बिहार : मंजूषा कलाकार सोमा रॉय बन रहीं युवाओं की प्रेरणा
- बिहार : मंजूषा कलाकार सोमा रॉय बन रहीं युवाओं की प्रेरणा
पटना, 4 फरवरी (आईएएनएस)। आमतौर पर सुनने को मिलता है कि हादसा किसी भी मजबूत इच्छाबल वाले व्यक्ति का मनोबल तोड़ देता है, लेकिन आत्मविश्वास और लगन हो तो व्यक्ति हादसों और विपरीत परिस्थितियों से निकलकर भी खुद को स्थापित कर लेता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मंजूषा कला में पा पटना की सोमा रॉय ने।
सोमा रॉय आज न केवल पटना के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हैं, बल्कि उन कलाकारों को भी राह दिखा रही हैं, जो फांकाकशी की बात कहकर अपनी कला को असमय छोड़ देते हैं।
बिहार के मंजूषा कला की जानीमानी कलाकार और राज्य पुरस्कार (स्टेट अवार्ड) से सम्मानित सोमा रॉय ने कहा, हार मानने से अच्छा है, खुशी का जरिया तलाशा जाए, कोई ना कोई रास्ता निकल ही जाएगा।
मूलत: पटना की रहने वाली सोमा रॉय को मंजूषा कला में परंपरागत शैली को नए डिजाइन में विकसित करने के लिए वर्ष 2015-16 का राज्य पुरस्कार मिला है। रॉय ने निट से टेक्स्टाइल डिजाइन की डिग्री हासिल की है। वर्तमान में वह पटना में रहकर बिहार की लोक कलाओं से लोगों को परिचित करा रही हैं, तथा कला में दिलचस्पी रखने वाले बच्चों को नि:शुल्क कला की बारीकियां सिखा रही हैं।
कला के प्रति सोमा के समर्पण भाव को इससे भी जाना जा सकता है कि उनके जीवन में जब एक ऐसा समय भी आया था, जब एक सड़क हादसे के बाद चिकित्सकों ने उन्हें कुछ दिनों तक बैठकर पेंटिंग करने से मना कर दिया था, लेकिन दृढ़संकल्पित सोमा उस समय भी लेटकर पेंटिंग बनाती रहीं और आज भी बिहार की लोक कलाओं का झंडा उठाई हुई हैं।
सोमा ने आईएएनएस से कहा, मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूं। बचपन से ही कलाओं के प्रति आकर्षण था। ख्ेाल और पढ़ाई में हमेशा अव्वल रही। इसी दौरान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निट) हैदराबाद में मेरा चयन हो गया।
सोमा निट से पास होकर पहले हैंडीक्राट एंड हैंडलूम एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, नोएडा फिर जयपुर से भदोही में विभिन्न कंपनियों में नौकरी करते हुए कोलकाता पहुंच गईं। यहां एक सड़क हादसे में सोमा घायल हो गईं। इसके बाद सोमा के पिता को भी दिल का दौरा पड़ा और वह घर पर रहने लगे। इस दौरान मां ने घर की जिम्मेदारियां संभालीं।
सोमा की मां उसके लिए पेंटिंग का सामान लाकर देती रहीं और सोमा भी रंगों में डूबी रहीं। मां द्वारा दिए गए रंग ही सोमा का जीवन बन गए। आज सोमा ना केवल मंजूषा कला में, बल्कि मधुबनी पेंटिंग, पत्थरकट्टी, पेपरमेसी, पटचित्र कला, सुजनी कला और छापाकला में भी माहिर हैं। इनकी पेंटिंग दिल्ली, झारखंड सहित कई प्रदर्शनी में शामिल होती रही हैं।
सोमा ने कहा, हादसे बे बाद घर पर ही रहकर कभी लेटकर, कभी बैठकर पेंटिंग बनाती रही। हालांकि, सोमा को कलाकारों की फांकाकशी को लेकर दर्द भी है। पाटलिपुत्र रत्न अवार्ड जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित सोमा ने कहा, राज्य पुरस्कार मिलने के बाद उपेंद्र महारथी शिल्प संस्थान में लड़कियों को प्रशिक्षण देने के लिए मेरा चयन हुआ। लेकिन तीन महीने के बाद मुझे हटा दिया गया।
उन्होंने मायूस और आक्रोशित होकर कहा, आज सरकार कला के प्रसार और कलाकारों के उत्थान की बात करती है, लेकिन अधिकारी स्तर पर कलाकारों के साथ भेदभाव होता है। आज हम जैसे लोग भी फांकाकशी की जिंदगी जी रहे हैं, आखिर सरकार कहां है?
Created On :   4 Feb 2020 6:31 PM IST