मंत्र क्या है ? क्या होती है मंत्र शक्ति ? जानिए यहां

डिजिटल डेस्क । मंत्र में शब्दों का संचय होता है, जिससे हम ईष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं। मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है। आगे के स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन करने से जातक को सम्पूर्ण ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार मनन भी रुक जाता है मन का लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा।पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥1
मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब।2
महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब॥3
भावार्थ:-
जिसके वश में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सभी देवता हैं, वह मंत्र अत्यन्त छोटा होता है।
महान मतवाले गजराज को छोटा सा अंकुश वश में कर लेता है॥
मंत्रजप के अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि। मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है। मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए नियम की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है। किन्तु ईश्वर का नाम कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है। मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका विनियोग अच्छे या बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है। यह धन कमाने का समान है धन का उपयोग किस प्रकार से करना है यह धन कमाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है।
मंत्र का मूल भाव होता है- मनन
मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही नियम धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के अनुसार मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत आवश्यक है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।
यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ आवश्यक नियम बता रहे हैं। मंत्रों का पूर्ण लाभ प्राप्ती के लिए जप करते समय सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत आवश्यक है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।
- मंत्र जप के लिए सही समय भी बहुत आवश्यक है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत अर्थार्थ प्रातः 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ होता है।
- प्रदोष काल अर्थार्थ संध्याकाल मंत्र जप के लिए उचित होता है।
- यदि यह समय भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी लिया जा सकता है।
- एक बार मंत्र जप आरंभ करने के बाद प्रतिदिन स्थान न बदलें। एक स्थान निश्चित कर लें।
- मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों वाली माला का उपयोग करें, यह प्रभावशाली मानी गई है।
कुछ विशेष मनोकामनों की पूर्ति के लिए विशेष माला से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी प्रकार की कामना पूर्ति के लिए स्फटिक की माला का उपयोग करें।
किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का ही जप करें। मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से बचें। मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुख उत्तर दिशा में रखें।
मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान ही चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय।
मंत्रों का उच्चारण करते समय अपनी माला किसी को न दिखाएं। अपने मुख को भी कपड़े से छुपायें।
माला को घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का ही उपयोग करें।
माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए।
मंत्र क्या है..?
‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे व्यक्ति का मानसिक कल्याण हो।
बीज मंत्र क्या हे..?
किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है। हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों का प्राण हैं या मंत्रो की चाबी हैं।
जैसे एक मंत्र- ‘श्रीं’
मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है। इस प्रकार से हम समझ सकते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है। इसी प्रकार ऐं, ह्रीं, क्लीं, रं, वं आदि सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। यह कह सकते हैं कि बीज मंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं।
मंत्र शब्द मन+त्र के संयोग से बना है। मन का अर्थ है सोच, विचार, मनन, या चिंतन करना और "त्र " का अर्थ है बचाने वाला। लिंग भेद से मंत्रो का विभाजन पुरुष, स्त्री, तथा नपुंसक के रूप में है। पुरुष मन्त्रों के अंत में "हूं फट" स्त्री मंत्रो के अंत में "स्वाहा" तथा नपुंसक मन्त्रों के अंत में "नमः"लगता है।
मंत्र साधना का ध्यानयोग से घनिष्ठ सम्बन्ध है। मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है। मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्न या अन्य उपायों से दूर नहीं किए जा सकते।
Created On :   28 Dec 2018 12:20 PM IST