पूरी दुनिया को बहुपक्षवाद का दामन थामना चाहिए : भारतीय विद्वान
- पूरी दुनिया को बहुपक्षवाद का दामन थामना चाहिए : भारतीय विद्वान
बीजिंग, 26 सितम्बर (आईएएनएस)। पिछले 9 महीनों में कोरोना वायरस महामारी की वजह से दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है, और विकसित और विकासशील सभी देश परेशान हैं। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन होना बहुत मायने रखता है। इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा विश्व निकाय की 75वीं वर्षगांठ है, और कई देशों के नेताओं ने आम सभा को संबोधित किया है। चूंकि इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा को कोविड-19 महामारी की पृष्ठभूमि में आयोजित किया जा रहा है, इसलिए यह लगभग पूरी तरह वर्चुअल ही हो रही है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने दुनिया से अपील की कि शांति, विकास, समानता, न्याय, लोकतंत्र और स्वतंत्रता के मूल्यों को कायम रखने के लिए सबको हाथ मिलाना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने बहुपक्षवाद, सतत विकास और जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों पर चीन की सक्रिय भागीदारी जारी रखने की भी बात कही।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिषेक प्रताप सिंह ने सीएमजी (चाइना मीडिया ग्रुप) के साथ एक खास बातचीत में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भाषण की सराहना की, और कहा कि राष्ट्रपति शी ने अपने भाषण को एक सकारात्मक टिप्पणी के साथ शुरू किया है। उन्होंने अपने भाषण में लोगों के जीवन को प्राथमिकता देने की बात कही है, साथ ही सभी संसाधनों और विज्ञान का उपयोग करके मानव जाति की सुरक्षा पर भी बल दिया है।
चीन-भारत संबंध के जानकार प्रोफेसर डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह ने खास बातचीत में कहा कि शी चिनफिंग ने अपने भाषण में वैश्विक सहयोग की भी बात कही है, जो कि बहुत जरूरी है। कोरोना महामारी जैसी वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या से निपटने के लिए बहुत ही जरूरी हो जाता है कि सभी देश आपस में मिलकर इस महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़े। पूरी दुनिया इस महामारी से प्रभावित है, लगभग सभी देशों की जनता और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा है, तो इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बेहद जरूरी है।
चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने भाषण में आर्थिक वैश्वीकरण के बारे में भी बात की, जिस पर प्रोफेसर डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र में दिये राष्ट्रपति शी के भाषण में दावोस में विश्व आर्थिक फोरम की बैठक में वैश्विकरण के पक्ष में दिये भाषण की छाप देखने को मिलती है, और दोनों भाषणों में काफी समानताएं नजर आती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि शी चिनफिंग आर्थिक वैश्वीकरण के पक्ष में सदैव मुखर रहे हैं। उन्होंने अपने भाषण में कहीं न कहीं एक सामूहिक विकास की अवधारणा की बात की है, जिसके लिए सामुहिक रूप से आगे बढ़ने की सख्त जरूरत है।
चीन की शनचन यूनिवर्सिटी में भारत अध्ययन केंद्र के अतिथि प्रोफेसर डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह का मानना है कि मौजूदा समय में जो अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परि²श्य है, उसमें कोई भी देश अपने व्यक्तिगत विकास के मॉडल के साथ आगे नहीं बढ़ सकता है क्योंकि यहां अंतर-सहयोग और अंतर-निर्भरता देखने को मिलती है। ऐसी स्थिति में सभी देशों को साथ आकर सतत विकास की अवधारणा के मॉडल पर आगे बढ़ना चाहिए, उससे सभी देशों को आगे बढ़ने में आसानी होगी।
चीन सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण पर काफी जोर देता है, और अपने लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक रहने पर बल देता है। चीन में कहा जाता है कि साफ जल और हरे-भरे पहाड़ सुनहरे पहाड़ और चांदी के पहाड़ की भांति हैं। चीनी राष्ट्रपति ने भी अपने भाषण में पर्यावरण सुरक्षा और साल 2060 तक देश को कार्बन तटस्थता तक पहुंचा देने की बात कही है। इस पर भारतीय विद्वान डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह ने कहा कि चीन की पर्यावरण के प्रति विचारधारा देश के अनुभवों में देखने को मिलती है।
उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया प्रदूषण, ग्लोबल वॉमिर्ंग, जलवायु परिवर्तन आदि समस्याओं से ग्रस्त है, ऐसी स्थिति में हमारा विकास का मॉडल सतत विकास की अवधारणा पर आधारित होना चाहिए और इस मामले में चीन का अनुभव बेहतर है। चीन ने पिछले कुछ समय में अपने आपको सौर ऊर्जा, नवीनीकरण ऊर्जा आदि क्षेत्रों में आगे बढ़ाया है, और अपने परंपरागत अर्थव्यवस्था में फेरबदल किया है, वो वाकई बेहतर है।
प्रोफेसर सिंह ने भारत के संदर्भ में भी बात करते हुए कहा कि भारत ने पिछले दो दशकों में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास किया है। देश ने पेट्रोल, डीजल आदि ईंधन की खपत को कम किया है, और कई योजनाओं के द्वारा लोगों को जल संचय, पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन आदि मुद्दों पर जागरूक किया है। भारत में कहीं न कहीं पर्यावरण संबंधी समस्याओं को नियंत्रित करने की कोशिश की गई है।
प्रोफेसर सिंह ने सीएमजी के साथ खास बातचीत में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार लाने की आवश्यकता है, और कुछ नये देशों को और अधिक भूमिका दी जाने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ पश्चिमी देश जो समय-समय पर अपने राष्ट्रीय हितों के कारण या फिर अपने राजनीतिक कारणों से संयुक्त राष्ट्र या उसके प्रावधानों को कमजोर करने की बात करते हैं, हमें उस प्रकार की बातों को नकारना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि विकसित और विकासशील देशों को अपने राष्ट्रीय हितों और अंतर्राष्ट्रीय हितों दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करके संयुक्त राष्ट्र को मजबूत करना चाहिए। आज के समय में बहुपक्षवाद बहुत जरूरी है, और सभी देशों को बहुपक्षवाद का दामन थामना चाहिए।
(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप)
Created On :   26 Sep 2020 3:30 PM GMT