फ़िल्म समीक्षा: सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत से जोड़ती फ़िल्म हैं 'संत तुकाराम'

सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत से जोड़ती फ़िल्म हैं संत तुकाराम
  • फ़िल्म समीक्षा: संत तुकाराम
  • कलाकार: सुबोध भावे, अरुण गोविल, ट्विंकल कपूर, शीना चौहान, संजय मिश्रा, शिव सूर्यवंशी, शिशिर शर्मा, हेमंत पांडे, ललित तिवारी, मुकेश भट्ट, रूपाली जाधव, गौरी शंकर
  • निर्देशक: आदित्य ओम
  • निर्माता: बी. गौतम
  • बैनर: कर्जन फिल्म्स
  • अवधि: 2 घंटे 15 मिनट
  • रिलीज की तारीख: 18 जुलाई
  • सेंसर: यू
  • रेटिंग: 4 स्टार्स

सिनेमा की दुनिया में हर शुक्रवार अनेकों फ़िल्में रिलीज़ होती हैं, कुछ दिल को छू जाती हैं तो कुछ बस मनोरंजन बनकर रह जाती हैं। लेकिन कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो समय की कसौटी पर खरी उतरती हैं और दर्शकों के मन में एक गहरी छाप छोड़ जाती हैं। इस हफ्ते रिलीज़ हुई 'संत तुकाराम' ऐसी ही एक फिल्म है, जो महाराष्ट्र के महान संत तुकाराम महाराज के जीवन पर आधारित है। कर्जन फिल्म्स के बैनर तले बनी और अवार्ड विजेता निर्देशक आदित्य ओम के निर्देशन में तैयार हुई यह फिल्म, प्रतिभाशाली एक्टर सुबोध भावे को संत तुकाराम के रूप में परदे पर उतारती है। निर्माता बी. गौतम की यह पेशकश हमें एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाती है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। आइए, इस समीक्षा में जानें कि यह फिल्म दर्शकों के लिए क्या लेकर आई है।

कहानी:

'संत तुकाराम' भक्ति काल के उस महान संत की जीवनी है, जिनकी कवितायें आज भी हमें राह दिखाती है। फिल्म हमें लगभग 400 साल पीछे ले जाती है, जब तुकाराम महाराज ने अपने अभंगों के ज़रिए समाज में भक्ति और समानता का संदेश फैलाया था।

कहानी की शुरुआत पंढरपुर के एक छोटे से गाँव से होती है, जहाँ संत तुकाराम के पूर्वज, परम भक्त विशम्भर (संजय मिश्रा) अपनी पत्नी के साथ रहते हैं। उनकी बड़ी इच्छा रहती है कि भगवान विठोबा का एक भव्य मंदिर बनवाया जाए। एक रात, भगवान विट्ठल स्वयं उन्हें सपने में संकेत देते हैं, और जब उनकी नींद खुलती है, तो उन्हें अपने ही बगीचे में एक दिव्य मूर्ति मिलती है। इसी वंश में, बोल्होबा नामक एक साहूकार के घर तुकाराम का जन्म होता है जो आगे चलकर महान संत के रूप में पहचाने गए। भले ही बोल्होबा साहूकारी का काम करते थे, लेकिन उनका समुदाय समाज में हाशिए पर था। युवा तुकाराम ने समाज में व्याप्त रूढ़ियों और भेदभाव को करीब से देखा और तभी ठान लिया कि वे इस अन्याय के खिलाफ लड़ेंगे।

तुकाराम का विवाह कम उम्र में ही हो गया था और उन्होंने पारिवारिक व्यवसाय संभाला, क्योंकि उनके बड़े भाई को सांसारिक जीवन में कोई विशेष रुचि नहीं थी। उनकी दूसरी पत्नी, आवली, एक व्यावहारिक और समझदार महिला थीं, जिन्होंने उनके जीवन में संतुलन बनाए रखा। हालांकि, तुकाराम के जीवन में जल्द ही दुखों का सिलसिला शुरू हो गया – अकाल और बीमारी ने उनके बेटे, पहली पत्नी और माता-पिता को उनसे छीन लिया। इन त्रासदियों ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया और वे पूरी तरह से भक्ति और अध्यात्म की ओर अग्रसर हो गए।

