असेंबली भंग होने के बाद राजनीतिक अराजकता का सामना कर रहा पाकिस्तान

Pakistan facing political chaos after assembly dissolution
असेंबली भंग होने के बाद राजनीतिक अराजकता का सामना कर रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान असेंबली भंग होने के बाद राजनीतिक अराजकता का सामना कर रहा पाकिस्तान
हाईलाइट
  • राजनीतिक विरोधियों के बीच चल रहे विवाद

डिजिटल डेस्क, इस्लामाबाद। प्रधानमंत्री इमरान खान की सलाह पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी की ओर से नेशनल असेंबली को भंग करने के बाद देश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया है।

सरकार के खिलाफ एक अविश्वास प्रस्ताव (एनसीएम) को नेशनल असेंबली (एनए) के डिप्टी स्पीकर ने खारिज कर दिया। उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा एक साजिश का हवाला देते हुए खारिज किया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है और संकेत हैं कि खान और उनके राजनीतिक विरोधियों के बीच चल रहे विवाद पर अभी कोई अंतिम शब्द नहीं कहे जा सकते हैं। पाकिस्तानी कानूनी विशेषज्ञों ने कई कारणों से कहा है कि एक प्रधानमंत्री सदन के विघटन या उसे भंग करने की मांग नहीं कर सकता है, जब उसके संसदीय बहुमत के समर्थन पर सवाल उठाया गया हो। शीर्ष अदालत ने इससे पहले षड्यंत्र के आरोप का हवाला देते हुए एनसीएम को खारिज करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। इसने राष्ट्रपति के संदर्भ यानी प्रेसिडेंशियल रेंफरेंस को भी वापस कर दिया था।

हालांकि खान आखिरी तक अपना पद बचाने में लगे रहे और आशावान भी बने रहे। यहां तक कि उन्होंने एनए की कार्यवाही के बाद राष्ट्र के नाम एक संबोधन के दौरान अपने आरोप को दोहराया। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि खान और उनके समर्थकों ने सरकार के अंदर और बाहर कई स्थापित लोकतांत्रिक और संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है, ताकि रविवार को एनए में एक निश्चित हार को टाला जा सके।

एनसीएम पर महत्वपूर्ण मतदान से एक दिन पहले, समर्थकों को सड़कों पर उतरने और इस्लामाबाद में पीटीआई सरकार को बचाने के लिए एकजुट होने को लेकर कहने वाला एक फोन खुद खान की से आया था। उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने देश भर के कई शहरों में ऐसा किया। खान ने विपक्ष के कदम को विफल करने की उम्मीद की, हालांकि इसके लिए काफी देर हो चुकी थी। देश में पनपी यह अराजक स्थिति हिंसा और रक्तपात का कारण बन सकती है, क्योंकि विपक्ष भी, विशेष रूप से मौलाना फजलुर रहमान के इस्लामी कार्यकर्ता और विपक्षी गठबंधन के संयोजक भी आयोजन स्थल पर जुट रहे हैं। हालांकि हजारों जवानों और पुलिसकर्मियों ने नेशनल असेंबली के आयोजन स्थल को साफ कर दिया है।

चौंकाने वाली मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि असंतुष्ट सांसदों पर हमला किया जा सकता है और उनका अपहरण भी किया जा सकता है, क्योंकि मुख्य उद्देश्य उन्हें मतदान से रोकना है। इसे रोकने के लिए इस्लामाबाद की रक्षा करने वाली सेना की 111 ब्रिगेड समेत सुरक्षाबलों ने नियंत्रण कर लिया है। किसी भी तरह से पद पर बने रहने के लिए, खान अपने आकाओं, शीर्ष सैन्य अधिकारियों की अवहेलना कर रहे हैं, जिन्होंने 2018 के चुनावों को अंजाम दिया और उन्हें एक असहज गठबंधन के प्रमुख के रूप में सत्ता में लाया। स्थापित राजनीतिक दलों को बाहर रखने के अपने प्रयास में सेना ने उन्हें प्रॉक्सी बना दिया था, लेकिन खान ऐसा करने में विफल रहे। विश्लेषकों का कहना है कि सेना ने विद्रोह का संकेत दिया था और वह अपना चेहरा बचाने के लिए उसे बाहर देखना चाहती थी।

वोट की पूर्व संध्या पर, जब उनके हारने की सबसे अधिक संभावना थी, लेकिन वोटिंग अमल में नहीं आई जा सकी, खान ने सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और शक्तिशाली आईएसआई के प्रमुख जनरल नदीम अंजुम को भी इसमें घसीटा और यह ये ऐसे पद हैं, जो पाकिस्तान की राजनीतिक में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। खान की ओर से उनकी सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका को दोष दिया जा रहा है। पीएम की ओर से आरोप लगाया गया है कि उन्हें सत्ता की कुर्सी से हटाने के लिए एक साजिश रची गई है। खान ने 28 मार्च को वाशिंगटन में दूतावास से एक संदेश का जिक्र किया, जो कथित तौर पर अमेरिकी विदेश विभाग के चीनी-अमेरिकी अधिकारी डोनाल्ड लू के साथ पाकिस्तान के राजदूत की बातचीत पर आधारित था।

खान कहते हैं कि अमेरिका उनकी स्वतंत्र विदेश नीति के कारण उन्हें बाहर करना चाहता है, जिसमें पिछले साल अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य सुविधाओं को संचालित करने से इनकार करना और रूस द्वारा यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई शुरू करने पर मॉस्को का दौरा करना शामिल है। हालांकि, घरेलू और विदेशी विशेषज्ञों ने षड्यंत्र सिद्धांत को खारिज कर दिया है। शीर्ष अधिकारियों को विभाजित करने की कोशिश के लिए सेना खान से नाराज है। उन्होंने नवंबर में सेवानिवृत्त होने वाले बाजवा को दूसरी बार सेवा विस्तार देने की बात कही। यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हुआ, जब जनरलों का एक समूह - सेवारत और सेवानिवृत्त दोनों - बाजवा के खिलाफ सक्रिय है। संकेत हैं कि खान ने एनसीएम को दरकिनार करते हुए अपने पद पर बने रहने के कारण हिंसा और अराजकता की संभावनाओं को जन्म दिया है।

 

(आईएएनएस)

Created On :   4 April 2022 10:00 AM GMT

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