडली और इसके जरिए कैसे मालूम होती है जीवन की कई घटनाएं
जानिए, क्या है जन्म कुंडली और इसके जरिए कैसे मालूम होती है जीवन की कई घटनाएं

 

डिजिटल डेस्क । जन्म-कुंडली या जन्मपत्रिका ज्योतिषीय घटनाओं पर आधारित एक चार्ट होता है, जिसमें एक व्यक्ति के वर्तमान और भविष्य की जानकारियाँ, खगोलीय घटनाओं के आधार पर दर्शायी जाती हैं। इन्हीं खगोलीय पिंडों का अध्ययन कर, किसी व्यक्ति या किसी घटना के प्रभाव और दुष्प्रभावों को आंका जाता है। एक राशिफल को बनाते या देखते समय व्यक्ति के जन्म समय पर ग्रहों की स्थिति को देखना होता है जैसे कि चन्द्र कौन-सी राशि में है, सूर्य ग्रह कहां है और अन्य ग्रहों की चाल क्या है। ब्रह्माण्ड में 9 ग्रह होते हैं सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु, इसी तरह से 12 राशियां होती हैं और बारह राशियों के आधार पर कुंडली क बारह भाव स्थान होते हैं।

जन्म के समय ग्रहों की स्थिति, कौन-से लग्न में जन्म हुआ, क्या रहेगा जातक का भविष्य इन सबके बारे में जानकारी जन्मपत्रिका से ही प्रप्त होती है। जिस प्रकार ज्योतिष में बारह राशियां होती हैं, उसी प्रकार जन्मकुंडली में बारह भावों की रचना की गई है। कुंडली का हर एक भाव मनुष्य के जीवन की विविध घटनाओं को दर्शाता है। आइए इन बारह भावों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।
 

प्रथम भाव : कुंडली का प्रथम भाव लग्न का भाव कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीरिक बनावट, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है।

द्वितीय भाव : कुंडली के द्वितीय भाव को धन का भाव भी कहा जाता है। इस भाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, पारिवारिक सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है।

 

Image result for जन्म कुंडली  के जरिए बच्चे का भविष्य

 

तृतीय भाव : कुंडली के तृतीय भाव को पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है। 

चतुर्थ स्थान : कुंडली के चतुर्थ स्थान को मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सुख, वाहन सुख, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र, छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है।

पंचम भाव : कुंडली के पंचम भाव को सुत भाव भी कहा जाता है। इस भाव से संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यश, नौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है। 

 

Related image

 

छठा भाव : कुंडली के छठे भाव को शत्रु या रोग स्थान भी कहते हैं। इससे जातक के श‍त्रु, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है।

सातवां भाव : कुंडली के सातवें भाव में विवाह सुख, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान इस भाव से होता है। इसे विवाह स्थान कहते हैं।

आठवां भाव : कुंडली के आठवे भाव को मृत्यु स्थान कहते हैं। इससे आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है। 

नवाँ भाव : कुंडली के नौवें भाव को भाग्य स्थान कहा जाता है। यह भाव आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, विदेश यात्रा, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताता है।

 

Image result for जन्म कुंडली  के जरिए बच्चे का भविष्य

 

दसवां भाव : कुंडली के दसवे भाव को कर्म स्थान कहते हैं। इससे पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है।

ग्यारहवां भाव : कुंडली के ग्यारहवें भाव को लाभ का भाव कहते हैं। इससे मित्र, बहू-दामाद, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है।

बारहवां भाव : कुंडली के बारहवें भाव को व्यय का स्थान भी कहा जाता है। इस भाव से कर्ज, नुकसान, विदेश यात्रा, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है।

Created On :   8 March 2018 5:23 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story