इस दौरान, तुकाराम ने अपने आराध्य भगवान विट्ठल के साथ एक गहरा और व्यक्तिगत संबंध महसूस करना शुरू कर दिया। भगवान विट्ठल खुद विभिन्न रूपों में उनसे मिलते आते थे और उन्हें मार्गदर्शन देते थे। तुकाराम को संतों और महान व्यक्तित्वों के भी दर्शन होते थे, कभी प्रत्यक्ष तो कभी स्वप्न में, जो उन्हें उनके जीवन के परम लक्ष्य की ओर प्रेरित करते थे।

धीरे-धीरे, तुकाराम एक पूजनीय संत के रूप में प्रसिद्ध होते गए। उनकी ख्याति इतनी बढ़ी कि स्वयं मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज भी उनसे मार्गदर्शन और आशीर्वाद लेने आने लगे।

उनकी इस आध्यात्मिक यात्रा के दौरान कई बार उनपर जानलेवा हमले भी हुए लेकिन वह चमत्कारिक ढंग से बच निकलत। उनके जीवन की इन्ही घटनाओं को फिल्म में मनोरंजक तरीके से प्रस्तुत किया गया है जो दर्शकों को पसंद आएगा।

एक्टिंग:

सुबोध भावे ने संत तुकाराम के किरदार को पूरे मन से निभाया है। उनका शांत और सौम्य चेहरा, संत तुकाराम की सरलता और आभा को बखूबी दर्शाता है साथ ही दर्शकों को सहज ही अपनी ओर खींच लेता है। संत तुकाराम के आंतरिक द्वंद्वों और भगवन विट्ठल पर उनकी अटूट आस्था को सुबोध भावे ने परदे पर जीवंत कर दिया है। शीना चौहान ने संत तुकाराम की पत्नी आवली के रूप में एक सशक्त और भावुक महिला की भूमिका निभाई है और अपनी एक्टिंग, डायलॉग डिलीवरी और एक्सप्रेशन से दर्शकों को इम्प्रेस करने में सफल रही हैं। इस फिल्म में संजय मिश्रा, अरुण गोविल और शिशिर शर्मा जैसे कई प्रसिद्ध और मंझे हुए कलाकारों का अभिनय देखने को मिलेगा, जो अपनी छोटी लेकिन प्रभावशाली भूमिकाओं से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करते दिखाई देंगे। अन्य सहायक कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है।

फिल्म का संगीत इसकी धड़कन है। संत तुकाराम के अभंगों को फिल्म में इतनी खूबसूरती से पिरोया गया है कि वे आज भी उतने ही प्रासंगिक लगते हैं। फिल्म में गाए गए अभंग दिल को छू लेने वाले हैं और फिल्म के आध्यात्मिक माहौल को और भी गहराई देते हैं। फिल्म का संगीत सिर्फ कहानी को आगे नहीं बढ़ाता, बल्कि दर्शकों को कहानी के साथ जोड़ कर रखता है।

निर्देशन:

निर्देशक आदित्य ओम का काम और फिल्म की राइटिंग वाकई कमाल की है। उन्होंने संत तुकाराम के जीवन को बहुत ईमानदारी के साथ प्रस्तुत किया है। आदित्य ओम ने उस समय के सामाजिक ताने-बाने, परिवेश, पहनावे और व्यवहार को शानदार तरीके से स्क्रीन पर उतारने की सफल कोशिश की है। उन्होंने हर कलाकार से उसके हिस्से का बेहतरीन अभिनय निकालने में कामयाब रहे है, फिल्म की सिनेमैटोग्राफी शानदार है और दृश्यों को बहुत कलात्मक ढंग से फिल्माया गया है जो आपको आज से लगभग 400 साल पहले से दौर में पहुंचा देगा।

फाइनल टेक:

कुल मिलाकर, 'संत तुकाराम' सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक ऐसा एक्सपीरियंस है जो दौड़ती भागती जिंदगी के बीच आपके मन को थोड़ी शांति और सुकून के पल देगा। यह फिल्म हमें सिखाती है कि कैसे प्रेम, विश्वास और मानव सेवा, जीवन की हर बाधा को पार कर सकती

Created On :   21 July 2025 7:12 PM IST

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